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________________ पर्याय १. भेद व लक्षण स्वभाव-विभाव अर्थ व्यंजन व द्रव्य गुण पर्याय निर्देश १ अर्य व व्यंजन पर्यायके लक्षण व उदाहरण । अर्थ व गुणपर्याय एकार्थवाची है। व्यजन व द्रव्य पर्याय एकार्थवाची है। | द्रव्य व गुणपर्यायसे पृथक् अर्थ व व्यंजन पर्यायके निदेशका कारण। सब गुण पर्याय ही है फिर द्रव्य पर्यायका निर्देश क्यों ।। अर्थ व व्यजन पर्यायका स्वामित्व । व्यंजन पर्यायके अभावका नियम नहीं। अर्थ व व्यंजन पर्यायोंकी सूक्ष्मता स्थूलता :(दोनोका काल, २ व्यजन पर्यायमें अर्थपर्याय, स्थूल; व सूक्ष्म पर्यायोंकी सिद्धि)। स्वभाव द्रव्य व व्यंजन पर्याय । विभाव द्रव्य व व्यंजन पर्याय । | स्वभाव गुण व अर्थपर्याय । १२ विभाव गुण व अर्थपर्याय । १३ | स्वभाव व विभाव गुण व्यंजन पर्याय । १४ स्वभाव व विभाव पर्यायोंका स्वामित्व । | सादि-अनादि व सदृश-विसदृश परिणमन -दे० परिणाम। यही स ग्रह प्रस्तार क्षणिक रूपसे विवक्षित व शब्द भेदसे भेदको प्राप्त हुआ विशेष प्रस्तार या पर्याय है। स सा./आ./३४५-३४८ क्षणिकत्वेऽपि वृत्त्यशानाम् । वृत्त्यशो अर्थात पर्यायोका क्षणिकत्व होनेपर भी-। 4.ध./पू /२६,११७ पर्यायाणामेतद्धर्म यत्त्व शकल्पनं द्रव्ये ।२६। स च परिणामोऽवस्था तेषामेव (गुणानामेव) ११७ द्रव्यमें जो संश कल्पना की जाती है यही तो पर्यायोका स्वरूप है ।२६। परिण मन गुणोकी हो अवस्था है। अर्थात् गुणोको प्रतिसमय होनेवाली अवस्थाका नाम पर्याय है। ३. द्रव्य विकारके अर्थमे त. सू./५/४२ तद्भाव परिणाम ।४२। -उसका होना अर्थात प्रतिसमय बदलते रहना परिणाम है। ( अर्थात् गुणोके परिणमनको पर्याय कहते है।) स. सि./५/३८/३०६-३१०/७ दव्व विकारो हि पज्जवो भणिदो। तेषा विकारा विशेषारमना भिद्यमाना. पर्याया । =१. द्रव्यके विकारको पर्याय कहते है। २. द्रव्यके विकार विशेष रूपसे भेदको प्राप्त होते है इसलिए वे पर्याय कहलाते है । (न. च. वृ/१७) । न, च. श्रुत/पृ. ५७ सामान्यविशेषगुणा एकस्मिन् धर्मणि वस्तुत्वनिष्पादकास्तेषां परिणाम पर्याय' । -सामान्य विशेषात्मक गुण एक द्रव्यमें वस्तुत्वके बतलानेवाले है उनका परिणाम पर्याय है। ४. पर्यायके एकार्थवाची नाम स.सि /१/३३/१४१ पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः । = पर्यायका अर्थ विशेष, अपवाद और व्यावृत्ति है। गो, जी/मू./५७२/१०१६ ववहारो य वियप्पो भेदो तह पज्जओत्ति एयो ।५७२। = व्यवहार, विकल्प, भेद और पर्याय ये सब एकार्थ है।५७२। स. म./२३/२७२/११ पर्ययः पर्यव. पर्याय इत्यनर्थान्तरम् । पर्यय, पर्यव और पर्याय ये एकार्थवाची है। पं.ध./पू./६० अपि चाश• पर्यायो भागो हारोविधा प्रकारश्च । भेदश्छेदो भंग शब्दाश्चैकार्थवाचका एते।६०/ अश, पर्याय, भाग, हार, विधा, प्रकार तथा भेद, छेद और भंग ये सब एक ही अर्थ के वाचक है।६। २. पर्यायके दो भेद १. सहभावी व क्रममावी श्ल.वा./४/१/३३/६०/२४५१ य. पर्याय स द्विविध' क्रमभावी सहभावी चेति । =जो पर्याय है वह क्रमभावी और सहभावी इस ढंगसे दो प्रकार है। २. द्रव्य व गुण पर्याय प्र. सा./त. प्र./६३ पर्यायास्तु द्रव्यात्मका अपि गुणात्मका अपि । - पर्याय गुणात्मक भी है और द्रव्यात्मक भी। (प.ध./पू./२५, ६२-६३,१३५)। पं.का./ता. वृ./१६/३५/१२ द्विधा पर्याया द्रव्यपर्याया गुणपर्यायाश्च । - पर्याय दो प्रकारकी होती हैं-द्रव्य पर्याय और गुणपर्याय । (पं.ध./पू./११२) । ३. अर्थ पर्याय व व्यंजन पर्याय पं. का./ता. वृ./१६/३६/८ अथवा द्वितीयप्रकारेणार्थव्यंजनपर्यायरूपेण द्विधा पर्याया भवन्ति । अथवा दूसरे प्रकारसे अर्थपर्याय व व्यंजनपर्यायरूपसे पर्याय दो प्रकारकी होती है। (गो. जी./मू /५८१) (न्या. दी./३/१७७/१२०)। १.भेद व लक्षण १. पर्याय सामान्यका लक्षण १. निरुक्ति अर्थ रा. वा./१/३३/१/१५/६ परि समन्तादायः पर्याय' । = जो सर्व ओरसे भेदको प्राप्त करे सो पर्याय है। (ध. १/१,१,१/८४/१); (क. पा १/१, १३-१४/७१८१/२१७/१); (नि. सा./ता. वृ.१४) । आ. प६ स्वभावविभावरूपतया याति पति परिणमतीति पर्याय इति पर्यायस्य व्युत्पत्ति । जो स्वभाव विभाव रूपसे गमन करती है पर्येति अर्थात् परिणमन करती है वह पर्याय है। यह पर्यायकी व्युत्पत्ति है । (न. च./श्रुत/पृ०५७) २. द्रव्यांश या वस्तु विशेषके अर्थ में स. सि./१/३३/१४१/१ पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः। - पर्यायका अर्थ-विशेष, अपवाद और व्यावृत्ति है। रा. वा/१/२६/४/८/४ तस्य मिथो भवनं प्रति विरोध्यविरोधिनां धर्माणामुपात्तानुपात्तहेतुकानां शब्दान्तरात्मलाभनिमित्तत्वाद अर्पितव्यवहारविषयोऽवस्थाविशेष पर्यायः ।४।-स्वाभाविक या नैमित्तिक विरोधी या अविरोधी धर्मों में अमुक शब्द व्यवहारके लिए विवक्षित द्रव्यकी अवस्था विशेषको पर्याय कहते है। ध.६/४,१,४५/१७०/२ एष एव सदादिरविभागप्रतिच्छेदनपर्यन्तः संग्रहप्रस्तारः क्षणिकत्वेन विवक्षित. वाचकभेदेन च भेदमापन्न. विशेषविस्तार. पर्यायः । -सवको आदि लेकर अविभाग प्रतिच्छेद पर्यन्त बैनेन्द्र सिद्धान्तकोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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