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________________ पयाइ- पर अहोरात्र का उन्नीसवाँ मुहूर्त्त । पयाइ पुं [ पदाति] पाँव से ( पैदल चलनेवाला पयास (अप) नीचे देखो । सैनिक | पयाग पुंन [ प्रयाग ] तीर्थ-विशेष, जहाँ गंगा और यमुना का संगम है । पयाण न [ प्रदान ] दान, वितरण । पयाण न [ प्रतान] विस्तार | संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पयाण न [ प्रयाण] प्रस्थान, गमन । पयाम देखो पकाम । पयाम न [दे] अनुपूर्व, क्रमानुसार 1 पयाय देखो पयाग । वह | पयाय वि [ प्रजात] उत्पन्न, संजात | पायवि [ प्रजात, प्रजनित] प्रसूत, जिसने जन्म दिया हो वह | पयाय देखो पयाव = प्रताप । पयार सक [ प्र + चारय् ] प्रचार करना । पयार सक [प्र + तारय् ] ठगना । पयार पुं [ प्रकार ] भेद, किस्म । ढंग, रीति, तरह । पयारपुं [प्राकार] दुर्ग । पयार पुं [प्रचार संचार, संचरण । प्रसार । प्रकर्ष - प्राप्ति । आचरण, आचार । पयाल पुं [पाताल] भगवान् अनन्तनाथजी का शासन-यक्ष । पयाव सक [ प्र + तापय् ] गरम करना । पयाव पुं [ प्रताप ] तेज, प्रखरता । प्रकृष्ट ताप, प्रखर ऊष्मा | पयावण न [ पाचन ] पकवाना, पाक करना । पयावण न [ प्रतापन ] तपाना । अग्नि । पयावि वि [ प्रतापिन् ] प्रताप - शाली । पुं. इक्ष्वाकु वंश के एक राजा का नाम । पयास सक [ प्र + काशय् ] व्यक्त करना । चमकाना । प्रसिद्ध करना । पयास देखो पगास - प्रकाश । Jain Education International पयास पुं [प्रयास] प्रयत्न, उद्यम । पय्यवत्थाण (शौ) न [पर्यवस्थान] प्रकृति में अवस्थान | पयाय वि [ प्रयात] जिसने प्रयाण किया हो | पर सक [ भ्रम् ] भ्रमण करना, घूमना । पर देखो प = प्र । ५३९ पयासग वि [ प्रकाशक] प्रकाश करनेवाला । पयासण न [ प्रकाशन ] प्रकाश-करण | वि. प्रकाशक, प्रकाश करनेवाला | पयासय देखो पयासग । पयाहिण देखो पदक्खिण = प्रदक्षिण । पयाहिण देखो पदक्खिण = प्रदक्षिणय् । पयाहिणा देखो पदक्खिणा । पर विभिन्न, इतर । तत्पर, तल्लीन । श्रेष्ठ, दूरवर्ती । प्रधान । प्रकृष्ट । उत्तरवर्ती । अनात्मीय । पुं. शत्रु । न. फक्त । "उट्ठ वि पुं. कोकिल [तीर्थिक ] पुं [देश] ['तस्] बाद में, [पुष्ट ] अन्य से पालित । पक्षी । 'उत्थिय वि भिन्न दर्शनवाला | एस विदेश | 'ओ अ परली — दूसरी तरफ | इतर में । अन्य से । fara [ गणय ] भिन्न गण से सम्बन्ध रखनेवाला । गरिहंझाण न [° गर्हाध्यान] इतर की निन्दा का विचार । धाय पुं [घात] दूसरे को आघात पहुँचाना । पुंन: जिसके उदय से जीव अन्य बलवानों की दृष्टि में भी अजेय समझा जाता है वह कर्म । 'चित्तणु व [चित्तज्ञ ] अन्य के मन के भाव को जाननेवाला । च्छंद, छंद पुं [च्छन्द ] अन्य का आशय । पराधीन । जाणुअवि [' ज्ञ] पर को जाननेवाला । प्रकृष्ट जानकार | [] परोपकार | 'ट्ठा स्त्री [T] दूसरे के लिए । णिदंझाण न [निन्दाध्यान] अन्य की निन्दा का चिन्तन | णुअ देखो 'जाणुअ । 'तंत वि [°तन्त्र] पराधीन | 'तित्थि देखो For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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