SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रोष्ठिल ५. सामायिकादि करे तो पूजा करना आवश्यक नहीं ला. सं./६/२०२ यदा सा क्रियते पूजा न दोषोऽस्ति तदापि वै । न क्रियते सा तदाप्यत्र दोषो नास्तीह कश्चन । २०२ = प्रोषधोपवासके दिन भगवाद अरन्सदेवकी पूजा करे तो भी कोई दोष नहीं है। यदि उस दिन बह पूजा न करे ( अर्थात् सामायिकादि साम्यभाव रूप क्रियामें बितावे ) तो भी कोई दोष नही है । २०२ ॥ ६. रात्रिको मन्दिरमें सोनेका कोई नियम नहीं वसु श्रा./२८६ दाऊण किंचि रत्ति सहऊणं जिणालए नियघरे वा अहवा सयल रत्ति काउस्सेण णेऊण | २८६ | - रात्रिमें कुछ समय तक जिनालय अथवा अपने घर में सोकर अथवा सारी रात्रि कायोत्सर्ग में बताकर अर्थात भिकुल न सोकर |१६| प्रोष्ठिल १. यह भावि कालीन नवें तीर्थकर हैं। अपरनाम प्रश्नकीर्ति है ० सोर्थंकर / ५२ श्रुतावतार की पट्टावली के अनुसार आप भरनाहु प्रथम (तपसी) के पश्चात् ११ अंग दश पूर्वधारी हुए। आपका समय - वी. नि. १७२ १६१. ( ई. पू. ३५५० २२६) दृष्टि नं.३ के अनुसार बी. नि. २३२-२५९.३० ४/४ संवत् इतिहास / प्लुत स्वर-दे० अक्षर [] फल --- १. फल बनस्पतिके भेद प्रभेद व लक्षण - दे० वनस्पति / १ । २. फलोंका भक्ष्याभक्ष्य विचार-दे० भक्ष्याभक्ष्य / ४ | ३ कर्मोंका फल दान - ३० उदय; ४. कर्म फल चेतना - ३० चेतना / १ । फल चारण अद्धि ०४ मी दश कर लेय। दश व फलदशमी व्रत घर घर देय । यह व्रत श्वेताम्बर आम्नाय में प्रचलित है। (बत विधान /. १२०) (नवसाहत वर्तमान पु० ) फल रस- दे० रस । फल राशि राशिक विधानमें जो उत्तर या फलके रूप प्राप्त होता है०/11/५/२ फालि - दे० काण्डक । फाहियान चीनी यात्री था। ई० ४०१ में भारत में खाया था। ई० ४०५ तक भारत में रहा । ( वर्तमान भारत इतिहास ) ( हिस्ट्री आफ़ लिटरेचर) । फिलिप्स - -यूनान देशका राजा था। मकदूनिया राजधानी थी। सम्राट् सिकन्दर इसका पुत्र था। समय - ई० पू० ३६०-३१६ (वर्त मान भारत इतिहास ) । www फूल दशमी व्रत - यह व्रत श्वेताम्बर आम्नाय में प्रचलित है । फूल दशमि दश फूलनि माल । दश सुपात्र पहिनाय आहार । (विधान सं. पू. १३०) ( नवलसाह वर्धमान पु० ) । फेनमालिनी | - अपर विदेहस्थ एक विभंगा नदी- दे० लोक /५/८ [ब] खण्डमा एक देश० मनुष्य ४१, देश पूर्ववर्ती क्षेत्र प्राचीन राजधानी कर्ण बंग भरत क्षेत्र पूर्व वर्तमान मंगाल Jain Education International १६७ बंध सुवर्ण (मनसेना) थी. और वर्तमान राजधानी कालीपारी ( कलकत्ता ) है । बध - अनेक पदार्थोंका मिलकर एक हो जाना बन्ध कहलाता है । वह तीन प्रकारका है, जीवबन्ध, अजीबबन्ध और उभयबन्ध । संसार व धन आदि बाह्य पदार्थोंके साथ जीवको बाँध देनेके कारण जीवके पर्याय भूत मिथ्यात्व व रागादि प्रत्यय जीवबन्ध या भावगन्ध है। निर्माणका कारण परमाणुओंका पारस्परिक बन्ध अजीव बन्ध या पुद्गलबन्ध है । और जीवके प्रदेशोके साथ कर्म प्रदेशका अथवा शरीरका बन्ध उभयबन्ध या द्रव्यबन्ध है । इनके अतिरिक्त भी पारस्परिक संयोगसे बन्धके अनेक भेद किये जा सकते है । द्रव्य व भावबन्धमें भावबन्ध ही प्रधान हैं, क्योंकि इसके बिना कर्मों व शरीरका जीवके साथ बन्ध होना सम्भव नहीं है। मिथ्यात्व आदि प्रत्ययोंके निरोध द्वारा द्रव्य बन्धका निरोध हो जानेसे जीवको मोक्ष प्रगट होती है। 1 ३ ५ ६ ७ ८ ९ बन्ध सामान्य निर्देश बन्ध सामान्य निर्देश १. निति अर्थ २. गति निरोध हेतु जीव व कर्म प्रदेशोंका परस्पर बन्ध । बन्धके भेद प्रभेद १. बन्धके सामान्य भेदः २. नो आगम द्रव्य बन्धके भेद; ३. नो आगम भाव अन्धके भेद । वैसिक व प्रायोगिक बन्धके भेद १. वैखसिक व प्रायोगिक सामान्य २. सादि अनादि वैकि कर्म व नोकर्म बन्धके लक्षण १. कर्म व नोकर्म सामान्यः २. आलापनादि नोकर्म बन्ध जीव व अजीव बन्धके लक्षण १. जीव भावबन्ध सामान्य; २. भावबन्धरूप जीवबन्ध ३. द्रव्यबन्ध रूप उभयबन्ध * अजीव बन्ध । बन्ध और युतिमें अन्तर । अनन्तर व परम्परा बन्धका लक्षण । विपाक व अविपाक प्रत्यधिक जीव भावमन्यके लक्षण । विपाक व अविपाक प्रत्यधिक अधीन भवन् बन्ध अबन्ध व उपरतबन्धके लक्षण । एक सामरिक बन्धको बन्ध नहीं कहते। प्रकृति स्थिति आदि । स्थिति व अनुभागबन्धकी प्रधानता। - दे० स्थिति / २ | -- दे० वह वह नाम । आस्रव व बन्धमें अन्तर । बन्धके साथ भी कथंचित् संवरका -दे० स्कन्ध । - ३० पुति । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only मूल उत्तर प्रकृतियोंके बन्धकी प्ररूपणाएँ । --३० स्थिति २। - दे० आसव / २ | अंश । - ३० नंबर /२/५। - दे० प्रकृतिवन्ध / ६। www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy