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________________ आप्रमाणे अर्ध-मागधीमा मागधी भाषानी केटली. एक विशेषताओ समाएली छे, अर्थात् तेनी सघळी विशेषताओनो समावेश थयेलो नथी माटे तेने अर्ध-मागधी कहेवामां आवे छे एवो खुलासो " अर्ध-मागधी " नी व्याख्या श्रापतां समवायांग (पृष्ठ १८ ) अने उवासगदसांग, (पृ. ४६) उपरनी तेमनी टीकामां अभयदेवे आपेली छ (पिश्चल प्राकृत व्या. १७). काव्योनी भाषा गद्यात्मक लेखोनी भाषाथी थोडी घणी विभिन्न जोवामां आवे छे. उदाहरणार्थ एकारान्त प्रथमा एक वचनने स्थाने घणी वखत ओकारान्त प्रथमा एक वचन जोवामां आवे छे. अर्ध-मागधी रूप 'मिलक्खु ' (सं० म्लेच्छ ) मात्र गद्यमांज जोवामां आवे छे; परन्तु काव्यमा अन्य प्राकृत भाषाओ प्रमाणे 'मेच्छ' रूप आपवामां आवेल छे. गद्य अने पद्यनी भाषामांनां तफावतोमांना केटला एकनुं कारण एवं बताववामां आवे छे, के मूळ संस्कृत गद्य पद्यादिनुं प्राकृत भाषान्तर थयेखें होवाथी आ तफावतो उद्भवेला छ । काव्य प्रन्यामां महाराष्ट्री प्राकृत नी पण केटली एक विशेषताओ जोवामां आवे छे अने तेथी श्रा प्रन्थोनी भाषाने महाराष्ट्री अने मागधीनुं मिश्रण पण कहेवामां आवेल छे. अर्वाचीन जैन ग्रन्थो अर्ध-मागधीथी थोडे अंशे मिश्रित महाराष्ट्रीना एक रूपान्तरमा लखाएला छे. भाषाना थयेला श्रा रूपान्तर ऊपरथी पापणे अनुमानी शकीए के ते समये जैन धर्मनो नैर्ऋत कोण ( दक्षिण पश्चिम दिशा) तरफ प्रचार थयेलो होवो जोइए । अर्धमागधीन मूळ उद्भव स्थान कयु ? भरते रचल कहेवामां आवता काव्यशास्त्र विषयक अतिप्राचीन ग्रन्थमा अर्धमागधीने सात भाषाप्रोमांनी एक गणवामां आवी छे; आ सातमांनी बाकानी छ था प्रमाणे छे.-~-मागधी, आवन्ती, प्राच्य, सुरसेनी, बाहलीक अने दाक्षिणात्य ( १७, ४८ ). उपरोक्त ग्रंथकारनुं कहेQ एम पण छे, के नाटकोमा श्रा भाषा, नोकरो, रजपुतो अने व्यापारीओ वापरे थे परन्तु नाटकोनी हस्तलिखित प्रतोमां ऊपर आपेलो नियम पळाएलो जोवामा प्रावतो नथी. मुद्राराक्षस नामक नाटकमां जीवसिद्धि नामनो साधु अने प्रबोधचन्द्रोदयमां लपणक, मागधी भाषा, वापरे छे एम बताववामां श्रावेल छ । तो पण मध्य एशियामां मळी श्रावेलां अश्वघोषकृत कहेवातां केटलां एक अपूर्ण बौद्ध नाटकोमांना केटलां एक संदर्भो प्राचीन अर्ध-मागधी भाषामा छे एवं ते नाटकोना विद्वान् संपादक प्रोफेसर ल्युडर्सनु मानवु छ। अशोकना दक्षिणना शिलालेखोनी भाषामा एकारान्त प्रथमा एक वचन तेमज 'स' अने 'र' बनो समावेश जोवामां आवे छे. अशोकनी पूर्वतरफनी भाषामा 'र' ने स्थाने 'ल' जोवामां आवे छे. उदाहरण-लाजा-राजा; अने मा ऊपरथी आपणे अनुमानी शकीए के मौर्य समयमा पटणानी भाषा अर्ध-मागधी न होती. जे भाषाने आपणे अर्ध-मागधी कहीए छीए ते भाषा बराबर कये स्थळे अने कये समये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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