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________________ १७८ उवारूढ वि [उपारूढ ] आरूढ़ । उवालंभ सक [उपा + लभ्] उलाहना देना । उवालद्ध वि [उपालब्ध] जिसको उलाहना दिया गया हो वह | संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष लेटने से उवालह सक [ उपा + लभ्] उलाहना देना । उवावत्त पुं [उपावृत्त] वह अश्व जो श्रममुक्त हुआ हो । उवावत्तिद (शौ) वि [ उपावृत्तित] अश्व से युक्त । उपर्युक्त उवास स [ उप + आस् ] उपासना करना । उवास पुं [ अवकाश] खाली जगह, आकाश | उवासंग वि [ उपासक ] उपासना करने वाला, सेवक । पुं. श्रावक, जैन या बौद्ध गृहस्थ । 'दसा स्त्री ['दशा] सातवाँ जैन अंग ग्रन्थ । 'पडिमा स्त्री [' प्रतिमा] श्रावकों को करने योग्य नियम - विशेष | उवासणा स्त्री [उपासना ] क्षौर कर्म; हजामत वगैरह सफाई | सेवा | उवासय देखो उवासग । उवासय पुं [ उपाश्रय ] जैन मुनियों का निवासस्थान । उवाहण सक [ उपा + हन्] विनाश करना, मारना । उवाहणा देखो उवाणहा | वाहि पुंस्त्री [उपाधि] कर्म-जनित विशेषण | सामीप्य, अस्वाभाविक धर्म । उवि सक [ उप + इ] समीप आना । स्वीकार करना । प्राप्त करना । उवि देखो अविअ = अपि च । उवि वि [ उपेत ] युक्त | उवि न [दे] शीघ्र | वि. परिकर्मित | उविंद पुं [ उपेन्द्र ] कृष्ण, एक देवविमान | ' वज्जा स्त्री ['वज्रा ] ग्यारह अक्षरों के पादवाला एक छन्द । उविक्ख स [ उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना । अनादर करना । Jain Education International उवारूढ -उव्वट्टण उविक्खेव पुं [उद्विक्षेप ] हजामत, मुण्डन । उवियग्गवि [उद्विग्न] खिन्न | उवीव अक [ उद् + विच् ] उद्वेग करना । वे देखो उवि । उवेक्ख देखो उविक्ख । उवेय वि [ उपेत ] समीप गत । युक्त | उवे वि [उपेय] उपाय - साध्य । उवेल्ल अक [प्र + सृ] फैलना । उस अक [उप + विश्] बैठना । उवेह सक [ उप + ईक्ष्] उपेक्षा करना, उदासीन रहना । उवेह सक [ उत् + ईक्ष्] जानना । निश्चय करना | कल्पना करना । 'उव्व देखो पुव्व । उव्वंत वि [ उद्वान्त ] वमन किया हुआ । निष्क्रान्त | उव्वक्सक [ उद् + वम् ] बाहर निकालना । वमन करना | उव्वग्ग देखो ओवग्ग । उव्वट्ट उभ [ उद् + वृत्, वर्त्तय् ] चलनाफिरना । मरना, एक गति से दूसरी गति में जन्म लेना । पद से भ्रष्ट करना । पिष्टिका आदि से शरीर के मल को दूर करना । कर्म-परमाणुओं की लघु स्थिति को हटाकर लम्बी स्थिति करना । पार्श्व को चलाना - फिराना । उत्पन्न होना, उदित होना । देखो उव्वयि । उ वि [] राग-रहित । गलित । उट्टण न [ उद्वत्तन ] शरीर पर से मल वगैरह को दूर करना । शरीर को निर्मल करनेवाला द्रव्य - - सुगन्धित वस्तु । दूसरे जन्म में जाना, मरण । पार्श्व का परिवर्तन | कर्म-परमाणुओं की ह्रस्व स्थिति को दीर्घ करना । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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