SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 648
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट 2. आचार्य विचार चन्द्रावमहत्तर-श्वेताम्बर पंचसंग्रह प्राकृत तथा उस की स्वोपज्ञ टीका के रचियता एक प्रसिद्ध श्वेताम्बर आचार्य / 351, 36 // शतक चूणि के रचयिता का नाम भी यद्यपि यही है / 358 तदपि यह बात सन्दिग्ध है कि ये दोनों एक ही व्यक्ति थे या भिन्न (३५६इनकी स्वोषज्ञ टीका में एक ओर तो विशेषावश्यक भाष्य (वि.६०) की कुछ गाथायें उद्धृत पाई जाती हैं, और दूसरी ओर गर्गर्षि (वि. श. 1.10) कृत 'कर्म विपाक' के एक मत का खण्डन किया गया उपलब्ध होता है 1361 / इस पर से इनका काल वि. श.१०के अन्त में स्थापित किया जा सकता है। शतक चूणिका काल क्योंकि वि. 7501000 निश्चित किया गया है (दे. परिशिष्ट/१), इसलिये यदि दोनों के रचयिता एक ही व्यक्ति हैं तो कहना होगा कि वे इसी अवधि (वि.श.१-१०) के मध्य में कहीं हुए है।३६६ (जै./१/पृष्ठ)। नन्दवंश-मगध देश का एक प्राचीन राज्यवंश। जैन शास्त्र के अनुसार इसका काल यद्यपि अवन्ती नरेश पालक के पश्चात बी.मी. 10 (ई.पू.४६७) से प्रारम्भ हो गया था, तदपि जैन इतिहासकार श्री जायसवाल जी के अनुसार यह मान्यता भ्रान्तिपूर्ण है। अवन्ती राज्य को मगध राज्य में मिलाकर उसकी वृद्धि करने के कारण श्रेणिक वंशीय नागदास के मन्त्री ममुनाग का नाम नन्दिवर्द्धन पड़ गया था। वास्तव में वह नन्द वंश का राजा नहीं था। नन्दवंश में महानन्द तथा उसके आठ पुत्र ये नव नन्द प्रसिद्ध हैं, जिनका काल ई.पू.४१० से 326 तक रहा (दे. इतिहास/३/४)। इस वंश की चौथी पीढ़ी अर्थाद महानन्दि के काल से इस वंश में जैन धर्म ने प्रवेश पा लिया था / 332 / खारवेल के शिलालेख के अनुसार कलिंग देश पर चढाई करके ये वहां से जिनमूर्ति ले आए थे।३५२। हिन्दु पुराणों ने साम्प्रदायिकता के कारण ही इनको शूद्रा का पुत्र लिख दिया है। जिसका अनुसरण करते हए यूनानी लेखकों ने भी इन्हें नाई का पुत्र सिख दिया।३३२॥ धनानन्द इस वंश के अन्तिम राजा थे। जिन्होंने भोग विलास में पड़ जाने के कारण अपने मन्त्री शाकटाल को सकुटुम्ब बन्दी बनाकर अन्धकूप में डाल दिया था।३६४। (जै./पी./ पृष्ठ); (भद्रबाहु चरित्र/३/८) समाप्त जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy