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________________ रुंपण-रुम्हं पण न [ रोपण ] रोपाना, वापन । रुंफ देखो रुंप | रुंभ देखो रूंध | संभवि [रोधक] रोकनेवाला । संभावि वि [रोधित] रुकवाया हुआ, बन्द किया हुआ । रुक्क न [दे] बैल आदि की तरह शब्द करना । रुक्किणी देखी रुप्पिणी । रुक्ख पुंन [वृक्ष] पेड़ । संयम, विरति । मूल न. पेड़ की जड़ । मूलिय पुं [°मूलिक ] वृक्ष के मूल में रहनेवाला वानप्रस्थ । सत्थ न ['शास्त्र]। उवेद [युर्वेद ] वनस्पति शास्त्र | रुक्मि पुंस्त्री [वृक्षत्व ] वृक्षपन । रुग्ण वि [ रुग्ण ] भग्न । [दे] पीसना | रुच रुच्च रुचिर देखो रुइर । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष रुच्चि देखो रुइ = रुचि । रुच्छ देखो रुक्ख । रुच्मि देखो रुप्पि | रुज्जन [ रोदन] रुदन । रुज्झ देखो रूंध | रुज्झ देखो रूह = रुह, 1 रुट्टिया स्त्री [दे] रोटी | वि [रुष्ट] रोष युक्त । पुं. एक नरकावास । अक [दे] करुण क्रन्दन करना । रुणरुण रुच्च अक [रुच् ] पसन्द पड़ना । रुच्च सक [दे] व्रीहि आदि को यन्त्र में निस्तुष रुप्पय देखो रुप्प करना । रुणु रुण रुण्ण न [ रुदित] रोना । रुते देख रिते । रुत्थिणी देखो रुप्पिणी । रुदिअ देखो रुण्ण | Jain Education International ६८३ रुद्द पुं [ रुद्र ] शिव | शिव मूर्ति विशेष । जिन देव | परमाधार्मिक देवों की एक जाति । नृप - विशेष, एक वासुदेव का पिता । ज्योतिष्क देव - विशेष | अंग-विद्या का जानकार पुरुष । वि भयंकर | देखो रोद्द = रुद्र । रुद्द देखो रोद्द = रौद्र । रुक्ख पुं [ रुद्राक्ष ] वृक्ष - विशेष | रुद्राणी स्त्री [रुद्राणी] शिव-पत्नी, दुर्गा | रुद्ध वि [रुद्ध] रोका हुआ । रुद्र देखो रुद्द । |रुप्प सक [रोपय्] रोपना । रूप्प न [ रुक्म] सोना । लोहा । धतूरा । नागकेसर | चाँदी | रुप्प न [रूप्य ] चाँदी । 'कूड पुं [ ° कूट ] रुक्मि पर्वत का एक कूट । कूलप्पवाय पुं [ कूलप्रपात] द्रह-विशेष | 'कूला स्त्री. एक महानदी । एक देवी । रुक्मि पर्वत का एक कूट । मय वि. चाँदी का बना हुआ । भास पुं. एक ज्योतिष्क महा ग्रह । रूप्प वि [ रौप्य ] रूपा का, चांदी का । = रूप्य । रुप्पि पुं [ रुक्मिन् ] कौण्डिन्य नगर का राजा, रुक्मिणी का भाई । कुणाल देश का राजा । एक वर्षघर - पर्वत । एक ज्योतिष्क महा ग्रह | देव - विशेष । रुक्मि पर्वत का एक कूट । वि. सुवर्णवाला | चाँदीवाला । 'कूड पुंन [' कूट ] रुक्मि पर्वत का एक कूट । रुप्पिणी स्त्री [ रुक्मिणी] द्वितीय वासुदेव की पटरानी | श्रीकृष्ण वासुदेव की अग्र महिषी । एक श्रेष्ठ-पत्नी | रूप्पोभास पुं [रूप्यावभास ] एक महाग्रह । वि. रजत की तरह चमकता । रुब्भंत { संघ के कवकृ. । रुब्भमाण रुम्मिणी देखो रूपिणी । म्हसक [म्लापय् ] म्लान या मलिन करना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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