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________________ प्रकृति बंध ७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएं शेष बन्ध बन्ध व्युच्छि. बन्ध योग्य । । पून मार्गणा व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ अबन्ध पुन' बन्ध स्थान बन्ध अबन्ध योग्य । । मति, श्रुत अवधिज्ञान | बन्धयोग्य-ओधके चतुर्थगुणस्थानको-७७-आ० द्वि-७६, गुणस्थान ४-१२ -- ओधवत् -→ मनापर्ययज्ञान बन्ध योग्य - बोधके ६ठे गुणस्थान की ६३+ आहारक द्वि०-६५: गुणस्थान ६-१२ -- ओघवत् -→ केवलज्ञान बन्धयोग्य-ओधके १३ वें गुणस्थानवत-१, गुणस्थान २ (१३,१४) --- -आषद - - -- -- - । ।। ओवर | | ८.संयम मार्गणा-(प.ख./स./२२५-२१२/२६८-३१८); (गो.क./भा./११६/११६/१०) । सामायिक व छेदो । बन्धयोग्य-ओधके ६ठे गुणस्थानकी-६३+ आ० द्वि०-६१: गुणस्थान-६-१ । । --- ----ओघवत्-------- परिहार विशुद्धि | बन्धयोग्य - ओधके ६ठे गुणस्थानकी -६३+ आ० द्वि०=६५: गुणस्थान-६-७ सूक्ष्म साम्पराया | बन्धयोग्य - ओधके १० गुणस्थानवत्-१७; गुणस्थान-१०वॉ यथाख्यात बन्धयोग्य-साता वेदनीय १: गुणस्थान ११-१४ --ओघवत्------- संयमासंयम | मन्धयोग्य-ओघके पंचम गुणस्थानवत् == ६७: गुणस्थान ५ वॉ --ओघवत्------- असंयत | बन्धयोग्य ओघकी १२०-आ० द्वि०-११८, गुणस्थान १-४ ------ओघवत् (आ.द्विरहित)---- ९. दर्शन मार्गणा-(प. खं.८/सु./२५३-२५७/३१८-३१६): (गो. क./भाषा/११६/११७/३) चक्षु अचक्षु बन्धयोग्य-१२% गुणस्थान-१२ -- - ओघवत - ओघवत - - - अवधि बन्धयोग्य ओधके चतुर्थ गुणस्थानको म ७७+आ० द्वि०-७६, गुणस्थान-४-१२ - - ओघवत्- - -→ जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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