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________________ ७५४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष विरिक्का-विलद्ध विरिक्का स्त्री [दे] विन्दु, लव । । विलइअ वि [दे] धनुष की डोरी पर चढ़ाया विरिचिर वि [दे] धारा से विरेचन कर्ता । हुआ। गरीब । आरोपित । विरिज्जय वि [दे] अनुचर, अनुगत । | विलओलग पुं [दे] लुटेरा।। विरिल्ल सक [वि+स्तु] विस्तारना। विलओली स्त्री [दे] विस्वर वचन । विलोकना, विरीअ (अप) देखो विवरीअ । तलाशी । देखो बिलकोली । विरीह सक [प्रति + पालय] पालन करना । | विलंघ सक [वि + ल] उल्लंघन करना । रक्षण करना। विलंघल (अप) देखो विहलंघल। विरु । अक [वि+रु] रोना, चिल्लाना। विलंघलिअ (अप) वि [विह वलाङ्गित] विरुष । व्याकुल शरीरवाला। विरुअन [विरुत] ध्वनि, पक्षी की आवाज । विलंब देखो विडंब - वि + डम्बय् । विरुअ वि [दे.विरूप] खराब । दुष्ट रूपवाला। विलंब अक [वि + लम्ब्] देरी करना । सक. विरुद्ध । देखो विरूअ । लटकाना, धारण करना। विरु? [विरुष्ट] नरक-स्थान-विशेष ।। विलंब पुं [विलम्ब] देरी। पूर्वाधं तपविरुद्ध वि. विरोधवाला। यारि वि[°चारिन्] विशेष । न. सूर्य के द्वारा परिभोग कर विपरीत आचरण करनेवाला । छोड़ा हश्रा नक्षत्र । विरुव देखो विरूव । विलंबग वि [विलम्बक] धारण करनेवाला । विरुह अक [वि + रुह] विशेष रूप से विलंबणा देखो विडंबणा। उगना। विलंबणा स्त्री [विडम्बना] निर्वर्तना, विरुह देखो विरूह । बनावट। विरूअ । वि [विरूप] कुरूप, भौंड़ा। विलंबि न विलम्बिन्] सूर्य के द्वारा भोगकर विरूव विरुद्ध । बहुविध । छोड़ा हुआ नक्षत्र । सूर्य जिसपर हो उसके विरूह पुन [विरूढ] अंकुरित द्विदल-धान्य । पीछे का तीसरा नक्षत्र ।। विरेअ सक [वि + रेचय] मल को नीचे से | विलंबिअ वि [विलम्बित] विलम्ब-युक्त । न. निकालना । बाहर निकालना। नक्षत्र-विशेष । नाट्य-विशेष । विरेअण न [विरेचन] जुलाब । वि. भेदक, विलक्ख वि [विलक्ष] लज्जित । मूढ । विनाशक । विलक्ख । न [वैलक्ष्य] विलक्षता, विरेल्लिअ देखो विरिल्लिअ । विलक्खिम , लज्जा। पुंस्त्री. । विरोयण पुं [विरोचन] अग्नि । विलग्ग सक [वि+लग्] अवलम्बन करना । विरोल सक [मन्थ्] विलोड़न करना । चढ़ना । पकड़ना । चिपटना । विरोल सक [वि + लग] अवलम्बन करना। विलग्ग वि [विलग्न] चिपटा हुआ। चढ़ना। अवलम्बित । आरूढ । विरोह सक [वि + रोधय] विरोध करना। | विलज्ज अक [वि+ लस्ज् ] शरमाना। विरोह पुं[विरोध] विरुद्धता, वैर । विलट्ठि पुंस्त्री [वियष्टि] साढ़े तीन हाथ में विरोहय वि [विरोधक] विरोधकर्ता । चार अंगुल कम लट्ठी, जैन साधुओं का उपविल अक [वीड] लज्जा करना। करण-दंड । विल न. नमक-विशेष । | विलद्ध वि [विलब्ध] सुलब्ध । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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