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________________ ( १२ ) ज्ञान ) २३ अपढमसमयअजो गिभवत्थ केबलणाणे ( अप्रथमसमयभयोगिभवस्थ के बल - - ठाण० स्था २ ७ १|सू ६१| पृ० ५०६ द्वितीयादि समय में होनेवाला अयोगी योगरहित साधु का होनेवाला केवलज्ञान । मूल - अजोगिभवत्थ केबलणाणे दुचिहे पण्णत्ते, तंजहा - XXX अपढमसमयअजोगि भवत्थ केवलणाणे चेव । टीका- न सन्ति योगा यस्य स न योगीति वा योऽसावयोगी x x x एवमप्रथमो - दूयादिसमयो यस्य स तथा । जिसके योग- कायादि के व्यापार नहीं है अथवा जो योगी - कायादि के व्यापार से युक्त नहीं है उस भवस्थ मनुष्य के अप्रथम - द्वितीयादि समय में होनेवाला केवलज्ञानप्रथमसमयअयोगिभस्थ केवलज्ञान । *२४ अपढमसमय जोगि भवत्व केवलणाणे ( अप्रथमसमयसयोगिभवस्थ केवलज्ञान ) - ठाण० स्था २१ सू० पृ० ५०६ योगयुक्त अवस्था के द्वितीयादि समय में होनेवाला केवलज्ञान । मूल - सयोगिभवत्थ केबलणाणे दुबिहे पण्णत्ते, तं जहा - XXX अपढमसमयसजो गिभवत्थ केवलणाणे वेब | टीका - सह योग :- कायव्यापारादिभिर्यः स सयोगी इन्समासान्तत्वात् स चासौ भवस्थश्च तस्य केवलज्ञानमिति विग्रहः, xxx एवमप्रथमो - इ. यादिसमयो यस्य स तथा xxx २५ अपरितंतजोगी ( अपरितान्तयोगी ) -पण्हा० अ ६ । द्वा १ | सू १४ । पृ० ६८६ मन-वचन-काय की अधान्तता । मूल- अण्णाप अगढिए अट्ठे Xx X अपरितंतजोगी X XX सवदुक्खपाचाण विओसमणं । टीका - अपरितान्ताः - अभ्रान्ताः योगाः - मनःप्रभृतयो यस्ख सः अपरितान्तयोगी सदनुष्ठानेषु । सदनुष्ठानों में अर्थात् संयम पालन में होने वाले कष्टों से मन, वचन और काय में भान्ति का आभास न होना - अपरितान्तयोगी । *२६ अप्पसत्थे हितो जोगेहितो ( अप्रशस्त योग ) मन-वचन-काय की असत्प्रवृत्ति । Jain Education International For Private & Personal Use Only -उत्त० अ २६ / सू८ www.jainelibrary.org
SR No.016028
Book TitleYoga kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechand Choradiya
PublisherJain Darshan Prakashan
Publication Year1993
Total Pages428
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size20 MB
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