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________________ संवेल्ल - संसेस संवेल्ल सक [संवेष्ट्] लपेटना । संवेल्ल सक [दे] संकेलना । संकुचित करना । संवृत करना । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष स्थित जीव । संसारयवि [ संसारिक ] संसार से सम्बन्ध रखनेवाला । संसारयवि [संसारित ] एक स्थान से दूसरे स्थान में स्थापित | संवेह पुं [संवेध] संयोग । संस [स्] खिसकना, गिरना । संस सक [शंस्] कहना । प्रशंसा करना | आस्वाद लेना । संस वि[सांश ] अंश-युक्त, सावयव । संसइअ न [ सांसयिक ] मिथ्यात्व - विशेष । संसग्ग पुंस्त्री [संसर्ग ] संबन्ध, संग । संसज्ज अक [सं + सञ्जु ] संबन्ध करना, संसर्ग करना । संसजिम वि[संसक्तिमत्] बीच में गिरे हुए जीवों से युक्त । संसदृ वि [ संसृष्ट] खरण्टित, विलिप्त । न. खरष्टित हाथ से दी जाती भिक्षा आदि । देखो संसि । Jain Education International संसाहण स्त्रीन [दे] अनुगमन | संसाण न [ संकथन] कथन | साहिय वि[संसाधित ] सिद्ध किया हुआ । संसि वि[संश्रित] आश्रित । ८०१ संसिच सक [ सं + सिच् ] पूरना, भरना । बढ़ाना | सिंचन करना । देखो संस | कप्पिअ वि [कल्पिक ] खरण्टित हाथ अथवा भाजन से दी जाती भिक्षा को हो ग्रहण करने के नियमवाला मुनि । संसत्त वि [ संसक्त ] संसर्ग-युक्त, सम्बद्ध | पद-जन्तु विशेष । संसित वि[संसिक्त ] सींचा हुआ । संसिद्धि वि[सांसिद्धिक] स्वभाव सिद्ध । संसिलेस देखो संसेस । संसत्ति स्त्री [ संसक्ति ] संसर्ग । संसद्द पुं [संशब्द] शब्द, आवाज । संसीव सक[सं+सिव् ] सीना । संसप्पग वि[संसर्पक] चलने-फिरनेवाला । संसुद्ध वि [ संशुद्ध ] विशुद्ध । न . लगातार उन्नीस दिन का उपवास । संसूवि [संसूचक ] सूचना- कर्ता । संसेइम वि[संसेकिम] संसेक से बना हुआ । उबाली हुई भाजी जिस ठंढे जल से सिची जाय वह पानी । तिल की धोवन । पिष्टोदक | पुं. चींटी आदि प्राणी । संसपिअ 'न [दे. संसर्पित] कूद कर चलना । संसमण न [ संशमन] उपशम, शान्ति । संसय पुं [संशय ] संदेह, शंका | संसया स्त्री [संसत्] परिषत्, सभा । संसर अक[सं+सृ] परिभ्रमण करना । संसरण न [संस्मरण] स्मृति, याद । संसवण न [ संश्रवण ] श्रवण, सुनना । संसह सक [ सं + सह ] सहन करना । संसा स्त्री [शंसा] प्रशंसा, श्लाघा । संसाअवि [दे] आरूढ | चूर्णित । उद्विग्न । संसार पुं. एक जन्म से जन्मान्तर में गमन । जगत् । °वंत वि [°वत्] संसारवाला, संसार संसेइम वि [ संस्वेदिम ] पसीने से उत्पन्न होनेवाला । संसेय अक [ सं + स्विद् ] बरसना । संसेय पुं [संस्वेद] पसीना । °य वि [ज] पसीने से उत्पन्न । पीत | १०१ संसिज्झ अक [सं+सिध्] अच्छी तरह सिद्ध होना । संसेय पुं [ संसेक] सिंचन । संसेविय वि[संसेवित] आसेवित । संसेस पुं [ संश्लेष ] सम्बन्ध, संयोग । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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