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________________ विअल्ल-विआह संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ७२९ विअल्ल अक [वि+चल] क्षुब्ध होना। विआरिल्ल) वि [विकारवत्] विकारवाला, अव्यवस्थित होना। विआरुल्ल , विकारयुक्त । स्त्री. °ल्ला। विअस अक [वि + कस्] खिलना। विआल देखो विआल = वि + चारय् । विअसावय वि [विकासक] विकसित करने- | विआल देखो विआर = वि + दारय । वाला। विआल पुं [विकाल] सन्ध्या । °चारि वि विअह देखो विजह = वि+हा । [°चारिन्] विकाल में घूमनेवाला । विआउआ स्त्री [विपादिका] बिवाई-रोग । विआल पुं[दे] चोर, तस्कर । विआउरी स्त्री [विजनयित्री] ब्यानेवाली। विआल वि [व्याल] । देखो वाल % व्याल । विआगर देखो वागर। विआल देखो विआर, विचाल । विआघाय देखो वाघाय। विआलग देखो विआलय = विकालक । विआण सक [वि+ज्ञा ] जानना, मालूम विआलणा देखो विआरणा = विचारणा । करना। विआलय वि [विदारक] विदारण-कर्ता। विआण न [विज्ञान] । देखो विन्नाण। विआलय पुं [विकालक ] एक महाग्रह, विआण न [वितान] विस्तार । वृत्ति-विशेष । ___ ज्योतिष्क देव-विशेष । अवसर । यज्ञ । पुन. चन्द्रातप, आच्छादन- विआलिउ न [दे] सायंकाल का भोजन । विशेष। विआलुअ वि [दे] असहिष्णु । विआणग वि [विज्ञायक] जानकार, विज्ञ । विआव सक [वि + आप् ] व्याप्त करना । विआय सक [वि+जनय] जन्म देना। विआवड देखो वावड = व्याप्त । विआर सक [वि+कारय] विकृत करना। विआवत्त पुं [व्यावर्त] घोष और महाघोष विआर सक [वि+ चारय] विचारना, विमर्श इन्द्रों के दक्षिण दिशा के लोकपाल । ऋजुकरना। वालिका नदी के तीर पर स्थित एक प्राचीन विआर सक [वि + दारय] फाड़ना । चैत्य । पुन. एक देव-विमान । विआर पुं[विकार] विकृत, प्रकृतिभिन्न ।। विआवाय पुं [व्यापात] भ्रंश, नाश । विआविअ देखो वावढ = व्याप्त । विआर पुं [विचार] तत्त्व-निर्णय । तत्त्वनिर्णय के अनुकूल शब्द-रचना । ख्याल । विआस पुं [विकाश] मुंह आदि की फाड़। खुलापन । अवकाश । दिशा-फरागत के लिए बाहर जाना। गमन | विआस पुं [विकास] प्रफुल्लता। की अनुकूलता । विचरण । अवकाश । विमर्श, विआस देखो वास = व्यास । मीमांसा । मत । °धवल पुं. एक राजा । भूमि स्त्री. दिशा-फरागत का स्थान । .. विआसइत्त) (शौ) वि [विकासयितृक] विधारण देखो वागरण। विआसग । विकसित करनेवाला। वि विआरण वि [वैदारण] विदारण-सम्बन्धी । [विकासक]। विआरणा स्त्री [वितारणा] ठगाई। विआसर । वि [विकस्वर] विकसनेवाला, विआरय वि [विचारक] विचार करनेवाला। | विआसिल्ल ) प्रफुल्ल । वि [विकासिन्] । विआरिअ वि [वितारित] दिया गया । ठगा | विआह सक [व्या + ख्या] व्याख्या करना। हुआ, विप्रतारित। कहना । वर्णन करना। विआरिआ स्त्री [दे] पूर्वाह्न का भोजन। विआह पुं [विवाह] शादी। विविध प्रवाह । ९२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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