SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 34
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शामिला यव मध्य शल्य बालेशको प्राप्त हया यह महाना यक्त नहीं)। वह भरतेश्वर मुझमे संक्लेशको प्राप्त हवा यह विचार बाहबलीके हृदय में विद्यमान रहता था, इसलिए केवलज्ञानने भरतकी पूजाको अपेक्षा की थी।१८६। *अन्य सम्बन्धित विषय १. सशल्य मरण -दे. मरण/१॥ -दे० वती। २. व्रती सशल्य नहीं होता। शल्य-पा.पु./सर्ग श्लोक-यह एक विद्याधर था । कौरवोंकी तरफसे पाण्डवोंके साथ लड़ाई को (१६/११६) उस युद्ध में युधिष्ठिरके हाथों मारा गया (२०/२३६)। शशिप्रभ-विजयाकी उप्सर श्रेणीका एक नगर।-दे, विद्याधर । शान्तनु-१.कुरुवंशकी वंशावली सं०१ के अनुसार शान्तिषेणका पत्र तथा धृत व्यासका पिता था। महाभारत काल से बहुत पहले हुआ था। -दे, इतिहास//५। २. कुरुवंशको वंशावली स०२ के अनुसार पराशर का पिता था, तथा महाभारतके समय हुआ।-दे. इतिहास /0/५। ३. यादव वंशकी वंशावली के अनुसार मथुराके राजा बीरका पुत्र तथा महासेनादि छः पुत्रों का पिता था। -दे. इतिहास/७/१०। शांतनु-यादव वंशको वंशावली के अनुसार कृष्णके भाई बलदेवका १४ वा पुत्र -दे इतिहास१०१० । शांतभद्र-ई. स. ७०० में न्याय विन्दु के टीकाकार एक बौद्ध मतानुयायी था। (सि. वि./३३ पं. महेन्द्र )। शांतरिक्ष-एक पौद्व मतानुयायी था। ई. स. ७४३ में तिब्बतकी यात्रा की थी। कृति-तत्त्वसंग्रह, वादन्यायकी टोका। समयई. ७०५-७६२ (सि. वि./३९ पं. महेन्द्र ) । शांति-दे. सामायिक/१/१ ।। शांति कीति-१. नन्दिसंघ भलाकारगण, मेषचन्द्र के शिष्य मेरुकीति के गुरु । समय-शक. ३२७-१४२ (ई. ७०५-७२०)। दे. इतिहास/७/२। २. शान्तिनाथ पुराण के रचयिता एक कम्न कषि । समय-ई. १९१६ । (ती.//३११)। शांति-चक्र-पूजा-दे. पूजापाठ। शांति चक्र यंत्रोद्धार-दे.यंत्र । शांतिनाथः-(म.पू./स/श्लोक-पूर्व भव सं. ११ में मगधदेशका राजा श्रीषेप था ( ६२/१४०) १० में में भोगभूमिमें आर्य हुआ (६२/ ३५७) 8वें में सौधर्म स्वर्गमें श्रीप्रभ नामक देव (६२/३७१) ८ में अर्ककोतिका पुत्र अमिततेज (६२/१५२) ७३ में तेरहवें स्वर्ग में रविचूल नामक देर हुआ (६२/४१०) छठे में राजपुत्र अपराजित हुआ। (६२/४१२.४१३) पाँचवें में अच्युतेन्द्र (६३/२६-२७) चौथे में पूर्व विदेह में बज्रायुध नामक राजपुत्र (६३/३७-३६)तोसरे में अधो प्रवेयकमें अहमिन्द्र, (६३/१४०-१४१) दूसरे में राजपुत्र मेघरथ (६/ १४२-१४३) पूर्वभव में सर्वार्थ सिद्धि में अहमिन्द्र था। वर्तमान भवमें १६वें तीर्थकर हुए हैं। (६३/५०४) युगपत सर्वभव (६/५०४) वर्तमान भव सम्बन्धी विशेष परिचय-दे. तीर्थर/ शांतिनाथ पुराण-१. कवि असग बारा (ई १८८) द्वारा रचित हिन्दी महाकाव्य । (at./४/१३) । २. आ. श्रीधर (ई. १९३२) कृत अपभ्रंश काब्य । (ती.१८) ३. सकाकीति (ई. १४०4.१४४२) कृत ३४७५ संस्कृत पच प्रमाण ग्रन्थ । (ती./३/३३०)। ३. शुभकीर्ति (.