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________________ ओज्झरी-ओइंपिअ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दो कोष १९३ ओज्झरी स्त्री [दे] आँत का आवरण । : ओणणअ वि दे] अभिभूत । ओज्झा सक [अप+ ध्या] खराब चिन्तन ओण्णिद्द न [औन्निद्रय] निद्रा का अभाव । करना। ओण्णिय वि [औणिक] ऊन का बना हुआ । ओज्झा देखो अउज्झा। ओणेज वि [उपनेय] साँचे में ढाल कर बना ओज्झाय देखो उवज्झाय । हुआ फूल आदि, साँचे से बनता मोम का ओज्झाय वि [दे] दूसरे को प्रेरणा कर हाथ ! पुतला। से लिया हुआ। ओत्तलहअ पुं [दे] विटप। ओज्झावग देखो उवज्झाय । ओत्ताण देखो उत्ताण । ओट्ठ पुं [ओष्ठ] अधर । ओत्थ सक [स्थग्] ढकना । ओद्विय वि [औष्ट्रिक] उष्ट्र-सम्बन्धी, उष्ट्र के ओत्थअ वि [अवस्तृत] फैला हुआ । आच्छाबालों से बना हुआ। दित । ओडड्ढ वि [दे] रागी। ओत्थअ वि [दे] अवसन्न, खिन्न । ओड्ड पुं [ओड्र] उत्कल देश । वि. उत्कल देश ओत्थइअ देखो ओच्छइय । का निवासी । ओत्थर देखो ओच्छर । ओड्डिअ वि [ओड्रीय] उत्कलदेशीय । ओत्थर पुं [दे] उत्साह । ओड्ढण न [दे] ओढ़न, उत्तरीय ।। ओत्थरिअ वि [दे] आक्रान्त । जो आक्रमण ओड्ढिगा स्त्री [दे] ओढ़नी । करता हो वह। ओढण न [दे] अवगुण्ठन ।। ओत्थल्ल देखो उत्थल्ल= उत् + स्तु । ओण देखो ऊण = ऊन । ओत्थल्लपत्थल्ला देखो उत्थल्लपत्थल्ला । ओणंद सक [अव + नन्द्] अभिनन्दन करना। ओत्थाडिय वि [अवस्तृत] बिछाया हुआ। ओणम अक [अव+नम्] नीचे नमना । ओत्थार सक [अव+स्तारय] आच्छादित ओणय वि[अवनतानमा हआ। न.नमस्कार। करना। ओणल्ल अक [अव+लम्ब्] लटकना। | ओदइग । पुन [औदयिक] उदय, कर्मओणविय वि अवनमित नमाया हआ। ओदइय } विपाक । वि. उदय निष्पन्न । ओणाम सक [अव+नमय] नीचे नमाना। पुं कर्मोदय रूप भाव । वि. उदय होने पर ओणामणी स्त्री [अवनामनो] एक विद्या, होनेवाला। जिसके प्रभाव से वृक्ष वगैरह स्वयं फलादि ओदच्च न [औदात्य] उदात्तता । श्रेष्ठता । देने के लिए अवनत होते हैं। ओदज न [औदार्य] उदारता । ओणिअत्त अक [अपनि + वृत्] पीछे हटना। ओदण न [ओदन] भात । वापिस आना। ओदरिय वि [औदरिक] पेट भरा, पेट भरने ओणिमिल्ल वि [अवनिमीलित] मुद्रित । के लिए ही जो साधु हुआ हो वह ।। मूंदा हुआ। ओदहण न [अवदहन] तप्त किये हुये लोहे के ओणियट्ट देखो ओणिअत्त । कोश वगैरह से दागना। ओणियव्व पुं [दे] वल्मीक, चींटियों का खुदा ओदारिय न [औदार्य] उदारता । हुआ मिट्टी का ढेर। ओद्द वि [आर्द्र] गीला । ओणीवी स्त्री दे] नीवी, कटि-सूत्र । ओइंपिअ वि [दे] आक्रान्त । नष्ट । २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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