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________________ वेदना] मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यङ् मिथ्यात्व इन तीन भागों में विभाजित कर सम्यक्त्व प्रकृति का धनुभव करता है वह सद्भूत पदार्थों के श्रद्धान के फलस्वरूप वेदकसम्यग्दृष्टि होता है । २ अनन्तगुणे हीनक्रम से उदय में आकर व प्रतिशय हीन होकर देशघाती के रूप में उपशम को प्राप्त हुए सम्यक्त्व के देशघाती स्पर्द्धकों का नाम क्षयोपशम है। इस क्षयोपशम के आश्रम से जो जीव का परिणाम होता है उसे क्षयोपशमलब्धि कहते हैं। इस क्षयोपशम लब्धि से वेदकसम्यक्त्व होता है । वेदना - - १. वेयणा कम्माणमुदयो । ( धव. पु. १, पृ. १२५ ) ; वेदना णाम सुह-दुक्खाणि X×× तम्हा सव्वकम्माणं पडिसेहं काऊण पत्तोदय वेदणीयदव्वं चैव वेयणा त्ति उत्तं । (घव. पु. १०, पृ. १६); वेदणी दव्वकम्मोदय ज णिदसुह- दुक्खाणि भटुकम्माणमुदयजणिदजीव परिणामो वा वेदणा । ( प. पु. १०, पृ. १७); श्रट्टाविह कम्मदम्वस्स वेण सणा । (घव. पु. ११, पृ. २); वेद्य वेदिष्यत इति वेदनाशब्दसिद्धेः । अट्टविहकम्म पोग्गलक्खंधो वेयणा । ( धव. पु. १२, पृ. ३०२ ) । २. वेदना कर्मानुभवलक्षणा । (सूत्रकृ.शी. वृ. २, ५, १८, पृ. १२८) । ३. वेदनं वेदना, स्वभावेनोदीरणा करणेन वोदयावलिकाप्रविष्टस्य कर्म्मणोऽनुभवन मिति भावः । ( स्थानां श्रभय. बृ. १५); वेदना सामान्यकर्मानुभवलक्षणा । ( स्थानां श्रभय वृ. ३३); वेदनं स्थितिक्षयादुदयप्राप्तस्य कर्मण उदीरणाकरणेन atoभावमुपनीतस्यानुभवनमिति । ( स्थानां. अभय. वृ. २५० ) । १ धवला में विवक्षाभेद से वेदना का लक्षण अनेक प्रकार का उपलब्ध होता है । यथा -कर्म के उदय का नाम वेदना है। सुख-दुख का नाम वेदना है । उमय में प्राप्त हुए वेदनीय कर्म के द्रव्य को ऋजुसूत्र नय की अपेक्षा वेदना कहा जाता है । शब्द नप की अपेक्षा वेदनीयकर्मद्रव्य के उदय से जो सुख-दुख होते हैं उनको अथवा भ्राठों कर्मों के उदय से उत्पन्न होने वाले जीव के परिणाम को वेदना कहा गया है। प्राठ प्रकार के कर्मद्रव्य का नाम वेदना है । २ कर्म के अनुभव को वेदना कहते हैं। वेदना श्रार्तध्यान - १. वेदना - शब्दः सुखे दुःखे च वर्तमानोऽपि बार्तस्य प्रकृतत्वात् दुःखवेदनायां Jain Education International [वेदनाभय प्रवर्तते तस्या वातादिविकारजनितवेदनाया उपनिपाते तस्या अपायः कथं नाम मे स्यादिति संकल्पश्चिन्ता प्रबन्धस्तृतीयमार्तमुच्यते । ( स. सि. &, ३२ ) । २. तह सूल-सीस रोगाइवेयणाए विजोगपणिहाणं । तदसंपप्रोगचिता तप्पडियाराउल मणस्स || (ध्यानश. ७; योगशा. स्वो विव. ३-७३ उद्) । ३. प्रकरणात् दुःखवेदना संप्रत्ययः । यद्यपि वेदनाशब्दः सुख-दुःखानुभवनविषयसामान्यस्तथापि श्रार्तस्य प्रकृतत्वाद् दुःखवेदनासंप्रत्ययो भवति । तत्प्रतिचिकीर्षां प्रत्यागुर्णस्यानवस्थितमनसो धैर्योपरमात् स्मृतिसमन्वाहार प्रार्तध्यानमवगन्तव्यम् । (त. वा. ९, ३२, १ ) । ४. प्रसद्वेद्योदयोपात्तद्वेषकारणमीरितम् । तृतीयं वेदनायाश्चेत्युक्तं सूत्रेण तत्त्वतः । (त. इलो. ६, ३२, १) । ५. कास - श्वास- भगन्दरोदर-जराकुष्ठातिसार ज्वरैः पित्त - श्लेष्म- मरुत्प्रकोपजनितैः रोगैः शरीरान्तर्कः । स्यात्सत्त्वप्रबलैः प्रतिक्षणभर्वयंद्याकुलत्वं नृणां तद्रोगार्तमनिन्दितैः प्रकटितं दुर्वारदुःखाकरम् ।। स्वल्पानामपि रोगाणां माभूत्स्वप्नेऽपि संभवः । ममेति या नृणां चिन्ता स्यादार्त तत्तृतीयकम् । (ज्ञाना. २५, ३२-३३ ) । ६. शूलादि रोगसम्भवे च तद्वियोगप्रणिधानं तदसंप्रयोगचिन्ता च द्वितीयम् । (योगशा. स्वो विव. ३-७३ ) । १ वेदना शब्द से सामान्यतः सुख-दुःख का बोध होता है, पर ध्यान के प्रसंग में वात-पित्तादि के विकार से जो शरीर में पीडा होती है उसका नाम वेदना है । उसका विनाश कैसे हो, इस प्रकार के चिन्तन को वेदना नाम का श्रार्तध्यान कहा गया है । २ शूल 1 रोग क्षादि की वेदना के होने पर उसके वियोग के लिए तथा भविष्य में उसका संयोग न होने के लिए जो चिन्ता होती है उसे वेदना श्रार्तध्यान कहते हैं । वेदनाभय - १. एर्षकैव हि वेदना यदचलं ज्ञानं स्वयं वेद्यते निर्भेदोदितवेद्य-वेदकबला देकं सदाना'कुलैः । नैवान्यागतवेदनैव हि भवेत् तद्भीः कुतो ज्ञानिनो निःशंकः सततं स्वयं स सहजं ज्ञानं सदा विन्दति ॥ ( समयप्रा. क. १५० ) । २. वेदनागन्तुका बाधा मलानां कोपतस्तनौ । भीतिः प्रागेव कम्पोSस्या (पंचा. 'कम्पः स्यात् ' ) मोहाद्वा परिदेवनम् ॥ उल्लाघोsहं भविष्यामि मा भून्मे वेदना क्वचित् । मूच्छे वेदनाभीति श्चिन्तनं वा मुहुर्मुहुः ॥ ( लाटीसं. ४, ४८ - ४६; पंचाध्या २,५२४-२५) । १०२६, जंन-लक्षणावली For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016023
Book TitleJain Lakshanavali Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1979
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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