SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रत्यय १२७ २. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ विकथा, कषाय, इन्द्रिय, निद्रा और प्रणय ये पन्द्रह प्रमादस्थान देखे जाते है, अतः प्रमाद और अविरति पृथक-पृथक् है । २. प्रत्ययोंकी उदय व्युच्छित्ति ओघ'प्ररूपणा ६. कषाय व अविरतिमें अन्तर १. सामान्य ४ वा ५ प्रत्ययोंकी अपेक्षा कुल बन्ध योग्य प्रत्ययः-१ स सि /८/९/३७६/५ मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद, कषाय और योग-। २. पं स प्रा/४/७८-७६ मिथ्यात्व, अविरति. कषाय और योग-४. (घ.८३ ६/गा. २०-२१/२४); (पं. सं./सं/४/१८-२१) (गो क./मू. (७८७-७८८ ) । गुण स्थान पाँच प्रत्ययोंकी अपेक्षा चार प्रत्ययोंकी अपेक्षा (सं. सि.) (पं.सं.) व्युच्छित्ति कुल व्यु शेष व्युच्छित्ति कुल व्यु. शेष बन्ध । । प्र० बन्ध प्र० १ मिथ्यात्व ५ रा, वा/८/१/३३/५६५/७ स्यादेतव-कषायाविरत्योर्नास्ति भेद' उभयोरपि हिसादिपरिणामरूपत्वादितिः तन्न, कि कारणम् । कार्यकारणभेदोपपत्ते । कारणभूता हि कषाया कार्यात्मिकाया हिंसाद्यविरतेरान्तरभूता इति । यस प्रश्न-हिंसा परिणाम रूप होनेके कारण कषाय और अविरतिमें कोई भेद नही है । उत्तर-ऐसा नहीं है, क्योकि इनमे कार्य कारणकी दृष्टिसे भेद है। कषाय कारण है और हिंसादि अविरति कार्य। ध, ७/२,१,७/१३/७ असजमो जदि क्साएसु चेव पददि तो पुध तदुवदेसो किमळं कीरदे । ण एस दोसो, ववहारणयं पडुच्च तदुवदेसादो। -प्रश्न -यदि असंयम कषायोमें ही अन्तर्भूत होता है तो फिर उसका पृथक् उपदेश किस लिए किया जाता है। उत्तर-यह कोई दोष नहीं, क्योंकि व्यवहार नयको अपेक्षासे उसका पृथक् उपदेश किया गया है। दे. प्रत्यय/४ (प्राणातिपातादि अन्तर ग प्रत्ययों का क्रोधादि प्रत्ययोंसे कथंचित् भेद है)। १४ मिथ्यात्व | ४ x ४ बस अविरति ३ سه سه १३ | अविरति अविरति | प्रमाद |७-१० कषाय ११-१३ योग १४ - ४ x wwwwx mornxx कषाप योग ل س مي xX २. विशेष ५७ प्रत्ययोंकी अपेक्षा प्रमाण-(पं. सं./प्रा /८०-८३); (ध ८/३,६/२२-२४/१); (गो. क./मू./ ७८६-७६०/६५२) कुल बन्ध योग्य प्रत्यय--मिथ्यात्व ५; अविरति १२, कषाय २५, योग १५-५७ । व्युच्छित्ति अनुदय बच० | गुणस्थान पुन उदय शेष उदय योग्य कुल उदय योग्य अनुदय पुनः उदय उदय 6 xxव्युच्छित्ति م २. प्रत्यय विषयक प्ररूपणाएँ १. सारणीमें प्रयुक्त संकेतोंका अर्थ अनं० चतु० अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ अनु० मन० वच० अनुभय मन, व अनुभय वचन भय वचन अधिक अविरति आ० द्वि० आहारक व आहारक मिश्र आकमि० आहारक मिश्र औ० द्वि० औदारिक व औदारिक मिश्र उ० मन० बच० उभय मन व वचन नपुं० नपुसक वेद पुरुषवेद प्रत्या० चतु० प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया, लोभ मन०४ सत्य, असत्य, उभय व अनुभय मनोयोग मि० पचक पाचो प्रकारका मिथ्यात्व वच०४ चार प्रकारका वचनयोग वैद्वि० वैक्रियक व वैक्रियक मिश्र स क्रोध संज्वलन क्रोध हास्यादि६ हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा م س मिपंचक आकद्वि० अनन्ता० चतु० . औ००मि० व कार्मण ४ अप्रत्या० चतु० औ० बै०४३ | ३ सहिंसा, वै० । द्वि०-७ कार्मण ४६/७३६ प्रत्या० चतु० औ० मि० शेष ११ अवि- | कार्मण - रति-१५ ६ | आ० द्वि० आद्वि०२२ २२४ २२२ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy