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________________ मोम ext तेभ्य म./३१/१४१-१४२ रुपया कन्यादिरत्नानि प्रभोर्भोग्यान्युपाहरत । १४१ । धर्म कर्म महिभूता मी म्लेच्द्रका मता । अन्यथाऽन्यैः समाचार आर्यावर्तेने ते समा' । १४२ । इस प्रकार अनेक उपायोको जाननेवाले सेनापतिने अनेक उपाय के द्वारा म्लेच्छ राजाओंको वश किया, और उनसे चक्रवर्ती उपभोगके योग्य कन्या आदि अनेक रत्न भेंट में लिये । । १४१। ये लोग धर्म क्रियाओंसे रहित है, इसलिए म्लेच्छ माने गये है । धर्म क्रियाओं के सिवाय अन्य आचरणोसे आर्यखण्डमें उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों के समान हैं । १४२॥ [ यद्यपि ये सभी लोग मिथ्यादृष्टि होते है परन्तु किसी भी कारण से आर्यजण्ड में आ जानेपर दीक्षा आदिको प्राप्त हो सकते हैं । दे० प्रब्रज्या | १ / ३] त्रि. सा. / ६२९ दीवा तावदियंतरवासा कुणरा वि सण्णामा । तीन अन्तद्वीपोंमें बसनेवाले कुमानुष तिस तिस द्वीपके नामके समान होते है। ५. अन्न हेच्छका आकार १ लवणोद स्प्रिंत अन्तोपो (दृष्टि नं० १) ति.प./४/२४४-२४८ एस्कल गुलिका बेसणकाधारका यनामेहि। पुय्यादिसुं दिसाउदीमा कुमासा होंति । २४८४ कण्णप्पावरणा लंबकण्णससकण्णा । अग्गिदिसादिसु कमसो चउद्दीवकुमासा एवे | १४८५ | सिंहस्ससाणमहिसरासह दूतकपिनदा सक्कुलिकण्णे कोरुगपहुदी अंतरेषु ते कमसो | २४८६ | मच्छमहा कालमुहा हिमगिरिपणिधीए पुब्वपच्छिमदो । मेसमुहगोमुहक्खा दक्खिणवेयडूढपणिधीए । २४६७॥ पुत्रवावरेण सिहरिप्पणिधीए मेघबिल्लूमुहणामा आई समहत्यिमुद्दा उत्तरवेणिधी २४८ पूर्वादिक दिशाओ में स्थित चार द्वीपोके कुमानुष क्रमसे एक जाँघ - वाले, पूछवाले, सींगवाले और गूँगे होते हुए इन्हीं नामोसे युक्त है । २४८४ | अग्नि आदिक विदिशाओमें स्थित ये चार द्वीपोके कुमानुष क्रम कुलकर्म कर्म प्रावरण, लभकर्ण और दादाकर्म होते हैं |२४|| सीकर्ण और एकोरुफ आदिको बीचमें अर्थात् अन्तरदिशाओं में स्थित आठ द्वीपोंके कुमानुष क्रम से सिंह, अश्व, श्वान, महिष, वराह, शाल, घूक और बन्दरके समान मुख - बाले होते है ।२४८६ | हिमवान् पर्वतके प्रणिधि भाग में पूर्व पश्चिमदिशाओ में क्रमसे मत्स्यमुख व कालमुख तथा दक्षिणविजयार्ध के प्रणिधि भाग में मेषमुख व गोमुख कुमानुष होते है । २४८७ ॥ शिखरी 9 के पूर्व पश्चिम प्रविधि भाग कम मुख भिमुख तथा उत्तर विजयार्ध के प्रणिधि भाग में आदर्शमुख व हस्तिमुख कुमानृष होते है २४ (भ.आ./वि./०८९/६२२/२३ परतली. न. १ १०) (जि. सा./११६-११९) (ज. १ / ५२-५० ) । २. लवणोद स्थित अन्तद्वीपोंमें ( दृष्टि न० २ ) वि. /४/२४६४-२४६६ एकोरुकवेरणिका संगुत्तिका रह य भागा तुरिमा पृथ्यादिवि दिस चउदीया कुमाणुसा कमसो ॥२४हादसा सणाताण उभयपासेसुं । अतराय दोवा पुव्वगिदिसादिगणणिज्जा | २४६५ | पुत्र दिसट्ठिएकोरुकाण अगदिस टिपणानं विचासादि कमेण अतरदीव दिव्यकुमाराणामाणि गदिज्याकेसरिमुहा मस्सा चरकृतिका अ चक्कुलिकण्णा । साणमुहा कपिवदणा चक्कुलिकण्णा अ चक्कुलीकण्णा | २४६६ । हयकणा कमसो कुमाणुसा तेसु होंति दीवेसु । घूकमुहा कालमुहा हिमगिरिस्स पुम्यपमिदो | २४६०१ गोमुहमेस हलवा वेणदिवेस मेषमुहा बिज्जुहा सिरिगिरिदस्स २४६८ | दप्पणगयसरिसमूहा उत्तरणिधि भागगदा। अभंवर मागे माहिर होति तम्मेत्ता । २४६६| पूर्वादिक दिशाओ में स्थिर चार द्वीपोके कुमानुष क्रमसे एक जॉधवाले, सींग Jain Education International लेड वाले छवाले और गूँगे होते है | २४६४ | आग्नेय आदिक दिशाओंके चार होपोंमें एक कुमानुष होते हैं। उनके दोनो पा आठ अन्तरद्वीप हैं जो पूर्व आग्नेय दिशादि क्रमसे जानना चाहिए । २४१६ पूर्व दिशा स्थित एकोरुक और अग्निदिशामें स्थित श कर्ण कुमानुषो के अन्तराल आदिक अन्तरालोंमें क्रमसे आठ अन्तरद्वीपोंमें स्थित कुमानुषों के नामोंको गिनना चाहिए। इन अन्तरद्वीपो में क्रम केशरीमुख, शकुलिक अशष्कुलिक खानमुख बानरमुख, सम्कृति शष्कुलकर्ण, और हम कुमानुष होते है हिमबापत पूर्व-पश्चिमभागों में क्रमसे से कुमानुष शुकमुख और कासमुख होते हैं। दक्षिण विषयार्थके प्रतिधिभावस्थ द्वीपोंमें रहनेवाले कुमानुष गोमुख और मेषमुख तथा शिखरी पर्वत के पूर्व पश्चिम द्वीपों में रहनेवाले वे कुमानुष मेघमुख और विन्मुख होते हैं । २४६८ | उत्तरविजयार्ध के प्रणिधिभागों में स्थित वे क्रमानुष क्रमसे दर्पण और हाथी के मुखवा होते हैं। जितने द्वीप व उनमें रहनेवाले कुमानुष अभ्यन्तर भाग में है, उतने ही वे बाह्य भागमें भी विद्यमान है 1२४६६ | ( स. सि./३/३६/२३० / १); (रा.वा./१/१६/४/२०४/२०) (पु./५/४७१-४७६) । ३. कालोदस्थित अन्तरद्वीपोंमें · ति प / ४ / २७२७-२७३४ मुच्छमुहा अभिकण्णा पक्खिमुहा तेसु हरिथकण्णा । पुव्वादि दीवेसु विचिट्ठति कुमाणुसा कमसो । २७२७| लादिया सूरकण्णा दीवेस ताण विदिसासं । अट्ठतरदीवेसुं पुत्रग्गिदिसादि गणणिज्जा | २७२८ ॥ चेट्ठति अट्टकण्णा मज्जारमुहा पुणो वि तच्चेय कण्णप्पावरणा गजवण्णा य मज्जाखयणाय । २७२ | मज्जारमुहा य तहा गोकण्णा एवमट्ठ पत्तेक्कं । पुव्वपव " दावहि कुमसाणि जाति २०३० नावरणधीए सिसुमारमुहा तह य मयरमुहा । चेट्ठति रूप्पगिरिणो कुमाणुसा कालजल हिम्मि १२७३१। वयमुहवग्गमुहक्खा हिमवंतणगस्स पुब्बपच्छिमदो। पणिधी पेटते कुमासा पामचाहि २०१२ सि रिस्स तरच्छमुहा सिगालग्यणा कुमाणसा होति । पुव्नावरपणिधीए जम्मंतरदरियकम्मेहिं |२०१३ | दीपिका मुद्दा कुमाणुमा होति रुप्प सेलस्स । पुव्वावरपणिधीए कालोदयजल हिदीवम्मि | २७३४ - उनमें से पूर्वादिक दिशाओंमें स्थित द्वीपोमे क्रमसे मत्स्यमुख, अभि (अश्व पक्षिमुख और हस्तिक कुमानुष होते हैं। १२०० उनकी वायव्यप्रभृति विदिशाओंगे स्थित द्वीपो में रहनेवाले कुमानुष करकर्ण होते है। इसके अतिरिक्त पूर्णाग्निदिशादिक क्रमसे गणनीय आठ अन्तरद्वीपोंमें कुमानुष निम्न प्रकार स्थित है । २०२० ट्रक, गाजरमुख, पुन माजरमुख कर्णप्रावरण, ग सुख, मार्जारमुख, पुनः मार्जारमुख, और गोकर्ण, हम आठमेसे प्रत्येक पूर्व में बतलाये हुए बहुत प्रकारके पापोंके फलसे कुमानुष जीव उत्पन्न होते है । २०२१-२०१०३ कातसमुहके भीतर वियार्थके पूर्वापर पार्श्वभागो में जो कुमानुष रहते है, वे क्रमसे शिशुमारमुख और मकर होते हैं | २०३१। हिमवान् पर्वतके पूर्व-पश्चिम पार्श्वभागो में रहनेवाले कुमानुष क्रम से पापकर्मो के उदयसे वृकमुख और व्याघमुख होते है २०१२ शिखरी पर्वतके पूर्व-पश्चिम पार्श्वभागों में रहनेवाले कुमानुष पूर्व जन्ममे किये हुए पापकमोंसे सरक्षमुख (अक्षमुख) और गायमुख होते है। २०३३ | विजयापर्यत पुर प्रभाग - समुद्रस्य दीपो क्रम द्वीप और गारमुख कुमानुष होते../२/५६०-३०२ )। ४. म्लेच्छ मनुष्यों का जन्म, आहार गुणस्थान आदि ति प / ४ / गाथा नं. एकोरुगा गुहासुं वसंति भुंजति मट्टिये मिट्ठ । सेसा तरुतलवासा पुष्फेहि फलेहिं जीवति । २४८६ | गग्भादो ते माजुगजुगला सुण निस्सरिया तिरिया समुपदेहिदिमेहि जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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