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________________ १२४ संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आवी-आसंघ आवी देखो आवि = आविस् । °कम्म देखो | आस अक [आस्] बैठना । आविकम्म। | आस पुं [अश्व] अश्व । अश्विनी नक्षत्र का आवीअ वि [आपीत] पीत । शोषित । अधिष्ठायक देव । अश्विनी नक्षत्र । मन, चित्त। आवीइ वि [आवीचि] निरन्तर, अविच्छिन्न । °कण्ण पुं [कर्ण] एक अन्तर्वीप । उसका °मरण न. मरण-विशेष । निवासी। ग्गीव पुं [°ग्रीव] एक प्रसिद्ध आवीकम्म न [आविष्कमन्] उत्पत्ति । अभि- राजा, पहला प्रतिवासुदेव । 'तर पुं. खच्चर । व्यक्ति। त्थाम पुं[स्थामन्] द्रोणाचार्य का प्रख्यात आवीड सक [आ + पीड्] पीड़ना । दबाना । पुत्र । °द्धअ पुं [ध्वज] विद्याधर वंश का आवीण न [आपीन] स्तन । एक राजा। धम्म पुं[°धर्म] देखो पूर्वोक्त आवील देखो आमेल = आपीड । अर्थ । धर वि. अश्वों को धारण करनेवाला । आवील देखो आवीड। °पुर न. नगर-विशेष । पुरा, °पुरी स्त्री आवीलण न [आपीडन] समूह, निचय । [°पुरी] नगरी-विशेष । मक्खिया स्त्री आवुअ ' [आवुक] नाटक की भाषा में पिता। [°मक्षिका] चतुरिन्द्रिय जीव-विशेष । आवुण्ण वि [आपूर्ण] भरपूर । °मद्दग, मद्दय पुं [°मर्दक] अश्व का मर्दन आवुत्त पुं [दे] भगिनी-पति । करनेवाला । "मित्त पुं [मित्र]एक जैनाभास आवुद वि [आवृत] ढका हुआ । दार्शनिक, जो महागिरि के शिष्य कौण्डिन्य आवुदि स्त्री [आवृति] आवरण । का शिष्य था और जिसने सामुच्छेदिक पन्थ आवूर देखो आपूर - आ + पूरय । चलाया था । °मुह पुं [ मुख] एक अन्तर्वीप। आवेअ सक [आ + वेदय] विनति करना, उसका निवासी । °मेह पुं ["मेघ] यज्ञनिवेदन करना । बतलाना । विशेष । °रह पुं [°रथ] घोड़ा-गाड़ी। °वार आवेअ पुं [आवेग] कष्ट, दुःख । पुं. घुड़-सवार । °वाहणियास्त्री[°वाहनिका] आवेउं (आवा का हेकृ.)। घोड़े को सवारी । °सेण पुं[°सेन] भगवान् आवेड्ढिय वि [आवेष्टित] वेष्टित, घिरा पार्श्वनाथ के पिता। पाँचवें चक्रवर्ती का हुआ। पिता । 'रोह पुं[°रोह] घुड़-सवार । आवेड देखो आमेल। आस पुंस्त्री [आश] भोजन । आवेढ पुं [आवेष्ट] वेष्टन । मण्डलाकार आस पुं. फेंकना। करना। आस न [आस्य] मुख । आवेयण न [आवेदन] निवेदन, मनो-भाव का आसइ वि [आश्रयिन्] आश्रय-स्थित । प्रकाश-करण । आसंक सक [आ + शङ्क] सन्देह करना । आवेवअ वि [दे] विशेष आसक्त । प्रवृद्ध, | अक. भयभीत होना। बढ़ा हुआ। आसंका स्त्री [आशङ्का] भय, वहम, संशय । आवेस सक [आ + वेशय्] भूताविष्ट करना । सम्भावना । आवेस पुं [आवेश] अभिनिवेश । जोश । भूत- आसंग पुं [दे] शय्या-गृह । ग्रह । प्रवेश । आसंग पुं [आसङ्ग] आसक्ति, अभिष्वंग। आवेसण न [आवेशन] शून्य-गृह । सम्बन्ध । रोग। आस देखो अस्स % अस्त्र । आसंघ सक [सं + भावय] सम्भावना करना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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