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________________ ४ अयायया. न० खिदानता. श्री• ६ असजि ( १३ ) पासस्था वगेरेनुं उतरवानुं स्थान. निया व करवानो भाव; फलाशंसा रहितप. साधुने न करते तेवु. Jain Education International पशु अथवा नपुंसक आदि के उतरने (ठहरने) का स्थान. जिसका निदान न किया जासके वह. बम्बई-श्रीयुत नगीनदास माणेकलाल । कठोर - भावसार मगनलाल कुबेरदास । जेतपुर- वकील जीवराज वर्धमान । लबड़ी-शेठ धीरजलाल त्रिंबकलाल । बांकानेर - शेठ बनेचंद देवजी । साधु की कल्पना में न आवे ऐसा. इस कोष की अंग्रेजी प्रस्तावना लिखने में प्रो. ए. सी. वूलनर साहिब ने जो परिश्रम उठाकर इस कोष की उपयोगिता और उपादेयता बढ़ाई है उसके लिये मैं उनका अन्तःकरण से आभारी हूं । वैसे ही श्रीयुत बनारसीदासजी एम. ए. प्रोफेसर ओरियंटल कॉलेज लाहोर, इन्हों ने कोष की उपयोगिता बढ़ाने के लिये जो अर्धमागधी व्याकरण देकर उदारता बतलाई है तथा कोष के कार्य में जो यथा समय सूचनाएँ दी हैं उनके लिये मैं आपका बहुत आभार मानता हूं । शिथिलाचारी श्रादि के उतरने (ठहरने) का स्थान इस कोष का अंग्रेजी अनुवाद श्रीयुत प्रीतमलालजी कच्छी बी. ए. ने किया है। यद्यपि आप अजैन हैं तो भी आपने इस कार्य के पूर्व ही जैन शास्त्र श्रादि का मनन कर लिया था जिस कारण आप साम्प्रदायिक व पारिभाषिक आदि शब्दों के अर्थ का भाव भजांभांति अंग्रेजी में ला सके । यद्यपि इन महाशय को शब्दानुवाद के लिये पर्याप्त द्रव्य प्रदान किया गया था तथापि इन्होंने यह कार्य केवल वैतनिक दृष्टि से ही नहीं किया, वरन् उत्साह और प्रेम के साथ किया जिसके लिये मैं आपका परम उपकार मानता हूं । इसी ही प्रकार परिडत ठाकुरदत्तजी शास्त्री ने महाराज श्री रत्नचन्द्रजी के समीप रहकर जो कोष का कार्य किया है तथा छापखाने में रहकर संशोधन के कार्य में जो परिश्रम उठाया है उसके लिये श्राप अनेक धन्यवाद के पात्र हैं । - फलाशा रहित भाव; निवाणा न करने का भाव. साधुके लेने योग्य न दो वैसा किसी भी दोष से जो अग्राह्य दोगया हो वह. इस कोष के कार्य में प्रो. एस्. के. बेलवेक्षकर एम्. ए. पीएच्. डी. डेक्कन कॉलेज पूना, ने बारम्बार अनेक सूचनाएं देकर कोष को उपयुक्त और सर्वाङ्ग सुन्दर बनाने में जो सहायता दी है तथा पति गौरीशंकर हीराचंदजी श्रोझा ने कतिपय प्रूफ संशोधन के कार्य में जो कष्ट उठाया उसके लिये मैं आपको अनेक धन्यवाद देता हूं । जिन २ ग्रामों में श्री महाराजजी ने रहकर कोष का काम किया है और वहांके संघ के जिन जिन नेताओं ने परमार्थ बुद्धि से स्वयं कोष के कार्य में सहायता दी है उन महानुभावों के नाम निम्नलिखित हैं। मैं उनका परम उपकार मानता हूं । For Private & Personal Use Only सूरत भावसार गुलाबचन्द्र कल्याय्यचन्द । धोराजी - शा. न्यालचन्द जेदजी | पोरबंदर- घेवरिया देवीदास लखमीचंद । थानगड - शेठ गोपालजी लाडका । मोरवी शेठ वीकमचंद अमृतलाल | www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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