SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 22
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना लक्षणावली व उसकी उपयोगिता यह एक जैन पारिभाषिक शब्दकोष है। इसमें लगभग ४०० दिगम्बर और श्वेताम्बर ग्रंथों से ऐसे शब्दों का संकलन किया गया है, जिनकी कुछ न कुछ परिभाषा उपलब्ध होती है। सभी सम्प्रदायों में प्रायः ऐसे पारिभाषिक शब्द उपलब्ध होते हैं। उनका ठीक-ठीक अभिप्राय समझने के लिए उन-उन ग्रन्थों का पाश्रय लेना पड़ता है। परन्तु सबके पास इतने अधिक ग्रन्थों का प्रायः संग्रह नहीं रहता। इसके अतिरिक्त अधिकांश ग्रन्थ पुरानी पद्धति से प्रकाशित हैं व उनमें अनुक्रमणिका आदि का अभाव है। अत: उनमें से अभीष्ट लक्षण के खोजने के लिए परिश्रम तो अधिक करना ही पड़ता है, साथ ही समय भी उसमें बहुत लगता है। इससे एक ऐसे ग्रन्थ की आवश्यकता थी, जिसमें पारिभाषिक शब्दों का संकलन हो । प्रस्तुत लक्षणावली इसी प्रकार का ग्रंथ है । इसमें प्रकारादि वर्णानुक्रम के अनुसार विविध ग्रन्थों से लक्ष्य शब्दों का संग्रह किया गया है । इससे तत्त्वजिज्ञासुमों और अनुसन्धान करने वालों को इस एक ही ग्रन्थ में अभीष्ट लक्ष्य के अनेक ग्रन्थगत लक्षण अनायास ही ज्ञात हो सकते हैं। इस प्रकार उनका समय और शक्ति दोनों ही बच सकते हैं। हम समझते हैं कि पाठकों को प्रस्तुत ग्रन्थ अवश्य ही उपयोगी प्रमाणित होगा। अभी इसका स्वरान्त (अ से औ तक) प्रथम भाग ही प्रकाशित हो रहा है । आगे का कार्य चालू है। लक्षणावली में स्वीकृत पद्धति १. लक्षणावली में उपयुक्त लक्ष्य शब्दों का संस्कृत रूप ग्रहण किया गया है। कहीं-कहीं पर कोष्ठक ( ) में उसका प्राकृत रूप भी दे दिया गया है। २. लक्ष्यभूत शब्दों को काले टाइप (१४ पा.) में मुद्रित कराया गया है। ग्रन्थों के संकेतों को भी काले टाइप (१२ पा.) में दिया गया है। ३. शब्दों के नीचे विविध ग्रन्थों से जो लक्षण उद्धत किये गये हैं उनका मुद्रण सफेद टाइप में हमा है। प्रत्येक शब्द के नीचे जितने ग्रन्थों से लक्षण उद्धत किये गये हैं उनकी क्रमिक संख्या भी दे दी गई है। ४. हिन्दी अनुवाद को काले टाइप में दिया गया है। ५. अनुवाद किसी एक ग्रन्थ के आधार से किया गया है और वह जिस ग्रन्थ के आश्रय से किया गया है उसकी क्रमिक संख्या अनुवाद के पूर्व में अंकित कर दी गई है। यदि विवक्षित लक्षण में ग्रन्थान्तरों में कुछ विशेषता दष्टिगोचर हई है तो कहीं-कहीं २-३ ग्रन्थों के आधार से भी पृथक-पृथक अनुवाद कर दिया गया है तथा उन ग्रन्थों की क्रमिक संख्या भी अंकित कर दी गई है। ६. कितने ही लक्षण जयधवला की सम्भवतः अमरावती और पारा या देहली प्रति से उद्धृत किये गये हैं, पर ये प्रतियां सामने न रहने से उन संकेतों को व्यवस्थित रूप में नहीं दिया जा सका। इसके अतिरिक्त कितने ही लक्षण जयधवला से ऐसे भी लिये गये हैं जो कसायपाहडसुत्त और धवला में भी कहीं-कही टिपणों में उपलब्ध होते हैं । उनको प्रस्तुत संस्करण में ग्रहण कर तदनुसार संकेत में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy