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________________ प्रकृति बंध १०१ ७. प्रकृति बन्ध विषयक प्ररूपणाएँ शेष गुण मार्गमा अबन्ध व्युच्छि व्युच्छित्तिकी प्रकृतियाँ पुनबन्ध पुन' बन्ध अवन्ध बन्ध स्थान बन्ध त्ति योग्य योग्य २-६ पृथिवी अप० बन्धयोग्य-१०१-मनुष्यायु, तिथंचायु, तीर्थकर १८, गुणस्थान-१, । १८ | मिथ्यात्व, हुंडक, नपुं०, सृपाटिका+सासादनकी २५तिर्यचायु -२८ । | ८ } २८ ] ७० ७वीं पृथिवी अप० भन्धयोग्य- १०१ - मनूष्य तिर्यचायु, तीर्थकर, मनुष्य द्वि०, उच्चगोत्र =६ गुणस्थान-१ उपरोक्त -२८ | ५ | | | १५ | २८ | ५७ २ तियंच गति-(म../९/३८/४२); (प. रवं./८/सू.३-७४/११२-१६०); (गो.क./१०८-१०६/६३-६१) सामान्य प० । बन्धयोग्य-१२०-तीर्थकर, आहारक द्विक-११७ गुणस्थान ओघवत् -१६ ओघवव २५+ वज्र ऋषभ, औ० द्वि०, मनुष्य त्रिक-३१ देवायु अप्रत्याख्यान देवायु प्रत्याख्यान ४ ---- सामान्य तिर्यवत् --→ पंचेन्द्रिय प० पं.योनिमती ५० पंचेन्द्रिय नि. अप० मन्धयोग्य-१२०-तीर्थकर, आहारक द्विक, चारों आयु, नरक द्विक १११, गुणस्थान १, २, ४ ओधवव १६-नरक त्रिक -१३ | देव द्वि०, वैक्रि० म द्वि० ओघवव २५+ वज्र वृषभ, औ० द्वि०, मनु० द्वि०-तिर्यगायु-२६ ६४ ६४ अप्रत्यारण्यान ४ ४ देव द्वि०, वैक्रि० ६५ द्वि० । बन्धयोग्य-१२०-तीर्थकर आहारक द्वि०. देव त्रिक, नरक त्रिक, वैक्रि०द्विक-१०६% गुणस्थान-१ तिर्यंच ल० अप० ३ मनुष्य गतिः सामान्य प० । बन्धयोग्य-१२०; गुणस्थान-१४ ओघवत् -१६ तीर्थ०, आ.द्वि० ओघवत् २५, वज्र ऋषभ, औ० द्वि०, मनु० त्रि० देवायु देवाय तीर्थ | अप्रत्याख्यान ४ प्रत्याख्यान ४ १०७ । १३ । ६-१४ --- ओघवत मनुष्यणी ५० -- सामान्य मनुष्यवत -→ मनु०नि० अप बन्धयोग्य-१२०--४ आयु, नरक द्विक, आ० द्वि-११२ गुणस्थान-१, २, ४, ६, १३ | १ | ओघवत् १६-नरक त्रिक-१३ | देवद्विक, वैक्रि० ( १९२ । । द्वि, तीर्थ २ ओघवद २५+ बज्र ऋषभ+ औ० द्वि+मनु० द्वि०,तिर्यगायु -२६ अप्रत्याख्यान ४, प्रत्याख्यान ४ देव द्विक, वैकि० ६५ द्वि०, तीर्थ, जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016010
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages639
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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