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________________ णिदाह - णिद्धमाय संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष नरक - स्थान | णिदाह पुं [ निदाह] असाधारण दाह । णिदेस पुं [ निदेश ] आज्ञा, हुकुम । णिदेसिअ वि [निदेशित ] प्रदर्शित । उक्त, कथित । fara a [ निर्दा] दावानल-रहित । जंगलरहित । पिट्ठि वि [निर्दिष्ट ] कथित, उक्त । प्रतिपादित, निरूपित | णिदोच्च न [ दे] भय का अभाव | स्वास्थ्य, तन्दुरुस्ती । वि [निर्देष्टृ ] निर्देश करनेवाला । " णिद्दंझाण न [निद्राध्यान] निद्रा में होता णिद्दिस सक [निर् + दिश् ] उच्चारण करना, दुर्ध्यान-विशेष । कथन करना । प्रतिपादन करना, निरूपण ध्यान, दिवि [निर्द्वन्द्व ] द्वन्द्व-रहित, क्लेश-रहित । णिद्दंभ वि [निर्दंम्भ] दम्भ-रहित, कपट रहित । गिद्दडी (अप) देखो णिद्दा = निद्रा । गिद्दड्ढ वि [निर्दग्ध] जलाया हुआ, भस्म किया हुआ । पुं. नृप - विशेष । रत्नप्रभा नामक नरक - पृथिवी का एक नरकावास | मज्झ पुं [ मध्य] नरकावास - विशेष, एक नरक- प्रदेश । °वत्त पुं [°ावर्त] नरकावास-विशेष । सिणिद्देसग [ वशिष्ट ] नरक- प्रदेश - विशेष । भस्म करना । णिद्दा अक [नि + द्रा ] निद्रा लेना । णिद्दा स्त्री [निद्रा ] नींद | वह निद्रा जिसमें एकाध आवाज देने पर ही आदमी जाग उठे । °अंत वि [°वत्] निद्रायुक्त, निद्रित । करी स्त्री. लता-विशेष | °णिद्दा स्त्री [ निद्रा ] वह निद्रा जिसमें बड़ी कठिनाई से आदमी उठाया लव [वत् ] निद्रावाला | अवि [द] निद्रा देनेवाला । णिद्दाअ वि [निद्रा ] जो नींद में हो । गिद्दा वि [निर्दा ] अग्नि-रहित । ३९३ णिद्दारिअ वि [निर्दारित] खण्डित, विदारित । अवि [निर्दा] पैतृक धन से वर्जित । fraणी स्त्री [निद्राणी] विद्यादेवी विशेष | या देखो दा । ५० Jain Education International यि वि [निर्दय ] निष्ठुर । णि न [निर्दलन ] मर्दन, विदारण | वि. मर्दन करनेवाला | fate वि [निर्दोष ] दूषण वर्जित विशुद्ध । 1 णिद्दह सक [ निर् + दह, ] जला देना, गिद्ध न [स्निग्ध | स्नेह, रस-विशेष । वि. स्नेहयुक्त, चिकना । कान्ति-युक्त | द्धित व [निर्मात] अग्नि-संयोग धित, मल-रहित । धिस वि [दे] निर्दय । निर्लज्ज । णिङ्खण्ण वि [निर्धान्य] धान्य-रहित । द्विणवि [निर्धन] अकिंचन । द्धि व [] अविभिन्न गृह, एक ही घर में रहनेवाला । द्धिमण न [ दे] खाल, मोरी, पानी जाने का करना । णिदुक्ख वि [निर्दुःख ] दुःख-रहित, सुखी । णिदुर पुं [दे. नेत्तर] देश-विशेष | सिणवि [निदूषण ] निर्दोष | णिस पुं [ निर्देश] लिंग या अर्थ- मात्र का कथन । विशेष का अभिधान । निश्चयपूर्वक कथन । प्रतिपादन, निरूपण । आज्ञा । वि. जिसको देश निकाले की आज्ञा हुई हो वह । वि [निर्देशक ] निर्देश करने सिय वाला । गिद्दोत्थ न [ निर्दोःस्थ्य] दुःस्थता का अभाव | वि. स्वस्थ | विशो रास्ता । द्धिमण न [ निर्मान ] तिरस्कार। पुं. यक्षविशेष | द्धिमा वि [] अविभिन्न गृह, एक ही घर For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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