SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५९ १. सत् निर्देश सत् निर्देश . सत् सामान्यका लक्षण । द्रव्यका लक्षण सत्। -दे. द्रव्य/१।। सत् शब्दका अनेकों अर्थों में प्रयोग। सत् स्वतः सिद्ध व अहेतुक है। द्रव्यकी स्वतन्त्रता आदि विषयक । सत् सदा अपने प्रतिपक्षीकी अपेक्षा रखता है। -दे. अनेकान्त/४॥ सत्के उत्पाद व्यय ध्रौव्यता विषयक। -दे. उत्पाद । सत्का विनाश व असत्का उत्पाद असम्भव है । द्रव्य गुण पर्याय तीनों सत् हैं। -दे. उत्पाद/३/६ । असत् वस्तुओंका भी कश्चित् सत्त। -दे, असत् । सत् ही जगत्का कर्ता हर्ता है। सत्ताके दो भेद-महासत्ता व अवान्तर सत्ता । -दे, अस्तित्व । २. सत् शब्दका अनेकों अर्थों में प्रयोग स. सि./१/८/२६/६ स ( सत् ) प्रशंसादिषु वर्तमानो नेह गृह्यते । -बह (सद ) प्रशंसा आदि अनेकों अर्थों में रहता है...। रा, वा./१/८/१/४१/१६ सच्छब्दः प्रशंसादिषु वर्तते । तद्यथा प्रशंसायाँ तावत् 'सत्पुरुषः, सदश्वः' इति । क्वचिदस्तित्वे 'सन् घटः, सन् पटः' इतिा क्वचित् प्रतिज्ञायमाने-वजितः सन् कथमनृतं न यात्। 'प्रत्रजितः' इति प्रज्ञायमान इत्यर्थः। क्वचिदादरे 'सत्कृत्यातिथीन भोजयतीति' 'आदृत्य इत्यर्थः। -- सत् शब्दका प्रयोग अनेक अर्थो में होता है जैसे 'सत्पुरुष, सदश्व' यह प्रशंसार्थक सत् शब्द है । 'सन घटः, सत् पटः' यहाँ सत् शब्द अस्तित्त्व वाचक है। 'प्रत्र जितः सन्' प्रतिज्ञाबाचक है। सत्कृत्य में सत् शब्द आदरार्थक है (रा.बा./५/ ३०/८/४६५/२५)। ध. १३/५,५,८८/३५७/१ सत सुखम् । - सत्का अर्थ सुख है। on or on or सत् विषयक प्ररूपणाएँ सत् प्ररूपणाके भेद। सत् व सत्त्वमें अन्तर। सत् प्ररूपणाका कारण व प्रयोजन । सारणीमें प्रयुक्त संकेत सूची। सत् विषयक ओघ प्ररूपणा। अधःकर्म आदि विषयक आदेश प्ररूपणा । पाँचों शरीरोंकी संघातन परिशातन कृति सम्बन्धी। x 5 w ३. सत् स्वतः सिद्ध व अहेतुक है प्र. सा./त. प्र./गा, नं, यदिदं सदकारणतया स्वतः सिद्धमन्तर्बहिर्मुखप्रकाशशालितया स्वपरपरिच्छेदकं मदीयं मम नाम चैतन्यम्.. हा अस्तित्वं हि किल द्रव्यस्य स्वभावः तत्पुनरन्यसाधननिरपेक्षवादनाद्यनन्ततयाहेतुकयैक रूपया वृत्त्या ६६: न खलु द्रव्यैर्द्रव्यान्तराणामारम्भः, सर्व द्रव्याणां स्वभावसिद्धत्वात् । स्वभावसिद्धत्वं तु तेषामनादिनिधनत्वात् । अनादिनिधनं हि न साधनान्तरमपेक्षते ।६८ =सत और अकारण सिद्ध होनेसे स्वतः सिद्ध अन्तर्मुख-बहिर्मुख प्रकाशवाला होनेसे स्वपरका ज्ञायक ऐसा जो मेरा चैतन्य...180 अस्तित्व वास्तवमें द्रव्यका स्वभाव है और वह ( अस्तित्व ) अन्य साधनसे निरपेक्ष होने के कारण अनादि-अनन्त होनेसे अहेतुक, एक वृत्ति रूप...