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________________ अनुसन्धना ] समर्थ पटुतरमतयोऽनुश्रोतः पदानुसारिबुद्धयः । (योगशा. स्वो विव. १-८, पू. ३८ ) । दूसरे से प्रथम पद के अर्थ और ग्रन्थ को सुनकर अन्तिम पद तक अर्थ और ग्रन्थ के विचार में समर्थ श्रतिशय निपुण बुद्धि वाले अनुश्रोतः पदानुसारि बुद्धि ऋद्धि के धारक कहे जाते हैं । अनुसन्धना - तस्सेव पसंत रणट्टस्सऽणुसंघणा घडणा ॥ (श्राव. नि. ७०१ ) । प्रदेशान्तर में नष्ट हुए सूत्र, अर्थ और उभय को संघटित करना - मिलाना, इसका नाम अनुस धना है । ८१, जैन- लक्षणावली अनु समयापवर्तना (प्रणुसमप्रवट्टरणा ) - जो ( घादो) पुण उक्कीरणकालेण विणा एगसमएणेव पददि सा अणुसमप्रवट्टणा । ( धव. पु. १२, पृ. ३२ ) । जो अनुभाग का घात उत्कीर्णकाल के बिना एक ही समय में होता है उसका नाम अनुसमयाप वर्तना है । अनुसारी ( पदानुसारी) ऋद्धि - १. श्रादि श्रव - साण - मज्भे गुरूवदेसेण एक्कबीजपदं । गेह्विय उवरिमगंथं जा गेहृदिसा मदी हु अणुसारी ॥ ( ति. प. ४ - ६८१ ) । २. उवरिमाणि चेव जाणंती प्रणुसारीणाम : ( धव. पु. ६, पृ. ६० ) । गुरु के उपदेश से किसी भी ग्रन्थ के श्रादि, मध्य यान्त के एक बीजपद को सुनकर उसके उपरिवर्ती समस्त ग्रन्थ के जान लेने को अनुसारी ऋद्धि कहते हैं । अनुसूरिगमन - १. अणुसूरीपूर्वस्या दिश: पश्चिमाशागमनं क्रूरातपे दिने । (भ. प्रा. विजयो. २२२ ) । २. अनुसूरिम् अनुसूर्यम् —सूर्य पश्चात्कृत्य – गमनम् । ( ६. श्रा. मूल. २२२) । तीक्ष्ण श्रातप युक्त दिन में पूर्व दिशा से पश्चिम दिशा की ओर गमन करना, यह अनुसूरिगमन (अनुसूर्य) कायक्लेश कहलाता है । श्रनुस्मरण - पूर्वानुभूतानुसारेण विकल्पनमनुस्मरणम् । (त. वा. १, १२, ११) । पूर्व अनुभव के अनुसार विचार करना, इसका नाम अनुस्मरण है । अनूचान - १. श्रुते व्रते प्रसंख्याने संयमे नियमे यमे । यस्योच्चैः सर्वदा चेतः सोऽनूचानः प्रकील. ११ Jain Education International [ अनृत तितः ॥ ( उपासका ८६८ ) । २. अनूचानः प्रवचने साङ्गेऽधीती XX X। ( अमरकोश २, ७, १०) । जिसका उन्नत चित्त सदा श्रुत, व्रत, त्याग, संयम, नियम और यम में लगा रहता है; उसे अनूचान कहते हैं । अनूढा - १. अनुरक्ते सुरक्तेन स्वीकृते स्वयमेव ये । अनूढा परकीये ते भाषिते शिथिलव्रते । ( श्रलं . चि. म. ५ - ९२ ) । २. अनुरक्तानुरक्तेन स्वयं या स्वीकृता भवेत् । सानूढेति यथा राज्ञो दुष्यन्तस्य शकुन्तला ॥ ( वाग्भटा. ५-७२ ) । जो अविवाहित अनुरक्त स्त्री अनुरक्त पुरुष के द्वारा [बिना माता-पिता की स्वीकृति के ] स्वयं स्वीकार की जाती है वह अनूढा कही जाती है। जैसे— राजा दुष्यन्त के द्वारा शकुन्तला । अनूपक्षेत्र - १. अनूपक्षेत्रं नाम मगध- मलय-वानवास - कौंकण सिन्धुविषय- पूर्वदेशादि यत्र पानीयं प्रचुरमस्ति । ( प्राय. स. टी. ६) । २. नद्यादिपानीयबहुलोऽनूपः । XX X यद्वा अनूपोऽजङ्गलः । बृहत्क वृत्ति १०६१) । ३. अनूपदेशे सजले देशे । ( व्य. सू. मलय. वृ. ४-६० ) । ४. जलप्रायमनूपं स्यात् । (श्रमरकोश २, ९, १० ) । १ जहां पानी प्रचुरता से हो ऐसे मगध, मलय, वानवास, कोंकण और सिन्धु आदि देशों को अनूप क्षेत्र कहते हैं । अनृत - १. असदमिधानमनृतम् । (त. सू. ७-१४ ) । २. सच्छब्दः प्रशंसावाची । न सदसत्, अप्रशस्तमिति यावत् । असतोऽर्थस्याभिधानमसदभिधानमनृतम् । ऋतं सत्यम्, न ऋतमनृतम् । ( स. सि. ७-१४) । ३. प्रसदिति सद्भावप्रतिषेघोऽर्थान्तरं गर्हा च । तत्र सद्भावप्रतिषेधो नाम भूतनिह्नवः प्रभूतोद्भावनं च । तद्यथा - नास्त्यात्मा, नास्ति परलोक इत्यादि भूतनिह्नवः । श्यामाकतन्दुलमात्रोऽयमात्मा, आदित्यवर्णः निष्क्रिय इत्येवमाद्यभूतोद्भावनम् । श्रर्थान्तरं यो गां ब्रवीत्यश्वम् अश्वं च गौरिति । गर्हति हिंसा - पारुष्य- पैशून्यादियुक्तं वचः सत्यमपि गर्हितमेव भवतीति । ( त. भा. ७-९ ) । ४. ऋतं सत्यार्थे । ऋतमित्येतत् पदं सत्यार्थे द्रष्टव्यम् । सत्सु साधु सत्यम्, प्रत्यवायकारणानिष्पादकत्वात् । न ऋतमनृतम् । (त. वा. ७, १४, ४) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016021
Book TitleJain Lakshanavali Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1978
Total Pages446
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size12 MB
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