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________________ ३८४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष णिआण-णिओग णिआण न [निदान] आरम्भ, सावद्य | णिउक्कण पुं [दे] कौआ । वि: मूक, वाक्-शक्ति व्यापार । रोग-कारण, रोग की पहचान । से हीन ।। कारण, किसी व्रतानुष्ठान की फल-प्राप्ति का | णिउज्ज न [न्युब्ज] आसन-विशेष । अभिलाष संकल्प-विशेष । मूल कारण । कड | णिउज्जम वि [निरुद्यम] आलसी । वि [कृत्] जिसने अपने शुभानुष्ठान के फल | णिउड्ड अक [मस्ज्, नि + ब्रुड्] मज्जन का अभिलाष किया हो वह । °कारि वि | | हा वह। कार विकरना, डूबना। [ 'कारिन् ] वही अनन्तर उक्त अर्थ । णिउण वि [निपुण] चतुर, कुशल । सूक्ष्म, जो णिआण न [निपान] कूप या तालाब के पास | सूक्ष्म बुद्धि से जाना जा सके । पशुओं के जल पीने के लिए बनाया हुआ | णिउण वि निपुण नियत गुणवाला। जल-कुण्ड, आहाव, हौदी, चरही। सुनिश्चित, विनिर्णीत । णिआणिआ स्त्री [दे] खराब तृणों का | णिउणिय वि [नैपुणिक] दक्ष । उन्मूलन । | णिउत्त वि [नियुक्त] कार्य में लगाया हुआ । णिआम देखो णिअम = नियमय । निबद्ध । . णिआम देखो णिकाम । णिउत्त वि [निवृत्त] उपरत, विमुख, विरक्त । णिआमग ) वि [नियामक] नियन्ता । णिउत्त वि [निर्वृत्त] निप्पन्न, सिद्ध । णिआमय । निश्चायक, विनिगमक ।। णिउत्ति स्त्री [निवृत्ति] विराम । णिआय पुं [नियाग] प्रशस्त धर्म । णिउद्ध न [नियुद्ध] बाहु-युद्ध । णिआर सक [काणेक्षितकृ] कानी नजर से णिउर पुं निकुर] वृक्ष-विशेष । देखना। णिउर न [नूपुर] पैंजनी, पायल । णिआह पुं [निदाघ] ग्रीष्म ऋतु । उष्ण, णिउर वि [दे] छिन्न । जीर्ण, पुराना । गरमी। णिउरंब , न [निकुरम्ब] समूह [निकणिइअ वि [नैत्यिक] नित्य का। णिउरुंब । रुम्ब] जत्था । णिइग, वि [दे. नित्य, नैत्यिक] शाश्वत, णिउल पुं [दे] गाँठ, गठरी । णिइय अविनश्वर । णिऊढ वि [निगूढ] प्रच्छन्न । णिइव वि [निष्कृप] निर्दय, कठोर । णिएअ वि [नियत] नियम-युक्त, प्रतिबद्ध । णि उअ वि [निवृत] परिवेष्टित, परीक्षित । णिएल्ल = निज, स्वकीय । णिउअ वि [नियुत] सुसंगत, सुश्लिष्ट । णिओअ सक [नि+योजय] किसी कार्य में णिउंचिय वि [निकुञ्चित] संकुचित, सकुचा लगाना। हुआ, थोड़ा मुड़ा हुआ। णिओअ देखो णिओग । आज्ञा, आदेश । णिउंज सक [नि+युज्] जोड़ना, संयुक्त, णिओइअ वि [नैयोगिक] नियोग-सम्बन्धी । करना, किसी कार्य में लगाना । | णिओग पुं [नियोग] मुक्ति । णिउंज पुं [निकुञ्ज] गहन, लता आदि से | णिओग पुं [नियोग] नियम, आवश्यक निबिड़ स्थान । गह्वर ।। कर्तव्य । सम्बन्ध, नियोजन। अनुयोग, सूत्र णिउंभ पुं [निकुम्भ] कुम्भकर्ण का एक पुत्र । की व्याख्या । व्यापार, कार्य । अधिकारणिउंभिला स्त्री [निकुम्भिला] यज्ञ-स्थान । प्रेरण। राजा, आज्ञा-विधाता। गाँव । णिउक्क वि [दे] तूष्णीक । क्षेत्र, भूमि । संयम, त्याग । देखो णिओअ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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