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________________ ४४४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष थाणीय-थिरण्णेस थाणीय वि [स्थानीय] स्थानापन्न । विशेष । अश्व का आभरण-विशेष । थाणु पुं [स्थाणु] शिव । ठूठा वृक्ष । खीला। थाह पुं [दे] स्थान, जगह । वि. गम्भीर जलस्तम्भ । वाला । विस्तीर्ण । दीर्घ । थाणेसर न [स्थानेश्वर] समुद्र के किनारे पर थाह पुं [स्थाघ] तला, गहराई का अन्त, का एक शहर । सीमा । थाम वि [दे] विस्तीर्ण। थाहिअ पुं [दे] आलाप, स्वर-विशेष । थाम न [स्थामन्] बल, वीर्य, पराक्रम । वि. | थिअ वि [स्थित] रहा हुआ । बलयुक्त । पुन. प्राण । °व वि [°वत्] थिइ देखो ठिइ। बलवान् । थिंदिणी स्त्री [दे] छन्द-विशेष । थाम न [दे. स्थान] स्थान, जगह । थिप अक [तृप्] तृप्त होना, सन्तुष्ट होना । थार पुं[दे] मेघ । थिग्गल न [दे] भीत में किया हुआ दरवाजा । थारुणय वि[थारु किन]देश-विशेष में उत्पन्न । फटे-फुटे वस्त्र में किया जाता सन्धान । पुंन. थाल पुंन [स्थाल] बड़ी थलिया, भोजन करने छिद्र । गिरने के बाद दुरुस्त (ठीक) किया का पात्र । हुआ गृह-भाग। थालइ वि [स्थालकिन्] थालवाला । पुं. वान- थिज्ज देखो थेज = स्थैर्य । प्रस्थ का एक भेद । थिण्ण वि [स्त्यान] कठिन, जमा हुआ। थाला स्त्री [दे] धारा। देखो थीण। थाली स्त्री [स्थाली] पाक-पात्र, हाँड़ी। थिण्ण विदे] स्नेह-रहित दयावाला । अभि°पाग वि [°पाक] हाँड़ी में पकाया हुआ । मानी। थाव सक [स्थापय] स्थिर करना । रखना। थिन्न वि [दे] गर्वित । न्यास करना । थिप्प देखो थिंप। थावच्चा स्त्री [स्थापत्या] द्वारका निवासी थिप्प अक [वि + गल्] गल जाना। एक गृहस्थ स्त्री । पुत्त पुं [°पुत्र] स्थापत्या | थिबुक पुं [स्तिबुक] कन्द-विशेष । का पुत्र, एक जैन मुनि । थिम सक [स्तिम्] गीला करना । थावय पुं [स्थापक] समर्थ हेतु, स्वपक्ष-साधक | | थिमिअ वि [दे. स्तिमित] स्थिर, निश्चल । थिमिअ ' [स्तिमित] राजा अन्धकवृष्णि के थावर वि [स्थावर स्थिर रहनेवाला। पुं.. एक पुत्र का नाम । एकेन्द्रिय प्राणी, केवल स्पर्शेन्द्रियवाला-| थिम्म सक [स्तिम्] आई करना । अक. आद्रं पृथिवी, पानी और वनस्पति आदि का जीव । होना। एक विशेष-नाम, एक नौकर का नाम । थिर वि [स्थिर] निश्चल, निष्कम्प । निष्पन्न, काय पुं. एकेन्द्रिय जीव । °णाम न सम्पन्न । णाम न [°नामन्] कर्म-विशेष [°नामन्] स्थावरत्व-प्राप्ति का कारण भूत | जिसके उदय से दन्त, हड्डी आदि अवयवों कर्म । की स्थिरता होती है। वलिया स्त्री थासग [दे] कुदाल । [शवलिका]जन्तु-विशेष, सर्प की एक जाति । थासग , पुं [स्थासक] दर्पण, शीशा। थिरणाम वि [दे] चञ्चल-मनस्क । थासय । दर्पण के आकार का पात्र थिरण्णेस वि [दे] अस्थिर, चञ्चल । हेतु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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