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________________ ( १० ) अनेक ग्रामों में रहकर उपार्जन की और इस प्रकार सतरहवें वर्ष की अवस्था से लगाकर उनतीस वर्ष तक संस्कृत का अध्ययन किया तदनन्तर संवत् १३६६ से व्याख्यान देना और अवधान करना प्रारम्भ किया । आप ऐसे प्रतिभाशाली मुनिरत्न हैं कि लगातार सौ भवधान कर सकते हैं । इन श्रीमान् के अवधान कई अच्छे अच्छे ग्रामों में हुए हैं और उनकी रिपोर्ट पुस्तकाकार रूप में प्रसिद्ध हो चुकी है । बम्बई में भी एक समय श्रवधान हुए थे, उस समय महाराजजी की विद्वत्ता का प्रत्यक्ष प्रमाण करने के लिये सर चंदावरकर आदि अनेक विद्वान उपस्थित हुए और अन्त में महाराज की सामर्थ्य, विद्वत्ता और बुद्धिमत्ता की मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की है। जैन मुनियों में आपके स विद्वान, बुद्धिमान, उत्साही, परिश्रमी, विवेकी, शान्तप्रकृति और निरभिमानी मुनि थो हा होंगे । आप जैसे विशिष्ट विद्वान हैं वैसे ही धुरंधर लेखक और आशुकवि भी है। आपने कई प्रन्थों की रचना संस्कृत और गुजराती भाषा में की है जिनमें कर्तव्यकौमुदी, भावनाशतक, अजरामरजी स्वामी का जीवन-चरित्र, गर्भित भक्ताम्बर की पादपूर्ति, ३५ स्तोत्र आदि प्रधान हैं। आपके कई संस्कृत और गुजराती लेख मासिक पत्रों द्वारा प्रसिद्ध हो चुके हैं और उनका संग्रह " रत्नगद्यमालिका " नामक पुस्तक में प्रकाशित हो चुका है । यह कोष जिसके अभाव में बड़े बढ़े विद्वान जैन धर्म के अगम्य और अद्वितीय तत्वों का भाव यथावत् न समझ सकते थे और जिसके लिये आज सकल विद्वत्सनाज टकटकी लगाये हुए श्रातुरता से देख रहा था उक्त मुनिजी हां के अविश्रान्त परिश्रम का फल है । कोष की उपयोगिता । यह सन्तोष की बात है कि जैन धर्माध्यायी सज्जनों की संख्या अब दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है | भारतीय विद्वान ही नहीं, किन्तु इंग्लंड, जर्मनी, फ्रान्स, इटली, प्रमेरिका श्रादि देशों के प्रसिद्ध २ विद्वान भी इस धर्म के साहित्य को ग्रहण करने लगे हैं। इस लिये उन्हें और इतिहास - खोज करने वालों को अर्धमागधी भाषा के साहित्य का अध्ययन करना पड़ता है । इन पाठकों तथा सज्जनों के लिये कोष अमूल्य ही है। इसके सिवाय वर्तमान आर्य भाषाओं जैसे हिन्दी, गुजराती, बंगला, मराठी आदि के शब्दों की व्युत्पत्ति ढूंढ कर निकालने में तुलनात्मक भाषाशास्त्र के अध्ययन करने वाले को बड़ी कठिनाई होती है । इस कोष से वे कठिनाइयाँ भी दूर हो सकती हैं। साथ में वर्तमान देशी भाषाओं के विकास को जो चर्चा साहित्य-संसार में चल रही है, उसको भी इस ग्रन्थ से बड़ी भारी सहायता मिलने की पूर्ण संभावना है। इसके सिवाय यह कोष अर्धमागधी के अतिरिक्त संस्कृत, गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी इन चार भाषाओं में होने के कारण हर एक देश के विद्याप्रेमी को उपयुक्त हो सकता है । प्रायः आज तक जितने कोष देखने में आये हैं; वे सब केवल एक या दो ही भाषा के हैं, और इस कारण सर्व साधारण के लिये उपयुक्त नहीं हो सकते । सार्वजनिक उपयोगी बनाने के हेतु इस कोष की रचना पर विशेष ध्यान रक्खा गया है। हरएक देश के विद्यार्थियों से लेकर बड़े २ विद्वानों के भी उपयोग में या सके, इस हेतु भारत की राष्ट्र भाषा हिन्दी, राजभाषा अंग्रेजी, बादि भाषा संस्कृत तथा गुजराती का उपयोग किया गया है । अर्धमागधी शब्दों का अनुवाद उपरोक्त कही हुई भाषात्रों Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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