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________________ प्रकृति बंध १०५ ७. प्रकृतिबन्ध विषयक प्ररूपणाएं गुण मार्गणा व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ शुचिपत्ति की प्रकृतियों अबन्ध । पुन मन्ध अबन्ध पुन' बन्ध वा अनन्ध पुनः भन्ध सुच्या का अबन्ध पुन. बन्ध । योग्य शेष |बन्ध व्युच्छि० बन्ध बन्ध योग्य स्थान वैकि० काय० योग वै० मि० काययोग पान आहारक काययोग बन्धयोग्य-सामान्य देववत् १०४, गुणस्थान-४ - सौधर्म ईशान प० देववत् -→ बन्धयोग्य =नि० अप० देववत् १०२, गुणस्थान = १, २, ४ -- सौधर्म देव नि० अप० बर -→ बन्धयोग्य ओधके ६ठे गुणस्थानव-६३, गुणस्थान - केवल १(छठी) t-- ओघ के छठे गुणस्थानवत -→ बन्धयोग्य ओघ प्रमत्त गुणस्थानकी-६३-देवायु ६२, गुणस्थान- केवल १(छठा) -- ओषके छठे गुणस्थानवत् → बन्धयोग्य औ० मि० की ११३-मनुष्य, तिर्यंचायु-१११: गुणस्थान-१, २, ४, १३ उपरोक्त दो आयु रहित औ० मि० वत -→ आ० मि० काययोग कार्माण काययोग उपरास ५ वेद मार्गणाः -(प. खं./८/सू. १६६-१८७/२४२-२६६) (गो. क./मू./११६/११४ ) स्त्री वेद पर्याप्त स्त्री वेद नि० अप० १०७ ६४ पुरुष वेद पर्याप्त | बन्धयोग्य ओघवत्-१२०-तीर्थंकर, आहारक द्विक, देवगति-११६; गुणस्थान -६ - देवगति, आ० द्वि०, तीर्थ०, रहित ओघवत् -→ बन्धयोग्य- श्रोधवत १२०-चारो आयु, आ० द्वि०, तीर्थ०, नरक वि०, देव द्वि०, वै० द्वि०-१०७ गुणस्थान -२ ओघवत्-१६-नरकत्रिक-१३ १०७ | १३ ओघवत-२५-तियंचायु-१४ । १४ । बन्धयोग्य ओघकी १२०; गुणस्थान -६ -- ओघवत् -→ बन्धयोग्य =ोधकी १२०-४ आयु, नरक द्विव, आद्वि- ११२: गुणस्थान-१, २, ४ | ओघकी १६-नरकत्रिक १३ देव द्वि०, तीर्थ, |११२ । वैक्रि० द्वि० ओघवत -२५-तियंचायु-२४ ओघवत्-१०- मनुष्यायु-६ तीर्थ ०, देव द्वि० ७० | वैद्वि० पुरुष बेद नि० अप० नपु० वेद प० बन्धयोग्य ओघकी १२०-तीर्थ०. आ० दि०, देवगति ११६ गुणस्थान है -- उपरोक्त ४ प्रकृति रहित ओघवत् -- नपं वेद० नि० अप० । बन्धयोग्य-ओघकी १२०-चारों आयु, आ० दि०, नरक द्वि०, देव वि०,वे०वि०-१०८ गुणस्थान १,२,४, | ओघवत् १६-नरकत्रिक =१३ तीर्थकर ओधवत् २४-तिर्यंचायु -२४ ओघवत १०-मनुष्यायु -६ । तीर्थ कर । ७० ( यह स्थान केवल प्रथम पृथ्वी नारकीको ही सम्भव है ।) ६. कषाय मागेणा-- (ध //सू १८८-२०६/२६९-२७१), (गो क /भाषा/११६/११५) क्रोध, मान, माया बन्धयोग्य = ओघवत १२०: गुणस्थान ६ ओघवत् लोभ बन्धयोग्य = ओघवत् १२०: गुणस्थान - १० ओघवत अकषायी बन्धयोग्य-साता वेदनीय १, गुणस्थान-११, १२, १३ ओघवत् ओघवत् | । ७. शान मार्गणाः-(ध //सू २०७-२२४/२७६-२६७ ) ( गो क /भा /११६/११५/१६) मति, श्रुत अज्ञान | बन्धयोग्य - १२०- आ० द्वि०, तीर्थ० - ११७, गुणस्थान-२ र व विभग ज्ञान -- ओघवत् -- जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश भा०३-१४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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