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________________ १०७ आगरिसणी-आघुम्म संक्षिप्त प्राकृत-हिन्दी कोष आगरिसणी स्त्री [आकर्षणो] विद्या-विशेष । , प्राप्त । आगल सक [आ + कलय] जानना । लगाना। आगासिय वि [आकर्षित] खींचा हुआ। पहुँचाना । संभावना करना । आगासिया स्त्री [आकाशिकी] आकाश में आगल्ल वि [आग्लान] ग्लान, बीमार । गमन करने की लब्धि-शक्ति । आगस सक [आ+ कृष] खींचना । आगाह सक [अव + गाह.] अवगाहन करना, आगह देखो आगाह । स्नान करना । आगहिअ वि [आगृहीत] संगृहीत । आगिइ स्त्री [आकृति] आकार, रूप, मूर्ति । आगाढ वि. प्रबल, दुःसाध्य । अपवाद, खास आगिट्ठि स्त्री [आकृष्टि] आकर्षण । कारण । अत्यन्त गाढ । जोग पुं [°योग] । आगी देखो आगिइ । योग-विशेष, गणि-योग । °पण्ण न [प्रज्ञ] आगु पुं [आकु] इच्छा । शास्त्र, आगम । 'सुय न [°श्रुत] आगम- आघं देखो आघव । 'सूत्रकृतांग' सूत्र के प्रथम विशेष। श्रुतस्कन्ध का दसवाँ अध्ययन । आगामि वि [आगामिन्] आनेवाला । आघंस सक [आ+घृष् ] घर्षण करना । आगार सक [आ+ कराय] बुलाना, आह्वान ! आघंस सक [ आ+घृष् ] थोड़ा घिसना । करना । त्याग करना। आघंस वि [आघप] जल के साथ घिसकर आगार न. गृह । वि. गृहस्थ । 'त्थ विस्थ] जो पिया जा सके वह । गृही। आघयण न [दे] वध-स्थान । आगार पुं [आकार] अपवाद । इंगित, चेष्टा- आघव सक [आ + ख्या] कहना, उपदेश विशेष । आकृति, रूप । देना । ग्रहण करना। आगारिय वि [आगारिक] गृहस्थ-सम्बन्धी । आघवइत्तु वि [आख्यायक] वक्ता, उपआगाल पुं. समान प्रदेश में रहना । सम भाव । देशक । से रहना । उदीरणा-विशेष । आघविय वि [दे] गृहीत, स्वीकृत । आगास पुंन [आकाश] आकाश, अन्तराल । आघवेत्तग वि [आख्यापयितृक] उपदेष्टा, वक्ता । गमा स्त्री. विद्या-विशेष, जिसके बल से आकाश में गमन कर सकता है। गामि वि. आघस सक [आ + घस्] थोड़ा घिसना । [°गामिन्] आकाश में गमन करने वाला, आधा सक [आ + ख्या] कहना । आघा सक [आ+ध्रा] सूंघना । पक्षि-प्रभृति । 'जोइणी स्त्री [योगिनी] पक्षिविशेष । °त्थिकाय पुं [°स्तिकाय] आघाय वि [आख्यात] कथित । न. उक्ति, आकाश-प्रदेशों का समूह, अखण्ड आकाश कथन । द्रव्य । 'थिग्गलन [दे] मेघरहित आकाश आघाय पुं [आघात] एक नरक-स्थान । का भाग । 'फलिह, फालिय पुं [°स्फ विनाश । टिक] निर्मल स्फटिक-रत्न । °फालिया स्त्री आघाय पुं [आघात] वध । चोट, प्रहार । [फालिका] एक मीठा द्रव्य । इवाइ वि आघाव देखो आघव । ["तिपातिन] विद्या आदि के बल से । आघुटु वि [आघुष्ट] घोषित, जाहिर किया आकाश में गमन करनेवाला। हुआ। आगासिय वि [आकाशित] आकाश को आधुम्म अक [आ + घूर्ण ] डोलना, हिलना, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016020
Book TitlePrakrit Hindi kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1987
Total Pages910
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size19 MB
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