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________________ छइ-छट्ठी संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष ३२९ प्राकृत, संस्कृत, मागधी, शौरसेनी, पैशाचिका । अनुसार बरतना । णुवत्तय वि [नुवर्तक] और अपभ्रंश ये छः भाषाएँ। °मासिय, मरजी का अनुसरण करनेवाला । °म्मासिय वि [षाण्मासिक] छः मास में छंद पुंन [छन्दस्] स्वच्छन्दता । अभिलाष । होनेवाला, छः मास सम्बन्धी । वरिस वि आशय, अभिप्राय । छन्दः-शास्त्र । वृत्त । वार्षिक] छः वर्ष की उम्रवाला । वीस | °ण्णुय वि [°ज्ञ] छन्द का जानकार । देखो व्वीस। विवह वि [विध] छः | छंदण पुंन [छादन] ढकना, ढक्कन । प्रकार का। वीस स्त्रीन [विंशति] छंदण न [छन्दन] निमन्त्रण, प्रार्थना । छब्बीस । 'व्वीसइम वि [विंशतितम] छंदण न [वन्दन] प्रणाम । छब्बीसवाँ । लगातार बारह दिनों का उप- छंदा स्त्री. दीक्षा का एक भेद, अपने या दूसरे घास । °सट्ठि स्त्री [°षष्टि] छियासठ। के अभिप्राय विशेष से लिया हुआ संन्यास । °स्सयरि स्त्री [°सप्तति] छिहत्तर । हा छंदो° देखो छंद = छन्दस् । देखो द्धा। छक्क वि [षट्क] छक्का, छः का समूह । छइ देखो छवि = छवि । छग देखी छ = षष् । छइअ वि [स्थगित] आच्छादित, तिरोहित । । छग न [दे] पुरीष, विष्ठा । छइल । वि [दे] विदग्ध, चतुर । छग देखो छक्क । छइल्ल छगण न [स्थगन] पिधान, ढकना । छउअ वि [दे] कृश । छगण न [दे] गोबर । छउम पुन [छद्मन्] कपट, माया । बहाना । छगणिया स्त्री [दे] गोइंठा, कण्डा । आच्छादन । न. ज्ञानावरणीय आदि चार घाती छगल पुस्त्री. बकरा । "पुर न. नगर-विशेष । कर्म। छग्ग देखो छक्क । छउमत्थ वि [छद्मस्थ] असर्वज्ञ, सम्पूर्ण ज्ञान छग्गुरु पुं [षड्गुरु] एक सौ और अस्सी दिनों से वञ्चित । राग-सहित । का उपवास । तीन दिनों का उपवास । छउलूअ देखो छलूअ । छच्छंदर पुन [दे] मूसे या चूहे की एक जाति । छंकुई स्त्री [दे] कपिकच्छू, वृक्ष-विशेष, केवांच, छज्ज अक [ राज् ] शोभना, चमकना । कवाछ। छजिआ स्त्री [दे] पुष्प-पात्र, चंगेरी । छंट पुं [दे] जल का छींटा, जलच्छटा । वि. छट्टा [दे] देखो छंटा। शीघ्र, जल्दी करनेवाला । छ? वि [षष्ठ] छठवाँ । न. लगातार दो दिनों छंट सक [सिच्] सींचना। का उपवास । °क्खमण न[°क्षमण, क्षपण] छंड देखो छड्ड % मुच् । लगातार दो दिनों का उपवास । °क्खमय छंडिअ वि [दे] छन्न, गुप्त । पुं [क्षमक, °क्षपक]दो-दो दिनों का बराबर छंद सक [छन्द्] चाहना, अनुज्ञा देना, सम्मति उपवास करनेवाला तपस्वी। भत्त न देना । निमन्त्रण देना। [°भक्त] लगातार दो दिनों का उपवास । छंद पुन [छन्द] इच्छा, अभिलाषा । अभिप्राय, भत्तिय वि [°भक्तिक] लगातार दो दिनों आशय । वशता, अधीनता। चारि वि का उपवास करनेवाला। [चारिन् ] स्वच्छन्दी । इत्त वि [°वत्] छट्ठी स्त्री [षष्ठी] तिथि-विशेष । सम्बन्धस्वैरी । णुवत्तण न [°ानुवर्तन] मरजी के विभक्ति । जन्म के बाद किया जाता उत्सव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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