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________________ प्रत्याहार प्रत्याहार म. / २२/२३० प्रत्याहारस्तु तस्योपसंहती चित्तनिवृति 19301 - मनकी प्रवृत्तिका सोच कर लेने पर जो मानसिक सन्तोष होता है उसे प्रत्याहार कहते है | २३० शा./२०/१-३ समाकृष्येन्द्रियार्थेभ्य साक्ष घेत शान्थी । यत्र यत्रेच्छया धत्ते स प्रत्याहार उच्यते |१| नि सङ्गसवृतस्वान्त' कुवृतेन्द्रियमी समयमा ध्यानतन्त्रे स्थित ॥२॥ गोचरेभ्यो हृषीकाणि तेभ्यश्चित्तमनाकुलम् । पृथक कृत्य वशी धत्ते ललाटेऽत्यन्त निश्चलम् |३| -जो प्रशान्त बुद्धि विशुद्धता युक्त मुनि अपनी इन्द्रियों और मनको इन्द्रियों के विषयोच कर जहाँ जहाँ अपनी इच्छा हो तहाँ तहाँ धारण करें सो प्रत्याहार कहा जाता है |१| निसग और सवर रूप हुआ है मन जिसका कछुएके समान कोच रूपयों जिसकी ऐसा मुनि हो राग द्वेष रहित होकर ध्यान रूपी तन्त्र में स्थिर स्वरूप होता है | २| वशी मुनि विषयो से तो इन्द्रियोंको पृथक करे और हडियोको विषयसे पृथक करे अपने मनको निराकृत करके अपने ललाटपर निश्चलता पूर्वक धारण करें। यह विधि प्रत्याहार में कही है ★ प्रत्याहार योग्य नेत्र बाट आदि प्रत्युत्पन्न नय - दे० नय // ५। प्रत्यूष काल - प्रात' का सन्धि काल । बुद्ध प्रत्येक बुद्ध दे० प्रत्येक बुद्धि ऋद्धि दे० बुद्ध । प्रत्येक शरीर नामकर्म - ३० पति । - प्रत्येक शरीर वर्गणा — दे० वनस्पति /१ । प्रथम स्थिति - दे० स्थिति/१ । ० स्थान प्रथमानुयोग -१ आगम सम्बन्धी प्रथमानुयोग- दे० अनुयोग / १, २ दृष्टिवादका तीसरा मेद ३० श्रुतज्ञान / 11 F प्रथमोपशम विधि - दे० उपशम /२ | प्रमयोपशम सम्यक्त्व दे० सम्यग्दर्शन / IV/ प्रदक्षिणा दे० ध्यान / २/३ । Jain Education International ध. १३/५.४,२८/८६/१ वदणकाले गुरुजिणजिणहराण पदक्खिण काऊण मसण पदाहिण णाम । = वन्दना करते समय गुरु, जिन और जिनगृहकी प्रदक्षिणा करके नमस्कार करना प्रदक्षिणा है । बन, ध /८/१२ दीयते निर्वाणयोगिनीश्वरे हि मन्यमानेष्यधीयानस्तद्भक्ति प्रदक्षिणा ॥१२॥ जिस समय मुझ संयमी चेत्य - मुमुक्ष वन्दना या निर्वाण वन्दना अथवा योगिवन्दना यद्वा नन्दीश्वर चैत्य बन्दना किया करते है, उस समय उस सम्बन्धी भक्तिका पाठ बोलते हुए वे प्रदक्षिणा दिया करते है । * प्रदक्षिणा प्रयोग विधि-२० प्रदुष्ट कायोत्सर्गका एक अतिचार-३० व्युत्सर्ग/१० प्रदेश - * १ Space Point ( ज प / प्र १०७) । Location, Points or Place as decimal Place ( ( ध ५/२०१ १३४ प्रदेश प्रदेश- आकाशके छोटेसे छोटे अविभागी अंशका नाम प्रदेश है, अर्थात एक परमाणु जितनी जगह घेरता है उसे प्रदेश कहते है । जिस प्रकार अखण्ड भी आकाशमें प्रदेश भेदकी कल्पना करके अनन्त प्रदेश बताये गये है, उसी प्रकार सभी द्रव्योमें पृथक् पृथक् प्रदेश की गणनाका निर्देश किया गया है । उपचारसे पुद्गल परमाणुको भी प्रदेश कहते है और इस प्रकार इगल कमौके प्रदेशोका शीवके प्रदेश के साथ बन्ध होना प्रदेश बन्ध कहा जाता है । १ ** २ ३ 染 २ १ २ ३ प्रदेश व प्रदेश बन्ध निर्देश प्रदेशका लक्षण :- १, परमाणु के अर्थ में २, आकाशका अंश २. पर्यायके अर्थ में। स्वन्धका भेद प्रदेश -३०/१ पृथक् पृथक् इन्दोंमें प्रदेशोंका प्रमाण द्रव्योंमे प्रदेश कल्पना सम्बन्धी लोकके आठ मध्य प्रदेश जीवके चलिताचलित प्रदेश ९ ** प्रदेश बन्धका लक्षण | प्रदेश बन्धके भेद | कर्म प्रदेशोंगे रूप, रस व गन्धादि अनुभाग व प्रदेश बन्धमें परस्पर सम्बन्ध - दे० वह वह द्रव्य । युक्ति - दे० द्रव्य ४ । - दे० लोक / २ । -३० जीव/४। - दे० अनुभाग/र | स्थिति यन्ध व प्रदेश बन्धमें सम्बन्ध दे०स्थिति / ३। प्रदेश बंध सम्बन्धी नियम व प्ररूपणाएँ बहुत्व प्रदेशका निमित्त योग है प्रदेश संयोग सम्बन्धी शकाएँ *योग स्थानों व प्रदेश में सम्बन्ध वित्रोपचयोमें दानि वृद्धि सम्बन्धी नियम । एक समयबद्ध प्रदेशोंका प्रमाण समयम वर्गणाओंमें अल्पबहुत्व विभाग। पाँचों शरोरोंमें बद्ध प्रदेशों व विसोपचयोंमें अल्प१० अम्पबहुत्व । -दे० घा - दे० - दे० योग/२ । - ६० योग ३ | - दे० ईर्यापथ । ४ योग व प्रदेश बंधमें परस्पर सम्बन्ध । स्वामित्वकी अपेक्षा प्रदेश बंध प्ररूपणा । ५ ६ प्रकृतिबंधकी अपेक्षा स्वामित्व प्ररूपणा । ७ ८ एक योग निमित्तक देश अल्प क्यों । सम्यक्त्व व मिश्र प्रकृतिको अन्तिम फालिमें प्रदेशों सम्बन्धी दो मत । व अल्पबहुत्व रूप प्ररूपणाएँ प्रदेश सत्य सम्बन्धी नियम अन्य प्ररूपणाओं सम्बन्धी विषय सूची । मूलोत्तर प्रकृति, पंच शरीर, व २३ प्रदेशों सम्बन्धी संख्या, क्षेत्र, स्पर्शन का जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only वर्गणाओंके अंतर, भान -दे० वह वह नाम । - दे० सत्त्व /२ | www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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