SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नय सूचीपत्र शब्दनय निर्देश शब्दनयका सामान्य लक्षण । शब्दनयके विषयकी एकत्वता ।-दे० नय/IV/३ । शब्द प्रयोगकी मेद व अभेदरूप दो अपेक्षाएँ। -दे० नय/III/१/१ । २ अनेक शब्दोंका एक वाच्य मानता है। ३ । पर्यायवाची शब्दोंके अर्थमें अमेद मानता है। ४ । पर्यायवाची शब्दोंके प्रयोगमें लिगादिका व्यभिचार स्वीकार नहीं करता। ऋजुसूत्र व शब्दनयमें अन्तर । यह पर्यायार्थिक तथा व्यंजननय है।-दे० नय/III/१ | इसमें यथासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव।। -दे० निक्षेप/३। | शब्द नयाभासका लक्षण। वैयाकरणी शब्द नयाभासी है।-दे० अनेकान्त/२/३ । लिगादिके व्यभिचारका तात्पर्य । उक्त व्यभिचारोंमें दोष प्रदर्शन । शब्दमें अर्थ प्रतिपादनकी योग्यता। -दे० आगम/४/१/। सर्व प्रयोगोंको दूषित बतानेसे व्याकरण शास्त्रके साथ विरोध आता है ? शब्द प्रयोगकी भेद-अभेद रूप दो अपेक्षाएँ। -दे० नय/III/R/R | तज्शान परिणत आत्मा उस शब्दका वाच्य है । अर्थभेदसे शब्दभेद और शब्दमेदसे अर्थमेद । इस नयकी दृष्टिमें वाक्य सम्भव नहीं। इस नयमें पदसमास सम्भव नहीं। इस नयमें वर्णसमास तक भी सम्भव नहीं। वाच्यवाचक भावका समन्वय। -दे० आगम/४/४ । समभिरूढ व एवंभूतमें अन्तर।। | यह पर्यायार्थिक शब्दनय है। -दे० नय/III/21 | इसमें यथासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव । -दे० निक्षेप/३। एवंभूत नयाभासका लक्षण । वैयाकरणी एवंभूत नयाभासी हैं। -दे० अनेकान्त/२/३ || द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिक नय द्रव्यार्थिक नय सामान्य निर्देश द्रव्यार्थिकनयका लक्षण । यह वस्तुके सामान्यांशको अद्वैतरूप विषय करता ३.६ | द्रव्य-क्षेत्र-काल-भावकी अपेक्षा विषयकी अद्वैतता। ७ | इसीसे यह नय एक अवक्तव्य व निर्विकल्प है। | द्रव्यार्थिक व प्रमाण में अन्तर । -दे० नय/III/३/४1 द्रव्यार्थिकके तीन भेद नैगमादि। -दे० नय/III I द्रव्यार्थिक व पर्यायार्थिकमें अन्तर। -दे० नय/V/8/1 * इसमें यथासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव । -दे०निक्षेप/२॥ सममिरूढनय निर्देश समभिरूढनयके लक्षण१. अर्थ भेदसे शब्द भेद ( रूढशब्दका प्रयोग) २. शब्दभेदसे अर्थ भेद । ३. वस्तुका निजस्वरूपमें रूढ करना। इस नयके विषयकी एकत्वता। -दे० नय/IV/३ | शब्दप्रयोगकी भेद-अमेद रूप दो अपेक्षा । -दे० नय/III/१/१ । यद्यपि रूदिगत अनेक शब्द एकार्थवाची हो जाते हैं । परन्तु यहाँ पर्यायवाची शब्द नहीं होते। शब्द वस्तुका धर्म नहीं है, तब उसके भेदसे अर्थ भेद कैसे हो सकता है ? --दे० आगम/४/४ । शब्द व सममिरूढ नयमें अन्तर। * यह पर्यायाथिक शब्दनय है। -दे० नय/IIIRI | इसमें यथासम्भव निक्षेपोंका अन्तर्भाव।। -दे० निक्षेप/३। ५ | समभिरूढ नयाभासका लक्षण। वैयाकरणी समभिरूढ़ नयाभासी हैं। -दे० अनेकान्त/२/81 ८ एवंभूत नय निर्देश तक्रिया परिणत द्रव्य हो शब्दका वाच्य है। सभी शब्द क्रियावाची हैं। -दे० नाम। शुद्ध व अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय निर्देश द्रव्याथिकनयके दो भेद-शुद्ध व अशुद्ध । शुद्ध द्रव्यार्थिकनयका लक्षण । द्रव्य क्षेत्रादिकी अपेक्षा इस नयके विषयकी अद्वैतता। शुद्ध द्रव्यार्थिकनयकी प्रधानता । -दे० नय/V/३/४ | अशुद्ध द्रव्यार्थिकनयका लक्षण। अशुद्ध द्रव्यार्थिक व्यवहारनय है। -दे० नय/V|४| अशुद्ध व शुद्ध द्रव्यार्थिकमें हेयोपादेयता। -दे० नय/V/ET द्रव्याथिकके दश भेदोंका निर्देश। द्रव्याथिकनय दशकके लक्षण । १. कर्मोपाधि निरपेक्ष, २. सत्ता ग्राहक, ३. भेद निरपेक्ष । ४. कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक, ६ १ तसि जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy