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________________ पुन्नाट पुरुष पुंडरीक २. चेतन आत्मा पु. सि. 18 अस्ति पुरुषश्चिदात्मा विवर्जित स्पर्शगन्धरसवर्णे।। गुणपर्यय-समवेत. समाहित' समुदयव्ययधौव्यै । -पुरुष अर्थात आत्मा चेतन स्वरूप है। स्पर्श, गन्ध, रस व वर्णादिकसे रहित अमूर्तिक है। गुण पर्याय संयुक्त है। उत्पाद, व्यय, धौव्य युक्त है 181 गो. जी./जी. प्र./२७३/५६५/१ पुरुगुणे सम्यग्ज्ञानाधिकगुणसमूहे प्रबतते, पुरुभोगे नरेन्द्रनागेन्द्रदेवेन्द्राद्यधिकभोगचये, भोक्तृत्वेन प्रवर्तते, पुरुगुणं कर्म धर्मार्थकाममोक्षलक्षणपुरुषार्थसाधनरूपदिव्यानुष्ठान करोति च । पुरूत्तमे परमेष्ठिपदे तिष्ठति पुरूत्तम. सन् तिष्ठति इत्यर्थः तस्माव कारणाव स जीव. पुरुष इति। -जो उत्कृष्ट गुण सम्यग्ज्ञानादिका स्वामी होय प्रवर्ते, जो उत्कृष्ट इन्द्रादिकका भोग तीहि विषै भोक्ता होय प्रवर्ते, बहुरि पुरुगुणकर्म जो धर्म, अर्थ, काम, मोक्षरूप पुरुषार्थ को करै। और जो उत्तम परमेष्ठीपदमें तिष्ठे, तातै वह जीव पुरुष है। २. माव पुरुषका लक्षण गो, जी./जी. प्र./२७१/५६१/१५ वेदोदयेन स्त्रियां अभिलाषरूपमेथुनसंज्ञाकान्तो जीवो भावपुरुषो भवति । -पुरुष वेदके उदयतें पुरुषका अभिलाष रूप मैथुन संज्ञाका धारक जीव सो भाव पुरुष पुन्नाट-कर्नाटक (मैसूरके समीपवर्ती प्रदेश) (ह. पु./प्र./४) । पुन्नाट संघ-दे० इतिहास/५/३; ७/८ । पुमान्-जीवको पुमान् कहनेकी विवक्षा-दे० जीव/१/३। पुर-दे० नगर। पुराकल्प-न्या सू/टी./२/१२/६४/१०१/६ ऐतिह्यसमाचरितो विधि. पुराकल्प इति । ऐतिह्य सहचरित विधिको पुराकल्प कहते हैं। पुराण-हरिवंश आदि १२ पुराणोके नाम निर्देश (दे० इतिहास/१० में राज्यवंशोंके नाम निर्देश)। पुराण संग्रह-२४ तीर्थ करोके जीवन चरित्रके आधारपर रचे गये पुराण संग्रह नामके कई ग्रन्थ उपलब्ध है-१.आचार्य दामनन्दि कृत ग्रन्थमें ६ चरित्रोका संग्रह है। आदिनाथ, चन्द्रप्रभु, शान्तिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, वर्धमान चरित्र । कुल ग्रन्थ १६६४ श्लोक प्रमाण है। इसका काल ज्ञात नहीं है। २ आचार्य श्रीचन्द्र द्वारा वि. सं. १०६६में रचा गया । (ती/४/१३१) । ३. आचार्य सकलकी ति द्वारा (ई. १४०६-१४४२) में रचा गया। (ती./३/३३४) । पुराणसार-आ० श्रीचन्द्र (ई० १४६८-१५१८) द्वारा रचित ग्रन्थ । पुरु-विजयाको उत्तर श्रेणीका एक नगर-दे० विद्याधर । पुरुढ वंश-मालवा (मगध देश) के राज्यवश। इस वंशका दूसरा नाम मुरुड वंश या मौर्यवंश भी है। (दे० इतिहास/३/४)। पुरुरवा-(म, पु/६२/८७-८८ एक भील था। एक समय मुनिराजके दर्शनकर मद्य, मांस व मधुका त्याग किया। इस व्रतके प्रभावसे सौधर्म स्वर्गमें देव हुआ। यह महावीर भगवानका दूरवर्ती पूर्व भव है। उनके मरीचिके भवकी अपेक्षा यह दूसरा पूर्व भव है। -दे० महावीर। पुरुष-भरतक्षेत्रस्थ दक्षिण आर्य खण्डका एक देश-दे० मनुष्य/४। पुरुष-१. उत्तम कर्मको सामर्थ्य युक्त पं.सं./प्रा./१/१०६ पुरु गुण भोगे सेदे करेदि लोयम्हि पुरुगुणं कम्म। पुरु उत्तमो य जम्हा तम्हा सो वण्णिओ पुरिसो।१०६। - जो उत्तम गुण और उत्कृष्ट भोगमें शयन करता है, लोकमें उत्तम गुण और कर्मको करता है, अथवा यतः जो स्वय उत्तम है, अत: बह पुरुष इस नामसे वर्णित किया गया है ।१०६। (ध. १/१, १,१०१/गा. १७१/ ३४१); (गो. जी./मू./२७३) । ध. १/१,१,१०१/३४१/४ पुरुगुणेषु पुरुभोगेषु च शेते स्वपितीति पुरुषः । सुषुप्तपुरुषवदनुगतगुणोऽप्राप्तभोगश्च यदुदयाज्जीवो भवति स पुरुषः अङ्गनाभिलाष इति यावत् । पुरुगुणं कर्म शेते करोतीति वा पुरुष' । कथं स्त्यभिलाष पुरुगुणं कर्म कुर्यादिति चेन्न, तथाभूतसामर्थ्यानुबिद्धजीवसहचरितत्वादुपचारेण जीवस्य तत्कर्तृत्वाभिधानात । = जो उत्कृष्ट गुणों में और उत्कृष्ट भोगोमें शयन करता है उसे पुरुष कहते है अथवा, जिस कर्म के उदयसे जीव, सोते हुए पुरुषके समान, गुणोसे अनुगत होता है और भोगोको प्राप्त नहीं करता है उसे पुरुष कहते हैं। अर्थात स्त्री सम्बन्धी अभिलाषा जिसके पायी जाती है, उसे पुरुष कहते हैं । अथवा जो श्रेष्ठ कर्म करता है, वह पुरुष है। (ध.६/ १,६-१,२४/४६/१)1 प्रश्न-जिसके खी-विषयक अभिलाषा पायी जाती है, वह उत्तम कर्म कैसे कर सकता है । उत्तर-नही, क्योंकि, उत्तम कर्मको करने रूप सामर्थ्यसे युक्त जीवके स्त्रीविषयक अभिलाषा पायी जाती है अत' वह उत्तम कर्मको करता है, ऐसा कथन उपचारसे किया गया है। ३. द्रव्य पुरुषका लक्षण स. सि./२/१२/२००/६ पंवेदोदयात् सुते जनयत्यपत्यमिति पुमान् । -पुंवेदके उदयसे जो अपत्यको जनता है वह पुरुष है। (रा. वा./ ____२/१२/१/१५७/४)। गो.जी./जी.प्र./२७१/५६१/१८ वेदोदयेन निर्माणनामकर्मोदययुक्तागोपाङ्गनामकर्मोदयवशेन श्मश्रुकूर्चशिश्नादिलिगाइकितशरीरविशिष्टो जीवो भवप्रथमसमयादि कृत्वा तद्भवचरमसमयपर्यन्तं द्रव्यपुरुषो भवति । -निर्माण नामकर्मका उदय संयुक्त पुरुष वेद रूप आकारका विशेष लिये अंगोपांग नामकर्मका उदय तें मछ दाढी लिंगादिक चिह्न संयुक्त शरीरका धारक जीव सो पर्यायका प्रथम समयतै लगाय अन्त समय पर्यंत द्रव्य पुरुष हो है । ४. पुरुष वेद कमका लक्षण स. सि.14/8/३८६/२ यस्योदयात्पौस्नान्भावानास्कन्दति स पुंवेदः । -जिसके उदयसे पुरुष सम्बन्धी भावोंको प्राप्त होता है वह पंवेद है। * अन्य सम्बन्धी विषय १. पुरुष वेद सम्बन्धी विषय । -दे. वेद । २. जीवको पुरुष कहनेकी विवक्षा। -दे०जीव/१/३। ३. आदि पुरुष। -दे० ऋषभ । ४. ऊर्ध्वमूल अधःशाखा रूप पुरुषका स्वरूप। -दे० मनुष्य/२। ५. पुरुषवेदके बन्ध योग्य परिणाम । -दे० मोहनीय/३/६ । पुरुषतत्त्व सांख्य व शैव मान्य पुरुष तत्त्व-दे० वह वह नाम । पुरुषदत्ता-१. एक विद्या-दे० विद्या: २. भगवाच सुपार्श्वनाथकी शासक यक्षिणी-दे० तीर्थंकर/३/३ । पुरुष पुंडरीक-दे० पुंड्रीक। जैनेन्द्र सिद्धान्तकोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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