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________________ प्रस्तावना [ अनुवादक मि. पी. एन, कच्छी ] (१) अर्ध-मागधी कोषनी आवश्यकता अने उपयोगिता । पुरातनी जैन शास्त्रोना अभ्यासोश्रो श्रा कोषनो आनंदथी स्वीकार करशे. विशेषे करीने जैन धर्मनी पुरातनी भाषानो जेभोने पूर्ण परिचय नथी एवा श्रावको तेमज तुलनात्मक भाषाशास्त्र, तत्वज्ञान अथवा भारत भूमिमा प्रचलित विचारसरणी अने धर्मर्नु ऐतिहासिक अवलोकन करवाना इरादाथी श्रा भाषानो अभ्यास करनाराोने आ कोष आदरणीय थशे. ऊपर कहेला वर्गना अभ्यासीओने प्रत्येक शास्त्रीय ग्रन्थ ऊपरनी टीकाो अने ते प्रन्थने जोडेला शब्दकोषो कार आधार राखी कार्यनिर्वाह करवो पडे छे. भा उपरांत वैदिक समयथी प्रारंभीने आधुनिक भारतवर्षीय आर्यभाषामोना विविध स्वरूपोमा प्रचलित, हिन्दी आर्यभाषानी मध्यमावस्थानां सर्वे रूपांतरोनो समावेश करता एक वृहद् शब्दकोष माटे पा कोष उपयोगी साधन पूरुं पाडशे एवी आशा राखो शकाय अने ते दृष्टिथी जोता पण मा साहसिक प्रयत्ननी श्रावश्यकता सिद्ध करी शकाय तेम छे. हस्तलिखित पस्तकोमा एकज शन्दनां भिन्न भिन्न रूपो जोवामां आवे छे अने आवा शब्दो कये कये स्थळे छे अने तेना के केयां रूपो के ए जाणवा माटे अभ्यासी अथवा तो ग्रन्थसंपादकने मूळग्रन्थमा जे स्थळे ते श्रावेला छे ते दर्शावनार एक कोषनी आवश्यकता रहे छे. अर्धमागधी-भाषा पूरती श्रा आवश्यकता पूरी पाडवा माटे पा कोष समर्थ थशे. पा भाषाना अभ्यासमा प्रगति थता कदाचित् घणा रूपो अशुद्ध सिद्ध थाय परन्तु भावा अभ्यासनी वृद्धि करवाना हेतुथीज अा कोष प्रसिद्ध करवानुं कार्य हाथमा लेवामा प्रावेलुं छे। (२) कोषनी शरुपात अने रचना । ई. स. १६१२ मां डॉ. ल्युइगी स्वॉली। एक प्राकृत शब्द-कोष तैयार करवानो पोतानो इरादो जाहेर कयों ( 2. D. M. G. १६१२ पृ. ५४४). इंदोर निवासी श्री. केसरीचंदजी भंडारीए पोते एकत्र करेला शन्दो डा. स्वॉसीने मोकली आपेला परन्तु युरोपीय महान् युद्ध शरू थवाथी तेना (डॉ. स्वॉलीना) कार्यमां अंतराय आववाथी आ शब्दो तेमणे श्री. केसरीचंदजी भंडारी ने पाछा मोकली आप्या. श्री. केसरीचंदजी भंडारीए विविध जैन प्राकृतोमां श्रावेला शब्दोनो एक कोष तैयार करवा एक जैन मुनिने आग्रह कर्यो भने तेमणे ते वात स्वीकारी, अने त्रण अन्य मुनिओनी सहायता लई सूत्रोमांथी शब्दोनो संग्रह कर्यो. शब्दो संग्रह करवामा तेश्रोए पोताना पासेनी हस्तलिखित प्रतो अने बालुचर (Baluchar ) छापेक्षा प्रन्थोनो उपयोग कर्यो. ई. स. १६२० मां मारा शिष्य अने सहाध्यापक श्री. बनारसीदासजी नेपा बाबतमां सलाह आपवा माटे आमन्त्रण करवामां श्राव्यु अमे तेश्रोए डा. गुणे, डा. बेलवेलकर आ. बा. ध्रुव. वगेरे विद्वानोनी सलाह लई ठराव्यु के प्राकृत शब्दोना अर्थो इंग्रेजी, तेमज हिन्दी भने गुजराती भाषाप्रोमो प्रापवा. प्रन्थ संपादन तथा गुजराती भाषान्तर, काम स्वामी मुनि रत्नचंद्रजीए करेलुंके अने हिन्दी अने इंग्रेजी भाषान्तरो अन्य व्यक्तिओए करेला छे. आ कार्यमा लागेलो खर्च -.--. जैन कॉन्फरन्से आपवान स्वीकारेल छ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016013
Book TitleArdhamagadhi kosha Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnachandra Maharaj
PublisherMotilal Banarasidas
Publication Year1988
Total Pages591
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Gujarati, English
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size15 MB
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