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________________ खर-खलिण संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष [°काण्ड] रत्नप्रभा पृथिवी का प्रथम काण्ड- खरहर अक [खरखराय] 'खर-खर' आवाज अंश-विशेष । 'कम्म न [°कर्मन्] जिसमें | करना । अनेक जीवों की हानि होती हो ऐसा काम । खरहिअ पुं [दे] पौत्र । कम्मिअ वि [°कमिन्] निष्ठुर कर्म करने- खरा स्त्री. नेवला की तरह भुज से चलनेवाला वाला । पु. कोतवाल । °किरण पुं. सूरज । जन्तु-विशेष । °दूसण पुं [°दूषण] इस नाम का एक विद्या- खरिअ वि [दे] भुक्त । धर राजा। नहर पु [°नखर] श्वापद । खरिआ स्त्री [दे] दासी । जन्तु, हिंसक प्राणी। निस्सण पु खरिंसुअ पु [दे. खरिशुक] कन्द-विशेष । [°निःस्वन] इस नाम का रावण का एक खरुट्टी स्त्री [खरोष्ट्रो] एक प्राचीन लिपि । सुभट । “मुह पुं [°मुख] अनार्य-देश-विशेष ।। गांधार लिपि । अनार्य देश-विशेष का निवासी । °मुही स्त्री खरुल्ल वि [दे] कठिन, कठोर । स्थपुट, विषम [°मुखी] वाद्य-विशेष । नपुंसक दासी । यर और ऊँचा। वि [°तर] विशेष कठोर । पु. इस नाम का खरोट्टिआ स्त्री [खरोष्ट्रिका] लिपि-विशेष । एक जैन गच्छ । "सन्नय न [°संज्ञक] तिल खल अक [स्खल] गिरना । भूलना । रुकना । का तेल । °साविआ स्त्री [°शाविका] | अपसरण करना। लिपि-विशेष । स्सर पु [ स्वर] परमा- | खल अ. [खलु] पादपूर्ति में प्रयुक्त होता धार्मिक देवों की एक जाति । अव्यय । खर वि [क्षर] विनश्वर । खल वि. दुर्जन । न. धान साफ करने का खरंट सक [खरण्टय] निर्भर्त्सना करना । लेप | स्थान । पू वि. खलिहान या खलियान को करना। साफ करनेवाला। खरंट वि [खरण्ट] धूत्कारनेवाला । उपलिप्त खलइअ वि [दे] खाली। करनेवाला । अशुचि पदार्थ । खलक्खल अक [खलखलाय] 'खल-खल' खरंटण न [खरण्टन] निर्भर्त्सन । प्रेरणा । आवाज करना । खरंसूया स्त्री [दे] वनस्पति-विशेष । खलगंडिअ वि [दे] उन्मत्त । खरड पु [दे] हाथी की पीठ पर बिछाया खलणा स्त्री [स्खलना] निपतन । विराधना । अटकायत । जाता आस्तरण । खरड सक [लिप्] लेपना, पोतना । खलभलिय वि [दे] क्षुब्ध । खरड पु [खरट] एक जघन्य मनुष्य जाति । खलहर । पु[खलखल] नदी के प्रवाह की खरडिअ वि [दे] रूखा । भग्न, नष्ट । खलहल , आवाज । खरण न [दे] बबूल वगैरह की कण्टक-मय | खला अक [दे]खराब करना, नुकसान करना। डाली। खलिअ वि [स्खलित] रुका हुआ। गिरा खरफरुस पु [खरपरुष] एक नरक स्थान । हुआ, पतित । न. अपराध, भूल । खरय पु [खरक] भगवान् महावीर के कान खलिअ वि [खलिक] खल से व्याप्त, खलिमें से खीला (मांस कील) निकालनेवाला एक खचित । वैद्य। खलिण पुन [खलिन] लगाम । कायोत्सर्ग का खरय पु [दे] नौकर । राहु । एक दोष । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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