६६। वास्तव में ठपोंसे द्रव्यान्तरकी उत्पत्ति नहीं होती, क्योंकि सर्व द्रव्य स्वभावसिद्ध हैं (उनकी) स्वभाव सिद्धता तो उनको अनादि निधनतासे है। क्योंकि अनादि निधन साधनान्तरकी अपेक्षा नहीं रखता ।। पं. ध/पू./- तत्त्वं सबलाक्षणिक सन्मात्रं वा यतः स्वतः सिद्धम् । तस्मादनादिनिधनं स्वसहायं निर्विकल्पं च ८। इत्थं नो चेदसतः प्रादुर्भूतिनिरंकुशा भवति। परतः प्रादुर्भावो युतिसिद्धत्वं सतोविनाशो वा ।।।-तत्व का लक्षण सत् है । सत् ही तत्त्व है। जिस कारणसे कि वह स्वभावसे ही सिद्ध है इसलिए वह अनादि अनन्त है। स्वसहाय है, निर्विकल्प है। यदि ऐसा न मानें तो असत्की उत्पत्ति होने लगेगी । तथा परसे उत्पत्ति होने लगेगी। पदार्थ, दूसरे पदार्थके संयोगसे पदार्थ कहलावेगा। सतके बिनाशका प्रसंग आवेगा। दे. कारण/II/१ [ वस्तु स्वतः अपने परिणमन में कारण है।] a ४. सत्का विनाश व असत्का उत्पाद असम्भव है १. सत् निर्देश १. सत् सामान्यका लक्षण स. सि./१/८/२६/६ सदित्यस्तित्वनिर्देशः । सत अस्तित्वका सूचक । है। (स. सि./१/३२/१३८/७); (रा. वा./१/८/१/४१/१६); (रा. वा./५/३०/८/४६/२८ ): (गो. क./जी. प्र./४३६-५१२) । घ, १११.१,८/१५६/६ सत्सत्त्वमित्यर्थः ।...सच्छन्दोऽस्ति शोभनवाचकः, यथा सदभिधानं सत्यमित्यादि । अस्ति अस्तित्ववाचकः, सति सत्ये व्रतीत्यादि । अत्रास्तित्ववाचको ग्राह्यः । - सत्का अर्थ सत्त्व है।..... सत् शब्द शोभन अर्थात सुन्दर अर्थका वाचक है । जैसे, सदभिदान, अर्थात शोभनरूप कथनको सत्य कहते हैं। सत् शब्द अस्तित्वका वाचक है। दे. द्रव्य/९/७ [ सत्ता, सत्त्व, सामान्य, द्रव्य, अन्वय, वस्तु, अर्थ, विधि । ये सर्व एकार्थवाची शब्द हैं। दे. उत्पाद/२/१ [ उत्पाद, व्यय, ध्रुव इन तीनोंकी युगपत् प्रवृत्ति सव है।) पं. का./भू./१५ भावस्स णस्थि णासो णत्थि अभावस्स चेव उप्पादो। गुणपज्जयेसु भावा उप्पादवए पकुव्वं ति। =भाव ( सत) का नाश नहीं है। तथा अभाव ( असत) का उत्पाद नहीं है। भाव (सव द्रव्यों) गुण पर्यायोंमें उत्पाद व्यय करते हैं ।१३॥ सं. स्तो./२४ नैवाऽसतो जन्म सतो न नाशो, दीपस्तमः पुदगलभावतोऽस्ति । -जो सर्वथा असत है उसका कभी जन्म नहीं होता और सवका कभी नाश नहीं होता। दीपक बुझने पर सर्वथा नाशको प्राप्त नहीं होता, किन्तु उस समय अन्धकार रूप पुदगल पर्यायको धारण किये हुए अपना अस्तित्व रखता है ।२४। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016011
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages551
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy