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________________ मंडल २४५ मंत्र मंडल-१. प्राणायाम सम्बन्धी चार मण्डलोका निर्देश-दे० प्राणायाम । २.प्राणायाम सम्बन्धी अग्निमण्डल, आकाश मण्डल -दे० वह वह नाम । मंडलीक-राजाकी एक उपाधि-दे० राजा। मंडलीक वायु-दे० वायु। मंडित-विजयार्धकी दक्षिण श्रेणीका एक नगर। -दे० विद्याधर । मंत्र-मन्त्रशक्ति सर्वसम्मत है । णमोकार मन्त्र जैनका मूलमन्त्र है। मन्त्र सामान्य निर्देश मन्त्र तन्त्रकी शक्ति पौद्गलिक है। मन्त्र शक्तिका माहात्म्य । मन्त्र सिद्धि तथा उसके द्वारा अनेक चमत्कारिक कार्य होनेका सिद्धान्त-दे० ध्यान/२/४,५ । मन्त्र तन्त्र आदिकी सिद्धिका मोक्षमार्गमें निषेध । साधुको आजीविका करनेका निषेध । परिस्थितिवश मन्त्रप्रयोगकी आज्ञा । | पूजाविधानादिके लिए सामान्य मन्त्रोंका निर्देश ।। गर्भाधानादि क्रियाओंके लिए विशेष मन्त्रोंका निर्देश । पूजापाठ आदिके लिए कुछ यन्त्र - दे० यन्त्र। ध्यान योग्य कुछ मन्त्रोंका निर्देश -दे० पदस्थ । मन्त्रमें स्वाहाकार नहीं होता -दे० स्वाहा। २. मन्त्र शक्तिका माहात्म्य गो जी./जी. प्र./१८४/४१६/१८ अचिन्त्य हि तपोविद्यामणिमन्त्रौषधिशत्यतिशयमाहात्म्यं दृष्टत्वभावत्वात्। स्वभावोऽतर्कगोचर इति समस्तवादिस यतत्वात्। -विद्या, मणि, मन्त्र, औषध आदिकी अचिन्त्य शक्तिका माहात्म्य प्रत्यक्ष देखनेमे आता है। स्वभाव तर्कका विषय नही, ऐसा समस्त वादियोंको सम्मत है। ३. मन्त्र तन्त्र आदिकी सिद्धिका मोक्षमार्गमें निषेध र. सा./१०६ जोइस विज्जामत्तोपजीणं वा य वस्सवबहार। धणधण्णपडिग्गहणं समणाण दूसण होइ।१०४ -जो मुनि ज्योतिष शास्त्रसे वा किसी अन्य विद्यासे वा मन्त्र तन्त्रोसे अपनी उपजीविका करता है, जो वैश्योकेमे व्यवहार करता है और धनधान्य आदि सबका ग्रहण करता है वह मुनि समस्त मुनियोको दूषित करनेवाला है। ज्ञा, ४/५२-५५ वश्याकर्षण विद्वेषं मारणोच्चाटन तथा । जलानल विषस्तम्भो रसकर्म रसायनम् ।५२! पुरक्षोभेन्द्रजाल च बलस्तम्भो जयाजयो। विद्याच्छेदस्तथा वेध ज्योतिनि चिकित्सितम् ॥५३॥ यक्षिणीमन्त्रपाताल सिद्धय. कालवब्चना । पादुकाउजननिस्त्रिशभूतभोगीन्द्रसाधन ।।४। इत्यादिविक्रियामरजितैर्दुष्टचेष्टितै । आत्मानमपि न ज्ञात नष्ट लोकद्वयच्युते ।। -वशीकरण, आकर्षण, विद्वेषण, मारण, उच्चाटन, तथा जल अग्नि विष आदिका स्तम्भन, रसकर्म, रसायन ।।२। नगर में क्षोभ उत्पन्न करना, इन्द्रजालसाधन, सेनाका स्तम्भन करना, जीतहारका विधान बताना, विद्याके छेदनेका विधान साधना, वेधना, ज्योतिषका ज्ञान, वैद्यकविद्यासाधन ।५३। यक्षिणीमन्त्र, पाताल सिद्धिके विधानका अभ्यास करना, काल व चना (मृत्यु जीतनेका मन्त्र साधना), पादुकासाधन (खडाऊँ पहनकर आकाश या जलमे बिहार करनेकी विद्याका साधन) करना, अदृश्य होने तथा गड़े हुए धन देखनेके अजनका साधना, शस्त्रादिका साधना, भूतसाधन, सर्पसाधन ॥५४॥ इत्यादि विक्रियारूप कार्यों में अनुरक्त होकर दुष्ट चेष्टा करनेवाले जो है उन्होने आत्मज्ञानसे भी हाथ धाया और अपने दोनो लोकका कार्य भी नष्ट किया। ऐसे पुरुषोके ध्यानको सिद्धि हाना कठिन है ।५५॥ ज्ञा./४०/१० शुद्रध्यानपरप्रपञ्च चतुरा रागानलोद्दीपिता, मुद्रामण्डलयन्त्रमन्त्रकरण राराधयन्त्याद्वता । कामक्रोधवशीकृतानिह सुरात् ससार सौख्यार्थिनो, दुष्टाशाब्रिहता पतन्ति नरके भोगातिभिर्वचिता ।१०। - जो पुरुष खोटे ध्यानके उत्कृष्ट प्रपचोको विस्तार करनेमे चतुर है वे इस लोकमे रागरूप अग्निसे प्रज्वलित होकर मुद्रा, मण्डल, यन्त्र, मन्त्र, आदि साधनोके द्वारा कामक्रोधसे वशीभूत कुदेवो का आदरसे आराधन करते है। सो, सांसारिक सुखके चाहनेवाले और दुष्ट आशासे पीडित तथा भोगोकी पीडासे वचित होकर वे नरकमे पडते है ।१०। और भी दे०--मन्त्र, तन्त्र, ज्योतिष आदि विद्याओका प्रयोग करनेबाला साधु ससक्त है (दे० ससक्त), वह लौकिक है (दे० लौकिक)। आहारके दातारको मन्त्र तन्त्रादि बताना साधुके आहारका मन्त्रोपजोगी नामका एक दोष है। (दे० आहार/II/४)। इसी प्रकार वसतिकाके दातारको उपरोक्त प्रयोग बताना वसतिकाका मन्त्रोपजीवी नामक दोष है । (दे० वसतिका)। ४. साधुको आजीविका करनेका निषेध ज्ञा /१६-१७ यतित्वं जीवनोपाय कुर्वन्त कि न लज्जित' । मातु पण्य मिवालम्ब्य यथा केचिद्गतघृणा १६ निस्नपा कर्म कुर्वन्ति यतित्वेऽप्यतिनिन्दितम् । ततो विराध्य सन्मार्ग विशन्ति नरकोदरे १५७/- कई निदय निर्लज्ज साधुपनमे भी अतिशय निन्दा योग्य कार्य करते है। वे समीचीन मार्ग का विरोध करके नरक मे णमोकार मन्त्र | णमोकारमन्त्र निर्देश। णमोकारमन्त्रके वाचक एकाक्षरी आदि मन्त्र - दे० पदस्थ। णमोकारमन्त्रका माहात्म्य। -दे० पूजा/२/४ । | णमोकारमन्त्रका इतिहास। णमोकारमन्त्रकी उच्चारण व ध्यान विधि । मन्त्रमें प्रयुक्त 'सर्व' शब्दका अर्थ। चत्तारिदण्डकमें 'साधु' शब्दसे आचार्य आदि तीनोंका ग्रहण। | अर्हतको पहिले नमस्कार क्यों ? आचार्यादि तीनोंमें कथचित् मेद व अभेद --दे० साधु/६। * १. मन्त्र सामान्य निर्देश १. मन्त्र तन्त्रकी शक्ति पौद्गलिक है ध, १३/५,५,८२/३४८/८ जोणिपाहुडे भणिदमत-ततसत्तीयो पोग्गलाणुभागो त्ति घेत्तव्यो। -योनिप्राभृतमे कहे गए मन्त्र तन्त्र रूप शक्तियोका नाम पुद्गलानुभाग है। जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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