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________________ ३४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अणारिय-अणियट्टि अणारिय देखो अणज्ज = अनार्य । । की गई हो वह, उत्तम । पुं. किन्नर देव की अणारिस वि [अनार्ष] जो ऋषि-प्रणीत न एक जाति । हो वह । अणिदिय वि [अनिन्द्रिय] इंद्रिय-रहित । अणारिस वि [अन्यादृश] दुसरे के जैसा । पुं. मुक्त जीव । केवलज्ञानी । वि. अतीन्द्रिय । अणालत्त वि [अनालपित] अनुक्त, नहीं अणिदिया स्त्री [अनिन्दिता] ऊर्ध्व लोक में बुलाया हुआ। रहनेवाली एक दिक्कुमारी देवी।। अणालवय पुं [अनालपक] मौन । अणिक्क वि [अनेक] एक से ज्यादा । वाइ अणाव सक [आ + नायय] मंगवाना। वि [°वादिन] अक्रियावादी । अणावरण वि [अनावरण| आवरण-रहित । अणिक्किणी स्त्री [अनीकिनी] ऐसी सेना न. केवल-ज्ञान । जिसमें २१८७ हाथी, २१८७ रथ, ६५६१ अणाविट्टि । स्त्री [अनावृष्टि] वर्षा का घोड़े और १०९३५ प्यादें हों । अणावुट्टि , अभाव । अणिगण । देखो अणगिण । अणाविल वि [अनाविल] रवच्छ ।। अणिगिण । अणासंसि वि [अनाशंसिन] अनिच्छु, निस्पृह । अणिग्गह वि [अनिग्रह] स्वच्छन्द, असंयत । अणासण देखो अणसण । अणिच्च वि [अनित्य] नश्वर, अस्थायी । अणासय पुं [अनाश, °क] अनशन, भोजना- । °भावणा स्त्री [ भावना] सांसारिक पदार्थों भाव । की अनित्यता का चिन्तन । °णुप्पेहा स्त्री अणासव वि [अनाश्रव] आश्रव-रहित । पुं. [°नुप्रेक्षा] देखो पूर्वोक्त अर्थ ।। आश्रव का अभाव, संवर । अहिंसा, दया ।। | अणि? वि [अनिष्ट] अप्रीतिकर, द्वेष्य । अणासिय वि [अनशित] भूखा। अणिण देखो अणिरिण। अणाह वि [अनाथ] शरण-रहित । स्वामि- अणिदा स्त्री [दे.अनिदा] बिना ख्याल किये रहित । गरीब, बेचारा । पं. एक जैन मुनि । को गई हिंसा । चित्त की विकलता । ज्ञान का अणाहार पं [अनाहार] एक दिन का उप- अभाव । वास । अणिमा पुंस्त्री [अणिमन्] आठ सिद्धियों में अणाहि वि [अनाधि] मानसिक पीड़ा से । एक सिद्धि, अत्यन्त छोटा बन जाने की रहित । शक्ति । अणाहिट्ठि पुं [अनाधृष्टि] एक अन्तकृद् मुनि । अणिमिस न [अनिमिष] फल-विशेष । अणिइण देखो अणगिण ।। अणिमिस । वि [अनिमिष, °मेष] निमेष अणिइय वि [अनियत] अनियमित, अन्य- अणिमेस । शन्य । पुं मछली। देवता । वस्थित । पुं. संसार । 'नयण पुं [नयन] देव। अणिचिय वि अनिजिता टेढा नहीं किया ! अणिय न [अनीक] सैन्य । हुआ, सरल। अणिय न [अनृत] असत्य । अणित अणिय न [दे] अग्र-भाग। अणिउँतय । देखो अइमुत्त । अणिय वि [अनित्य] अस्थिर । अणिउँत्तय ) अणियट्ट पुं [अनिवर्त] मोक्ष । एक महाग्रह । अणिदिय वि [अनिन्दित] जिसको निन्दा न अणियट्टि वि [अनिवर्तिन्] निवृत्त नहीं होने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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