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________________ ३८८ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिग्गंथ-णिच्चय णिग्गंथ देखो णिअंठ। । णिग्गोह पुंन्यग्रोध] बरगद, बड़ का पेड़ । णिग्गंथ वि [नैर्ग्रन्थ] निर्ग्रन्थ-सम्बन्धी। । परिमंडल न [परिमण्डल] वटाकार णिग्गंथी स्त्री [निर्ग्रन्थी] जैन साध्वी । शरीर का आकार। णिग्गच्छ । अक [निर् + गम्] बाहर णिग्घंट , देखो णिघंटु । णिग्गम , निकलना। णिग्घटु । णिग्गम पुं [निर्गम] उत्पत्ति । बाहर निकलना, णिग्घट्ट वि [दे] निपुण, चतुर । पसार करना। दरवाजा । बाहर जाने का णिग्घण देखो णिग्घिण। रास्ता । प्रस्थान । णिग्धत्तिअ वि [दे] फेंका हुआ । णिग्गमण न [निर्गमन] निःसरण, बाहर णिग्घाय पुं [निर्घात] राक्षस-वंश का एक निकलना । पलायन, भाग जाना । अपक्रमण । राजा। आघात । बिजली का गिरना। णिग्गय वि [निर्गत] निःसृत, जस वि | व्यन्तर-कृत गर्जना । विनाश । उच्छेदन । [यशस्] जिसका यश बाहर में फैला हो । | णिग्घिण वि [निघृण] निर्दय । °ामोअ वि [°मोद] जिसकी सुगन्ध खूब | णिग्घेउं णिगिण्ह का हेकृ. । फैली हो । णिग्घोर वि [दे] दया-हीन । णिग्गय वि [निर्गज] हाथी-रहित । णिग्घोस पुं [निर्घोष] महान् अव्यक्त शब्द । णिग्गह देखो णिगिण्ह । णिघंटु पुं [निघण्टु] शब्द-कोश । णिग्गह पुं [निग्रह] दण्ड, शिक्षा । निरोध, | णिघस पुं [निकष] कसौटी का पत्थर । रुकावट । काबू में रखना, नियमन । 'ट्ठाण न | कसौटी पर की जाती सुवर्ण की रेखा । [स्थान] न्याय-शास्त्र प्रसिद्ध प्रतिज्ञा-हानि | णिचय पुं [निचय] संग्रह । समूह । उपचय, आदि पराजय-स्थान । पुष्टि । णिग्गहिय। वि [निगृहीत] जिसका निग्रह | णिचिअ वि [निचित व्याप्त, भरपूर । निबिड़, णिग्गहीय , किया गया हो वह । पराजित, | पुष्ट । पराभूत । णिचुल वि [निचुल] वंजुल वृक्ष । णिग्गा स्त्री [दे] हरिद्रा । णिच्च वि [नित्य] शाश्वत । न. निरन्तर, णिग्गाल पुंन [निर्गाल] निचोड़, रस । सर्वदा । °च्छणिय वि [°क्षणिक] निरन्तर णिग्गालिय वि [निर्गालित] गलाया हुआ। । उत्सववाला । °मंडिया स्त्री [°मण्डिता] णिग्गाहि वि [निग्राहिन] निग्रह करनेवाला । जम्बू वृक्ष । °वाय पुं [°वाद] पदार्थों को णिग्गिण्ण वि [दे. निर्गीर्ण] निर्गत, बाहर | नित्य माननेवाला मत । °सो अ [°शस्] निकला हुआ । वमन किया हुआ । सदा। लोअ, लोग, लोव पुं णिग्गिण्ह देखो णिगिण्ह। [लोक] एक विद्याधर-राजा । ग्रहाधिष्ठायक णिग्गिलिय वि [निर्गलित] वान्त । देव-विशेष । न. नगर-विशेष । वि. सर्वदा णिग्गुंडी स्त्री [नर्गुण्डी] औषधि-विशेष, वन- प्रकाशवाला । स्पति संभालू । णिच्च देखो णीय = नीच । णिग्गुण वि [निर्गुण] गुण-रहित, गुण-हीन । णिच्चक्खु वि [निश्चक्षुस्] अन्धा । णिग्गुण्ण न [नैर्गुण्य] निर्गुणत्व । | णिच्चट्ट (अप) वि [गाढ़] निबिड । णिग्गूढ वि [निर्गुढ] स्थिर रूप से स्थापित। । णिच्चय देखो णिच्छय । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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