SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अभिगिज्झ-अभिणिव्वुड संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अभिगिज्झ अक [अभि + गृध्] अति लोभ | अभिट्ठिअ वि [अभीष्ट] अभिलषित । करना, आसक्त होना। | अभिठ्ठय वि [अभिष्टुत] वर्णित, प्रशंसित । अभिगिण्ह सक [अभि + ग्रह.] ग्रहण करना, अभिड्डुय देखो अभिदुय । स्वीकारना । | अभिणंद सक [अभि + नन्द्] स्तुति करना । अभिग्गह पुं [अभिग्रह] प्रतिज्ञा। जैन आशीर्वाद देना । प्रीति करना । खुशी मनाना। साधुओं का आचारविशेष । प्रत्याख्यान, चाहना, बहुमान करना। ( नियम विशेष ) का एक भेद । हठ । एक अभिणंदण न [अभिनन्दन] अभिनन्दन । प्रकार का शारीरिक विनय । पुं. वर्तमान अवसर्पिणीकाल के चतुर्थ जिनदेव । अभिग्गहणी स्त्री [अभिग्रहणी] भाषा का | लोकोत्तर श्रावणमास । एक भेद, असत्य-मृषा वचन । । अभिणय पुं [अभिनय] शारीरिक चेष्टा के अभिग्गहिय वि [अभिग्रहिक] अभिग्रहवाला। द्वारा हृदय का भाव प्रकाशित करना, नाट्यअभिग्गहिय वि [अभिगृहीत] जिसके विषय क्रिया। में अभिग्रह किया गया हो वह । अभिणव वि [अभिनव नया । अभिघट्ट सक [अभि + घट्ट] वेग से जाना । अभिणिक्खंत वि [अभिनिष्क्रान्त] दीक्षित । अभिघाय पुं [अभिघात] प्रहार, मार-पीट, | | अभिणिगिण्ह सक [अभिनि+ ग्रह.] रोकना। हिंसा। अभिणिचारिया स्त्री [अभिनिचारिका] अभिचंद पुं [अभिचन्द्र] यदुवंश के राजा | भिक्षा के लिए गति-विशेष । अन्धकवृष्णि का एक पुत्र, जिसने जैन दीक्षा अभिणिपया स्त्री [अभिनिप्रजा] अलगली थी। इस नाम का एक कुलकर पुरुष । अलग रही हुई प्रजा। मुहूर्त-विशेष । अभिणिबुज्झ सक [अभिनि+बुध] जानना, अभिजण देखो अभिअण। इन्द्रिय आदि द्वारा निश्चित रूप से ज्ञान अभिजस न [अभियशस्] इस नाम का एक करना। जैन साधुओं का कुल (एक आचार्य की अभिणिबोह पुं [अभिनिबोध] ज्ञान-विशेष, संतति)। मति-ज्ञान। अभिजाइ स्त्री [अभिजाति] कुलीनता । | अभिणियट्टण न [अभिनिवत्तंन] वापस जाना। अभिजाण सक [अभि+ज्ञा] जानना। अभिणिविट्ट वि [अभिनिविष्ट] तीव्र रूप से अभिजात पुं. पक्ष का ग्यारहवाँ दिन । निविष्ट । आग्रही। अभिजाय वि [अभिजात] उत्पन्न । कुलीन ।। अभिणिवेस पुं [अभिनिवेश] आग्रह । अभिमुंज अक [अभि + युज्] मन्त्रतन्त्रादि से अभिणिवेह पुं [अभिनिवेध] उलटा मापना । वश करना । कोई कार्य में लगाना । आलिंगन | अभिणिव्वागड वि [दे. अभिनिाकृत] करना । याद दिलाना। भिन्न परिधि वाला, पृथग्भूत (घर वगैरह)। अभिजुत्त वि [अभियुक्त] व्रत-नियम में जिसने अभिणिव्वट्ट सक [अभिनि + वृत्] रोकना, दूषण न लगाया हो वह । पण्डित । दुश्मन से प्रतिषेध करना। घिरा हुआ। अभिणिव्वट्ट सक [अभिनिर् + वृत्] संपादित अभिज्झा स्त्री [अभिध्या] लोभ, आसक्ति। करना, निष्पन्न करना । उत्पन्न करना। अभिज्झिय वि [अभिध्यित] वांछित । अभिणिव्वुड वि [अभिनिवृत्त] मुक्त । शान्त, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy