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________________ १६ जैन-लक्षणावली उनका सम्मेलन श्री पं. कैलाशचन्द्र जी शास्त्री की अध्यक्षता में सम्पन्न हमा। जैसी कि अपेक्षा थी, इस विद्वत्सम्मेलन ने उक्त लक्षणावली के सम्बन्ध में कुछ उपयोगी सुझाव देते हुए उसके शीघ्र प्रकाशित कराने के लिए प्रेरणा की थी। उक्त विद्वत्सम्मेलन की सद्भावना से मुझे इस कार्य के सम्पन्न कराने में कुछ बल मिला व मार्गदर्शन भी प्राप्त हया । तदनुसार ही मैंने यथाशक्ति उसके कार्य के सम्पन्न करने का प्रयत्न किया है। ग्रन्थ की प्रस्तावना के लिखने में हमें जैन साहित्य और इतिहास, जैन साहित्य और इतिहास पर विशद प्रकाश, पुरातन जैन वाक्य-सूची की प्रस्तावना, सिद्धिविनिश्चय की प्रस्तावना, भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, जैन साहित्य का इतिहास-पूर्व पीठिका, तथा जैन साहित्य का बृहद् इतिहास (भाग १-५) इत्यादि पुस्तकों के साथ सम्बद्ध ग्रन्थों में से कुछ की प्रस्तावना आदि से भी सहायता मिली है। इसके लिए मैं उक्त पुस्तकों के लेखक विद्वानों का ऋणी हैं। श्री बाबू पन्नालाल जी अग्रवाल को मैं नहीं भूल सकता, जिनकी कृपा से मुझे समय-समय पर आवश्यकतानुसार कुछ ग्रन्थ प्राप्त होते रहे हैं । प्रस्तावना के अन्तर्गत ग्रन्थपरिचय के लिखने में श्रीमान् साहू शान्तिप्रसाद जी जैन (अध्यक्ष वीर सेवा मन्दिर) के.कुछ सुझाव रहे हैं। साथ ही ग्रन्थकारों की अनुक्रमिणका के दे देने के लिए भी प्रापकी प्रेरणा रही है। आपके सुझावों पर मैंने यथासम्भव ध्यान दिया है। ग्रन्थकारों में प्रायः बहुतों का समय निश्चित नहीं है। फिर भी उनके समय के सम्बन्ध में जितनी कुछ सम्भावना की जा सकी है, तदनुसार समय के निर्देशपूर्वक उनकी अनुक्रमणिका परिशिष्ट में दे दी गई है। साहू जी की इस कृपा के लिए मैं उनका विशेष प्राभारी हूँ। साथ ही श्री डॉ. गोकुलचन्द जी के भी कुछ उपयोगी सुझाव रहे हैं, उन्हें भी मैं भूल नहीं सकता। - वीर सेवा मन्दिर के एक पुराने विद्वान् श्री पं. परमानन्द जी शास्त्री से मुझे समय-समय पर योग्य परामर्श मिलता रहा है। दूसरे विद्वान् श्री पं. पार्श्वदास जी न्यायतीर्थ ने प्रेसकापी करके सहायता की है । तथा प्रूफवाचन में भी आप सहायक रहे हैं । इन दोनों ही विद्वानों का मैं अतिशय कृतज्ञ हूँ। वीर सेवा मन्दिर के भूतपूर्व उपाध्यक्ष राय सा. ला. उलफतराय जी तथा मंत्री श्री बाबू प्रेमचन्द जी जैन (कशमीर वाले) ने इस गुरुतर कार्य के भार को सौंप कर मेरा बड़ा अनुग्रह किया है । उसके आश्रय से मुझे कितने ही अपरिचित ग्रन्थों के देखने का सुयोग प्राप्त हुआ है। अतएव मैं आप दोनों ही महानुभावों का अत्यन्त प्राभारी हूँ। इसी प्रकार की यदि आगे भी अनुकूल परिस्थिति बनी रही तथा स्वास्थ्य ने भी साथ दिया तो आशा करता हूँ कि प्रस्तुत ग्रन्थ का दूसरा भाग भी शीघ्र प्रकाशित हो सकेगा। दीपावली । १८-१०-७१। बालचन्द्र सिद्धान्त-शास्त्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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