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________________ ४९० प प पुं. ओष्ठ - स्थानीय व्यञ्जन वर्ण- विशेष । पाप | पट्टु वि [दे] प्रेषित | त्याग । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष अ [] इन अर्थों का सूचक अव्यय - प्रकर्ष । प्रारम्भ । उत्पत्ति । प्रसिद्धि । व्यवहार । चारों ओर से । प्रस्रवण, मूत्र । फिर-फिर । गुजरा हुआ, विनष्ट | पवि [प्राच् ] पूर्वं तरफ स्थित । पअंगम पुं [प्लवङ्गम] छन्द - विशेष । अंघ पुं [ प्रजङ्घ] राक्षस-विशेष | पअब्भ देखो पगब्भ = प्रगल्भ । पइ अ [ प्रति] अपेक्षा-सूचक । लक्ष्य, तरफ, ओर । पइ पुं [पति ] भर्ता । मालिक | रक्षक । श्रेष्ठ, उत्तम । 'घर न [गृह] ससुराल | वया, 'व्या स्त्री ['व्रता ] पति सेवा परायणा स्त्री, कुलवती स्त्री, सती । 'हर देखो 'घर | पर देखो पsि | अवि [] भत्सित, तिरस्कृत । न पहिया । पइइ देखो पगइ = प्रकृति । पइऊल देखो पडिकूल | पवया देखो पइ-वया । पइक (अप) देखो पाइक्क । पइकिदि देखो पडिकिदि । पइक्क देखो पाइक्क । इगिइ देखो पsिकिदि । पइच्छन्नपुं [ प्रतिच्छन्न ] भूत- विशेष । पइज्ज (अप) वि [ पतित] गिरा हुआ । पइज्ज (अप) वि [ प्राप्त ] मिला हुआ । लब्ध | पइज्जा देखो पइण्णा । पइउं पय = पच् का हेकृ. 1 स्थापन | पइउवचरण न [ प्रत्युपचरण] प्रत्युपचार, पइट्ठावय वि [ प्रतिष्ठापक] प्रतिष्ठा करनेप्रति-सेवा । पट्ट वि[] जिसने रस को जाना हो वह । विरल । पुं. रास्ता । पट्ट देखो पट्टि | Jain Education International पट्ट पुं [ प्रतिष्ठ] भगवान् सुपार्श्वनाथ के पिता का नाम । प-पइण्णग [प्रविष्ट] जिसने प्रवेश किया हो वह | पट्ठव सक [ प्रति स्थापय् ] मूर्ति आदि की विधिपूर्वक स्थापना करना । पण देखो पट्टावण । पट्टा स्त्री [प्रतिष्ठा ] आदर, सम्मान । कीर्त्ति । व्यवस्था । स्थापना । अवस्थान, स्थिति । मूर्ति में ईश्वर के गुणों का आरोपण । आश्रय, आधार । धारणा, वासना | समाधान शंका निरास - पूर्वक स्वपक्ष-स्थापन । पइट्ठाण पुं [ प्रतिष्ठान] मूल प्रदेश | न. स्थिति, अवस्थान | आधार, आश्रय । महल आदि की नींव | नगर - विशेष | पट्टा न [ दे] नगर । पइट्ठावक } देखो पइट्ठावय । पइट्ठावग पट्टावण न [ प्रतिष्ठापन ] संस्थापन | व्यव वाला । पट्टि व [ प्रतिष्ठित ] प्रतिबद्ध, रुका हुआ । स्थित, अवस्थित | आश्रित । व्यवस्थित । गौरवान्वित । प्रतिष्ठा प्राप्त । पइणियय वि [ प्रतिनियत ] नियम संगत, नियमित । पण वि [] विपुल, विस्तृत । पण पइण्ण [तीर्ण] प्रकर्ष से तीर्ण । पइण्णग fa [ प्रकीर्ण, क] विक्षिप्त फेंका हुआ । अनेक प्रकार से मिश्रित । बिखरा हुआ । विस्तारित । न तीर्थकर - देव के सामान्य शिष्य द्वारा बनाया हुआ ग्रन्थ । कहा स्त्री [कथा] उत्सर्ग, सामान्य नियम | तव पुं [ 'तपस् ] तपश्चर्या विशेष | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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