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________________ ( २ ) डॉ. स्वॉलीना लखवा प्रमाणे आ प्रश्न ई. स. १६०८ मां जैन श्वेतांबर कॉन्फरन्से भावनगरमां चर्चेलो हतो अने ए बाबतमां प्रो. ह. जेकोबीनो अभिप्राय पूछवामां आवतां तेश्रोए डा. स्वॉलीनुं नाम सूचवेलुं हतुं. आ कोष ते समये धारेली विशाळ योजनाने अनुसरतो नथी, कारण के अत्रे तो मात्र अर्धमागधी शब्दोनो समावेश करवामां आवेली छे । (३) श्रर्ध-मागधी शब्दसंग्रहो अने विश्व-कोषो । प्राकृत- संस्कृत शब्दकोषो सहित घणां जैन सूत्रों प्रसिद्ध थयेला छे, तेमांनां केटला एक नीचे प्रमाणे छे: १ आयारंग ( आचारांग सूत्र ) पहेलुं श्रुतस्कंध, संपादक, उवी. शुचिंग जर्मन ओरियन्टल सोसाइटी लीपभीग १६१० । २ फग्मेन्ट डर भगवती, संपादक, उवेबर, खंडकनी पुराणिक कथा, वर्लिन १८६६-६७ । ३ स्पेसिमेन डर नयधम्म कहा (ज्ञाताधर्मकथा) संपादक, पी. स्टेइनथल पहेलुं अध्ययन; लीप्भीग १८८१ ४ उवासगदसाओ (उपासकदशा ) संपादक, हार्नेल, कलकता १८६० - ६० । ५ श्रववाइय ( औपपातिक ) संपादक ई. ल्युमॅन, लीप्झीग १८८३ । ६ निरयावलीय सुत्तं, ( निरयावलिका ) संपादक, एस. जे. उवॉरेन, एमस्टर्डेम, १८७६ | कप ( कल्पसूत्र ) संपादक, ह. जेकोबी, लीझीग १८७६ | अत्रे अभिधानराजेन्द्र नामना जैन धर्मना विश्वकोषनो नाम निर्देश करवानी पण जरूर छे. लग तैयार करवानो संकल्प कर्यो. भग त्रीश वर्ष पहेला राजेन्द्र विजय नामना साधुए उपरोक्त विश्वकोष तेमणे पोताना केटलाएक शिष्योनी साथे बावीस वर्ष श्रम करी ई. स. १६१० मां अभिधान राजेन्द्रनुं पहेलुं पुस्तक ( पहेलो भाग ) बहार पाडयो. त्यार पछी बीजा चार भागो प्रसिद्ध थएला घे. अने चोथा भागनो अन्तिम शब्द " भोल " छे. हजु एक बे भागो बहार पध्ये सकल ग्रंथनी समाप्ति थशे एवी आशा छे । उपरोक्त विश्वकोषर्मा प्रत्येक प्राकृत शब्दनी पाछळ तेनुं संस्कृत रूप, संस्कृतमां विवरण, मूळप्रथमां जे स्थळे ते श्रावेलो छे तेनो निर्देश श्रने अन्य ग्रंथोमां जे विविध अर्थोमां ते बपराएलो छे तेनी अवतरणो सहित चर्चा श्रापवामा श्रावेल छे. प्रत्येक भागनां पृष्ठ १००० हजार छे अने मूल्य रु. २५ ले परंतु प्रथने विद्यार्थीश्रोने उपयोगी शब्द कोष न कहेतां पुस्तकालयोमा राखवा लायक एक वृहत्-कोष कही शकाय प्रस्तावनामा हेमचन्द्रनुं प्राकृत-व्याकरण तेमनीज करेली टीकासहित आपवामां श्रावेल छे. नामन रूपाख्यानो आपवामां जेटला शक्य तेटलां रूपो आपवामां आवेला छे पछी ते साहित्यमां मळी आवे के नहि. उदाहरणार्थ पंचमी एक वचनमां 'युष्मद् 'नां पचास रूपो श्रापवामां आवेलां वे परन्तु अर्ध-मागधी साहित्यमां श्रा रूपोमांनुं कौई पण भाग्येज जोवामां आवे छे. या विश्वकोषमां प्रत्येक विषयना सम्बन्धमा जे काई मूळ प्रन्थोमां तेमज टीकाप्रोमा आपेलुं छे ते सघळानो समावेश करवामां आवेलो थे । Jain Education International For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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