श. १५ पूर्वाधीकृत अपभ्रंश काव्य । (ती./३४१३)। शांति विधान यंत्र-दे. यन्त्र । iffarशांतिसागर-आप दक्षिण देशके भोज ग्राम (बेलगाम) के रहने वाले थे। क्षत्रिय बंशसे सम्बन्ध रखते थे। आपके पिताका नाम भीमगौड़ा और माताका नाम सत्यवती था। आपका जन्म जापाड़ कृ.६ वि.सं. १९२६ को हुआ था। ६ वर्ष की अवस्थामें आपका विवाह हो गया था परन्तु छह माह पश्चात् हो आपकी पत्नीका देहान्त हो गया। पुनः विवाह न कराया। सं. ११७२ में आपने देवेन्द्रकीर्ति मुनिसे क्षुल्लक दाक्षा धारण कर ली। और सं. १६७६ में उन्हींसे मुनि दीक्षा ले ली। उस समय आपकी आयु ४७ वर्षकी थी। आपके चारित्रसे प्रभावित होकर आपकी शिष्य मण्डली पढ़ने लगी। यहाँ तक कि जब आप नि. १९८४ में ससंघ सम्मेद शिखर पधारे तो आपके संघमें सात मुनि और मुग्नकब ब्रह्मचारी आदि थे। वर्तमान युगमें आपके समान कठोर तपश्चरण करनेवाला अन्य कोई हो सकेगा यह बात हदय स्वीकार नहीं करता। आप बास्तबमें ही चारित्र चक्रवर्ती थे। इस कलिकाल में भी आपने आदर्श समाधिमरण किया है यह बड़ा आश्चर्य है। भगवतो आराधनामें उपदिष्ट मार्गके अनुसार आपके १२ वर्षकी समाधि धारण की। सं. २००० (ई. १६४३ ) में आपने भक्त प्रत्याख्यान ब्रत धारण कर लिया और १४ अगस्त सन् १९५५ में आकर कुन्युल गिरि क्षेत्रपर इंगिनी व्रत धारण कर लिया।-१८ सितम्बर सन १६५५ रविवार प्रातः ७ मजकर १० मिनटपर आप इस नश्वर देहको त्यागकर स्वर्ग सिधार गये। २४ अगस्त १९४५ को आप अपने सुयोग्य शिष्य वीर सागर जी को आचार्य पद देकर स्वयं इस भारसे मुक्त हो गये थे। इस प्रकार आपका समय-वि. १९७६-२०१२) ई. १६१६-१६५५); (चा. सा./प्र./ व. श्रीलाल)। शांतिसेन-१. प्रन्नाट संघकी गवली के अनुसार आप श्री जयसेनके गुरु थे। समय-वि,शGि-(ती./२/४५९)।-दे. इतिहास/७/८ २. लाड़ बागड़ संघकी गुवक्लिीके अनुसार आप धर्मसेनके शिष्य तथा गोपसेनके गुरु थे। समय-वि. ६० (ई०६२३)-दे. इतिहास/७/१०। शात्यष्टक-आ. पूज्यपाद (ई. श.५) द्वारा रचित संस्कृतके ८ श्लोकोंमें निबद्ध शान्ति पाठ। शांत्याचार्य-१. सौराष्ट्र देशके वल्लभीपुर नगरमें इनके शिष्य जिनचन्द्रने इन्हें मारकर श्वेताम्बर संघकी स्थापना की। समयवि. १३६-१५६ (ई. ७-88) विशेष-दे, श्वेताम्बर । २.ई.६६३१११८ में जैन तर्क वार्तिक वृत्तिके क्र्ता जैनाचार्य थे। (सि.वि. प्र.७६५ महेन्द्र)। शाकटायन न्यास-आ, प्रभाचन्द्र (ई. १५०-१०२०) द्वारा संस्कृत भाषामें रचित न्याय विषयक ग्रन्धा। (दे. प्रभाचन्द्र) शाकल्य-एक अज्ञानवादी-दे, अज्ञानवाद । शाखा-School. (घ./५/प्र. २८)। शातंकर-आरण स्वर्गका प्रथम पटल व इन्द्रक-दे. स्वर्ग/५/३ । शापरा . बा./४/२०/२/२३६/१३ शापोऽनिष्टापादनम् ।- अनिष्ट मात कहना शाप है। शामकुंड-आर तुम्बुल्लूर आचार्य से कुछ ही पहले हुए है। आपने शामकं-थानमस षट् खण्डके प्रथम पाँच खण्डोंपर 'पद्धतिनामकटीका लिखी है। समय-ई. श. ३ का अपराध । (प. वं. १/प्र. H. L.Jain), , शामिला यव मध्य-वे यब । शांति यंत्र-दे. मन्त्र। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy