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________________ यंत्र धारति तारुणं । २५१२। बेधणुसहस्सतुंगा मंदकसाया पिरंगुसामलया। सब्वे ते पलाऊ कुभोगभूमोए चेति । २५१३॥ तम्भूमिजो भोगं भोत्तूण आउसस्स अवसाणे । कालबसं संपत्ता जायंते भवणतिमि १२१४ सम्म सणरयणं गहियं हि नरेहिं तिरिएहि । दीने विहे सोहम्मदुगम्मि जायते ।२११३ सम्बेसि भोगभुवे दो गुणठाणाणि सब्दकालम्मि दीसंति चवियप्पं सव्व मिलितम्मि मिच्छत् । २१३७११. इन उपरोक्त सब अन्तद्वीपज म्लेच्छों में से, एकोरुक (एक टॉंगवाले) कुमानुष गुफाओंमें रहते हैं और मीठी मिट्टीको स्वाते हैं। शेष सम वृक्षोके नीचे रहते है और कल्पवृक्षों के) फलफूलोंसे जीवन व्यतीत करते हैं । २४८६ (स.सि./३/३६/२११/२): (रा. वा./२/२६/४/२०४/२४) (ज. प. / १० / २८.८२) त्रि. सा. /१२०)। २. वे मनुष्य न तिच युगल युगलरूपमें गर्भ से सुखपूर्वक जन्म लेकर समुचित ( उनचास ) दिनोमें यौवन अवस्थाको धारण करते हैं | २५१२ (ज. प./१०/२०)। ३ वे सम कुमानुष २००० धनुष ऊँचे, मन्दकवायो, प्रियंगुके समान श्यामल और एक पत्यप्रमाण बायुसे युक्त होकर कुभोगभूमिमें स्थित रहते है । २११३० ( ज. प./१०/१०/८१-८२४ पश्चाद वे उस भूमिके योग्य भोगोंको भोगकर आयुके अन्तमें मरणको प्राप्त हो भवनत्रिक देवोंमें उत्पन्न होते हैं । २५१४ जिन मनुष्यों व तिर्यधोने इन चार प्रकारके द्वीपोंमें (दिशा, विदिशा, अन्तर्दिशा तथा पर्वतोंके पार्श्व भागों में स्थित, इन चार प्रकारके अन्तद्वीपोंमें सम्यग्दर्शनरूप रत्नको ग्रहण कर लिया है. वे सोधर्मयुगल में उत्पन्न होते है । २१११ (ज. प./१०/८३८६) । ५. सब भोगभूमिजों में (भोग व कुभोगभूमिजोंमें) दो गुणस्थान (प्र.व चतु ) और उत्कृष्टरूपसे चार (१-४) गुणस्थान रहते है। सब म्लेच्छखण्डों में एक मिध्यात्व गुणस्थान ही रहता है। ।२१३७] ६. म्लेच्छ खण्डसे आर्यखण्डने आये हुए कर्मभूमिज म्लेच्छ तथा उनको कन्याओंसे उत्पन्न हुई चक्रवर्तीकी सन्तान कदाचित् प्रवज्या योग्य भी होते हैं। (दे. प्रवज्या / १/३) । दे. काल / ४ - (कुमानुषो या अन्तद्वीपों में सर्वदा जघन्य भोगभूमिकी 'व्यवस्था रहती है। (त्रि. सा. / भाषा / १२० ) । ५. कुमानुष म्लेच्छोंमें उत्पन्न होने योग्य परिणाम दे. आयु /३/१० ( मिथ्यात्वरत, प्रतियोंकी निन्दा करनेवाले तथा भ्रष्टाचारी आदि मरकर कुमानुष होते हैं ) । दे. पाप / ४ ( पापके फलसे कुमानुषो में उत्पन्न होते है । ) । [य] यंत्र - १२/२.१.२१/२४/४ सोहमम्पधरणमीदिदमन्तरक्यच्छा लियं जंतं णाम । -जो सिंह और व्याघ्र आदिके धरनेके लिए बनाया जाता है और जिसके भीतर बकरा रखा जाता है, उसे यंत्र कहते हैं। यंत्र कुछ विशिष्ट प्रकारके अक्षर शब्द व मन्त्र रचना जो कोष्ठक आदि बनाकर उनमें चित्रित किये जाते है, यन्त्र कहलाते है। मन्त्र शास्त्र के अनुसार इसमें कुछ अलौकिक शक्ति मानी गयी है, और इसीलिए जैन सम्प्रदायमें इसे पूजा व विनयका विशेष स्थान प्राप्त है । मन्त्र सिद्धि, पूजा, प्रतिष्ठा व यज्ञ विधान आदिकोमे इनका बहुलतासे प्रयोग किया जाता है। प्रयोजनके अनुसार अनेक यन्त्र रूढ है और बनाये जा सकते है, जिनमेंसे प्राय प्रयोगमें आनेवाले कुछ प्रसिध यन्त्र यहाँ दिये जाते है। -- १. अंकुरार्पण यन्त्र २. अग्नि मण्डल यन्त्र ३. अर्हन् मण्डल यन्त्र ३४७ Jain Education International ४. ऋषि मण्डल यन्त्र ५. कर्म दहन यन्त्र ६. कलिकुण्ड दण्ड यन्त्र ७. कल्याण त्रैलोक्यसार यन्त्र For Private & Personal Use Only ८. कुल यन्त्र ९. कूर्म चक्र यन्त्र १०. गन्ध यन्त्र ११. गणधरवलय यन्त्र १२. घटस्थानोपयोगी यन्त्र ११. चिन्तामणि यन्त्र १४. चौबीसी मण्डल यन्त्र १५. जल मण्डल यन्त्र १६. जलाधिवासन यन्त्र १७. णमोकार यन्त्र १८. दशलाक्षणिक धर्मचकोद्धार यन्त्र १९. नयनोन्मीलन यन्त्र २०. निर्वाण सम्पत्ति यन्त्र २१. पीठ यन्त्र २२. पूजा यन्त्र २३. २४. २५ बोधिसमाधि यन्त्र मातृका यन्त्र (क) व (ख) मृत्तिकानयन यन्त्र २६. मृत्युञ्जय मन्त्र २७. मोक्षमार्ग यन्त्र २८. यन्त्रेश यन्त्र २९. रत्नत्रय चक्र यन्त्र ३०. रत्नत्रय विधान यन्त्र २१. रुक्मपात्राङ्कित तीर्थमण्डल यन्त्र ३२. रुक्मपात्राङ्कित वरुणमण्डल यन्त्र २२. रुक्मपात्राङ्कित व्रजमण्डल यन्त्र ३४. वर्द्धमान यन्त्र जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश ३५ वश्य यन्त्र २६. विनायक यन्त्र ३७. शान्ति यन्त्र २८. शान्ति चक्र यन्त्रोद्धार ३९. शान्ति विधान यन्त्र ४०. पोशकारण धर्मचक्रोद्वार यन्त्र ४१. सरस्वती यन्त्र ४२. सर्वतोभद्र यन्त्र ( लघु ) ४३. सर्वतोभद्र यन्त्र ( बृहत् ) ४४. सारस्वत यन्त्र ४५. सिद्धचक्र यन्त्र (लघु) ४६. सिद्धचक्र यन्त्र (बृहत् ) ४७. सुरेन्द्रचक्र यन्त्र ४८. स्तम्भन यन्त्र www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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