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________________ २० अग्घा सक [ आ + घ्रा ] संघना | अग्घाड सक [पूर्] पूरा करना । अग्घाड पुं [दे] वृक्ष - विशेष, अपामार्ग, चिचड़ा, लटजीरा | वाणवि [ दे] तृप्त । अग्घाय वि [आघात] सूंघा हुआ । अग्घियवि [ अति] बहुमूल्य, कीमती । | अचिरजुवइ देखो अइ रजुवइ । अचिरा देखो अइरा । संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष पूजित । अग्घोदय न [ अर्धोदक] पूजा का जल । अघ न पाप । वि. शोचनीय, शोक का हेतु । अघो देखो अहो । अचक्खु पुंन [अचक्षुस् ] आँख के सिवाय बाकी इन्द्रियाँ और मन | वि. अंधा । दंसण न [दर्शन] आँख को छोड़ बाकी इन्द्रियाँ और मन से होने वाला सामान्य ज्ञान । 'दंसणावरण न [° दर्शनावरण] अचक्षुर्दर्शन को रोकनेवाला कर्म । फास पु [ स्पर्श] अंधकार । अचक्खुस वि [अचाक्षुष ] जो आँख से देखा न जा सके । अचवखुस्स वि [अचक्षुष्य ] जिसको देखने का मन न चाहता हो । अचर वि पृथिव्यादि स्थिर पदार्थ । अचल विनिश्चल । पुं यदुवंश के राजा अन्धकवृष्णि के एक पुत्र का नाम । एक बलदेव का नाम । पर्वत । एक राजा, जिसने रामचन्द्र के छोटे भाई के साथ जैन दीक्षा ली थी । पुरन ब्रह्म- द्वीप के पास का एक नगर । पन [त्मन् ] हस्तप्रहेलिका को ८४ लाख से गुणने पर जो संख्या लब्ध हो वह, अन्तिम संख्या | 'भाय पु [भ्रातृ] भगवान् महावीर का नववाँ गणधर । अचल पुं छठवाँ रुद्र पुरुष । अचल न [ दे] घर । घर का पिछला भाग । वि. कहा हुआ । निर्दय । नीरस, सूखा । अचला स्त्री पृथिवी । एक इन्द्राणी । अचित वि [ अचिन्त ] निश्चिन्त । Jain Education International अग्घा - अचित वि [ अचिन्त्य ] अनिर्वचनीय, अद्भुत । अचितियवि [अचिन्तित ] आकस्मिक, असंभावित | अचित्त वि जीव-रहित, अचेतन । अचियंत अचियत्त -अच्चन्भुय वि [ दे] अनिष्ट | न. अप्रीति । सहन करना । अचिराभा स्त्री बिजली । अचेल न वस्त्रों का अभाव । अल्प-मूल्यक वस्त्र | थोड़ा वस्त्र । वि. वस्त्र रहित । जीर्ण वस्त्र वाला । अल्प वस्त्र वाला । मैला | परिसह, परीसह पुं [° परिषह, परीषह ] वस्त्र के अभाव से अथवा जीर्ण, अल्प या कुत्सित वस्त्र होने से उसे अदीन भाव से अचेलग वि [अचेलक] नग्न | फटा-टूटा वस्त्र वाला । मलिन वस्त्र वाला | अचेलय अल्प वस्त्र वाला । निर्दोष वस्त्र वाला । अनियत रूप से वस्त्र का उपभोग करनेवाला | अच्च सक [अ] पूजना । अच्च पुं [अर्च्य] लव ( काल मान) का एक भेद । वि. पूजनीय | For Private & Personal Use Only अच्चंग न [अत्यङ्ग] भोग के मुख्य साधन | अच्चंत वि [ अत्यन्त ] हद से ज्यादा । थावर वि [° स्थावर ] अनादि काल से स्थावर-जाति में रहा हुआ । " दूसमा स्त्री [° दुष्षमा ] देखो दुस्समदुस्समा । अचंति वि [आत्यन्तिक ] अत्यन्त शाश्वत । अच्चगवि [अर्चक | पूजक | अच्चगल वि [अन्य] निरंकुश | अच्चणिया स्त्री [अर्चनिका ] अर्चन । अच्चत वि [अत्यक्त] नहीं छोड़ा हुआ । अञ्चत्थवि [अत्यर्थ] बहुत । गंभीर अर्थ वाला । अत्यंत । अच्चब्भुय वि [अत्यद्भुत ] बड़ा आश्चर्य www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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