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________________ मी करेल भाषान्तर, हॉर्नेलतुं करेल उवासगदसाश्रोनुं भाषान्तर अने बार्नेटन करेल अंतगड़दशाभो भने अणुत्तरोववाइयनु भाषान्तर ए प्रमाणे छ । (६) व्याकरणो अने पाठ्य पुस्तको। अर्ध-मागधी ( अथका आर्ष ) व्याकरणो प्राकृत वैयाकरणिकोए रचना के. देशी व्याकरणोमा मुख्य हेमचन्द्राचार्य कृत अने विदेशी साक्षरोए रचेल व्याकरणोमां मुख्य पिश्चेल कृत छे. श्री. बनारसीदास जैन ऐम. ए. एओए तैयार करेल संक्षिप्त व्याकरण आ प्रस्तावनाने जोडवामा श्रावेल छे. श्रीबनारसीदासे तैयार करेल एक अर्ध-मामधी पाठ्य पुस्तक पंजाब विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित करवामा आवनार छ । (७)श्रा कोषमां आपेली शब्द संख्या । श्रोगण पचास ग्रन्थोमाथी लगभग ५०,००० शब्दोनो संग्रह करी अत्रे समावेश करवामां आवेलो छे. आ प्रन्थोनी अंदर ११ अंगो, १२ उपांगो ७ पइण्णाश्रो, ६ छेद सूत्रो, ४ मूळसूत्रो, नन्दीसूत्र, अणुबोगद्वार अने श्रोधनियुक्ति ए ग्रन्थोनो समावेश थयेलो छे; एटले के सघळा श्वेतांबरी शास्त्रोनो अने तेने लगता सघळां मुख्य ग्रन्थोनो समाबेश थयेलो छ । (८) अर्धमागधी भाषानो इतिहास अने ते भाषानी विशेषताओ। जैन सूत्रोनी भाषाने अर्ध-मागधी कहेवामा श्रावे छे-पा सूत्रोमां कहेवामा प्रावेल छे. भगवान् महावीरे पा भाषामां जैनसिद्धान्तनो उपदेश कर्यो अने तेनी अंदर एम पण कहेवामा आवेल छ, के श्रा भाषामाथी अन्य भाषाओ शाखारूपे उद्भवेली छे। देशी वैयाकरणिको आ सूत्रांनी भाषाने " आर्षम् " ऐटले ऋषिोनी भाषा एवं नाम आपे छे. पिश्चेलकृत प्राकृत व्याकरण (१) मो नीचे निर्दिष्ट अवतरणो आपेला छ। समवायोग सुत्त १८, श्रोववाइय सूत्र ५६, पण्णवणा सूत्र ५६, हेमचन्द्र १, ३, ४, २८७, प्रेमचंद्र तर्कवागीशकृत दंडीना काव्यादर्श ऊपरनी टीका १, ३३, रुद्रटकृत काव्यालंकार ऊपर नमिसाधु कृत टीका २, १२, अने वागूभट्टकृत अलंकार तिलक, १, १. ऊपर कहेला अवतरणो उपरथी पिश्चल सिद्ध करे छ के ( १७)" आर्ष भने अर्ध-मागधी ए बमां परस्पर भेद नथी अने जैन पुरातनी सूत्रांनी गद्य अने पद्य बनेनी भाषा परंपरागत मतानुसार अर्धमागधी छे; अने हेमचन्द्र दसवेयालिय सुत्तमाथी आपेलुं उदाहरण (६३३-१६ ) पण एज मात सिद्ध करे छे"। श्रा भाषाने अर्ध-मागधी शा माटे कहवामां श्रावी ? मागधी भाषानी मुख्य विशेषताओ श्रा प्रमाणे छ 'रसोर्लशौ' एटले र' भने 'स' ने बदले अनुक्रमे 'ल' अने 'श' थाय छे; उदाहरणार्थ, रामे'ने बदले 'लामे' थाय छे, अने प्रथमा ए. व. पुं. मां ए आवे छे. अर्ध-मागधीनी अंदर 'र' अने 'स' एमना एम रहे छे. परन्तु प्र. ए. व. पुं. मां 'ए' श्रावे छ; उदाहरणार्थ 'महावीरे'; परन्तु काव्योमा प्रथमा एक वचन पुं. ओकारान्त पण घणी वखत दृष्टिगोचर थाय छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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