SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकृति बंध १०२ ७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ मार्गणा गुण स्थान पुनः व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ अबन्ध पुन' बन्ध कुल मन्ध अबन्ध योग्य बन्ध बन्ध व्युच्छि बन्ध त्ति योग्य | अपूर्वकरण ओघवद ३६-आ० द्वि-३४+हवे की ५, १०३ की १५, ६ की ६-११ साता वेदनीय मनु. ल. अप. बन्ध योग्य-१२०-देव त्रिक, नरक त्रिक, वैक्रि० वि०, आ० वि०, तीर्थ -१०: गुणस्थान १ देवगतिःसामान्य (प. खं.८/सु.७७-१०१/१५८) (गो.क./१११-११२/८-१०१) मन्धयोग्य-१२०-सूक्ष्म, अपर्याप्त, साधारण, २-४ इन्द्रिय, नरकत्रिक, देवत्रिक, वै क्रि० द्वि०, आहारक द्वि०-१०४, गुणस्थान-४ बन्धयोग्य सामान्यकी १०४-तीर्थकर-१०३, भवनत्रिकदेव पर्याप्त मिथ्या, हुंडक०, नपुं०, सपा टिका, एकेन्द्रि०,स्थावर, आतप ओघवव २५ मनुष्यायु ओधवव | मनुष्यायु । ७० ------भवन त्रिक वत----→ बन्ध योग्य-सामान्य देववत -१०४, गुणस्थान-४ करूप. देवी. प. सौधर्म ईशान । पर्याप्त मिथ्या, हुंडक, नपुं०, सपाटिका, तीर्थकर एकेन्द्रि०स्थावर, आतप-७ ओघवत् मनुष्यायु ओघवत मनुष्यायु,तीर्थ०, ७० अन्ध योग्य-१०४-एकेन्द्रिय, स्थावर, आतप-१०१: गुणस्थान-४ सनरकुमा रादि १० स्वर्ग पर्याप्त मिथ्यात्व, हुडक, नए०, तीर्थकर सृपाटिका ओघवत् | मनुष्यायु ओघवत मनुष्यायु,तीर्थ, ७० बन्ध योग्य =१०४-एकेन्द्रि०, स्थावर, आतप, तियंचत्रिक, उद्योत-१७; गुणस्थान-४ -१० (आनतादि२ ४ स्वर्ग ( व नव ग्रै.प. | मिथ्यात्व, हुंडक, नपुं० । तीर्थ कर सृपाटिका ओघकी २५-तिर्यक्तिक, उद्योत | मनुष्यायु ओघवत मनुष्यायु, तीर्थ, ७० बन्ध योग्य-सौधर्मके चतुर्थ गुणस्थानवत-७० गुणस्थान केबल-१(चतुर्थ) (पंच अनुत्तर व नव अनु दिश प० जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy