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________________ ७९० संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष संतच्छण-संथडिय च्छिन्न धारा, प्रवाह । लिए मस्तक में दिया जाता मन्त्रित पानी। संतच्छण न [संतक्षण] छिलना । °कम्म न [°कर्मन्] उपद्रव-निवारण के संतच्छिअ वि [संतक्षित] छिला हुआ। लिए किया जाता होम आदि कर्म । 'कम्मत संत? वि [संत्रस्त] डरा हुआ। न [°कर्मान्त] जहाँ शान्ति-कर्म किया जाता संतति देखो संतइ। हो वह स्थान । °गिह न [°गृह] शान्ति-कर्म संतत्त वि [संतत] निरन्तर । बिस्तीर्ण । करने का स्थान । °जल न. देखो °उदअ । संतत्त वि [संतप्त] संताप-युक्त । °जिण पुं [°जिन] सोलहवें जिन-देव । संतत्थ देखो संत?। °मई स्त्री [°मती] एक श्राविका । °य वि संतप्प अक [सं+तप्] तपना । पीड़ित होना। [°द] शान्ति-प्रदाता । °सूरि पुं. एक जैनासंतप्पिअ वि [संतप्त] संताप-युक्त । न. | चार्य और ग्रन्थकार । °सेणिय पुं[श्रेणिक] सन्ताप। एक प्राचीन जैन मुनि । °हर न [गृह] संतमस न. अन्धेरा । अन्ध-कूप । भगवान् शान्तिनाथजी का मन्दिर । होम संतय देखो संतत्त = संतत । पुं. शान्ति के लिए किया जाता हवन । संतर सक [सं+त] तैर कर पार करना। संतिअ) वि [दे. सत्क] सम्बन्धी । संतिग । संतस अक [ सं + त्रस् ] भय-भीत होना। संतिज्जाघर देखो संति-गिह । उद्विग्न होना। संता स्त्री [शान्ता] सातवें जिन-भगवान् का संतिण्ण वि [संतीर्ण] पार-प्राप्त । संतुट्ठ वि [संतुष्ट] सन्तोष-प्राप्त । शासन-देवता। संतुयट्ट वि [संत्वग्वृत्त] जिसने पार्श्व धुमाया संताण पुं [संतान] वंश । अविच्छिन्न धारा । हो वह, लेटा हुआ। तन्त-जाल. मकडी आदि का जाल । | संतुलणा स्त्री [संतुलना] तुलना, तुल्यता । संताण न [संत्राण] परित्राण । संतुस्स अक [सं + तुष्] प्रसन्न होना। तृप्त संतार वि. तारनेवाला । पुं. संतरण । होना। संतारिअ वि [संतारित] पार उतारा हुआ। संतेज्जाधर देखो संतिज्जाघर । संतारिम वि. तैरने-योग्य । संतो अ [अन्तर् ] मध्य, बीच । संताव सक [सं + तापय्] गरम करना । संतोस सक [सं+ तोषय ] प्रसन्न करना । हैरान करना। तृप्त करना। संताव पुं. मन का खेद । ताप । संतोस पुं [संतोष] तृप्ति, लोभ का अभाव । संतावय वि [संतापक] संताप-जनक । | संतोसि स्त्री [संतोषि] सन्तोष, तुष्टि, तृप्ति । संतास सक [सं+ त्रासय् ] डराना। संतास पुं [संत्रास] भय । संतोसि वि [संतोषिन्] सन्तोष-युक्त, लोभसंतासि वि [संत्रासिन्] त्रास-जनक । रहित, निर्लोभी, तृप्त । संति स्त्री [शान्ति क्रोध आदि का उपशम । | संतोसिअ पुं[संतोषिक] संतोष, तृप्ति । मुक्ति । अहिंसा । उपद्रव-निवारण। विषयों | संथ वि [संस्थ] संस्थित । से मन को रोकना । चैन, आराम । स्थिरता। | संथड । वि [संस्तृत] परस्पर के संश्लेष दाहोपशम, ठंढाई । देवी-विशेष । पुं. सोलहवें | संथडिय 5 से आच्छादित । घन । व्याप्त । जिनदेव । °उदअ न [°उदक] शान्ति के , समर्थ । तृप्त । एकत्रित । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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