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________________ ५३२ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष से जाना । पधावण न [ प्रधावन] दौड़, वेग से गमन । कार्य की शीघ्र सिद्धि । प्रक्षालन । पधूवण न [ प्रधूपन ] धूप देना | एक प्रकार का आलेपन द्रव्य | वस्तु । पधूविय वि [ प्रधूपित ! जिसको धूप दिया पप्पाडिया स्त्री [ पर्पटिका ] तिल आदि की गया हो वह । बनी हुई एक प्रकार की खाद्य वस्तु । पप्पल देखो पप्पड | पधोअ सक [प्र + धाव् ] धोना । पधोअ वि [ प्रधौत] धोया हुआ । पधोव सक [प्र + धाव् ] धोना । पन देखो पंच । र, रस त्रि. ब. [ "दशन् ] पनरह | पन्नगणा स्त्री [पण्याङ्गना ] वेश्या । पन्नतर स्त्री [पञ्चसप्तति] पचहत्तर | पन्नत्तु वि [ प्रज्ञापयितु] आख्याता, प्रतिपादक । पत्रपत्तिया स्त्री [ प्रज्ञप्रत्यया ] देखो पुन पत्तिया । पप्फुट्ट अक [प्र + स्फुट् ] खिलना । फूटना । पप्फुडिअ पुं [ प्रस्फुटित ] नरकावास - विशेष । पप्फुय देखो पप्पु । पनपन्नइम देखो पणपन्न I पन्नया स्त्री [ पन्नगा] भगवान् धर्मनाथजी की पप्फुर अक [प्र + स्फुर् ] फरकना, हिलना | शासन - देवी | काँपना | पनवग वि [ प्रज्ञापक] प्रतिपादक, प्ररूपक । पन्नास [ मृद् ] मर्दन करना । पन्नारस ( अप ) त्रिव [ पञ्चदशन् ] पन्हु (अप) देखो पहअ = दे. प्रस्नव । पपंच देखो पवंच | पपलीण वि [ प्रपलायित ] भागा हुआ । पमिह पुं [ प्रपितामह] ब्रह्मा, विधाता । परदादा | पपुत्त पुं [ प्रपुत्र] पौत्र । पपुत्त पुं [प्रपौत्र] पौत्र का पुत्र । पपोत्त } पधावण-पबंधण पप्पड पप्पाडग पुंस्त्री [पर्पट] पापड़ | पापड़ के आकारवाला शुष्क मृत्खण्ड । पाय पुं [पाचक ] नरकावास - विशेष । 'मोदय पुं [ मोदक ] एक प्रकार की मिष्ट पनरह । पन्नास देखो पण्णास । °इम वि [ तम] पप्फोड देखो पचासव । पप्प सक [ प्र + आप् ] प्राप्त करना । पप्पा न [ दे. पर्पक] वनस्पति- विशेष | Jain Education International पप्पीअ पुं [दे] चातक पक्षी, पपीहा । पप्पुअ वि [प्रप्लुत] जलार्द्र | व्याप्त । न. कूदना, लाँघना | पफंदण न [ प्रस्पन्दन] प्रचलन, फरकना । पफाड पुं [] अग्नि-विशेष | पफिडिअ वि [] प्रतिफलित । पफुअवि [] दीर्घ । उड़ता । पप्फुल्ल अक [प्र + फुल्ल् ] विकसना । पप्फुल्ल वि [ प्रफुल्ल ] विकसित, खिला हुआ । पप्फुल्लिआ स्त्री [ प्रफुल्लिका ] देखो उफुल्लिआ । पप्फुसिय न [ प्रस्पृष्ट] उत्तम स्पर्श | । पप्फोड सक [प्र + स्फोटय् ] झाड़ना । झाड़ कर गिराना । आस्फालन करना । प्रक्षेपण करना । प्रकृष्ट धूनन करना । तोड़ना । पफुल्ल देखो पप्फुल्ल । पबंध सक [प्र + बन्ध् ] प्रबन्ध रूप से कहना | विस्तार से कहना । पबंध पुं [ प्रबन्ध] सन्दर्भ ग्रन्थ, परस्पर अन्वित वाक्य-समूह । निरन्तरता ! पबंध न [ प्रबन्धन] प्रबन्ध, सन्दर्भ, अन्वित वाक्य- समूह की रचना | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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