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________________ नय I 1 १ १ ** ५ ६ नय सामान्य नय सामान्य निर्देश नय सामान्यका लक्षण १. निरुक्त्यर्थ । २. वक्ताका अभिप्राय । ३. एकदेश वस्तुग्राही । नयाभास निर्देश | ३ नयके मूल भेदोंके नाम निर्देश । नयके भेद प्रमेदोंकी सूची । ५ द्रव्यार्थिक पर्यायार्थिक अथवा निश्चय व्यवहार, ये ही मूल भेद हैं। ६. गुणार्थिक नवका निर्देश क्यों नहीं ? आगम व अध्यात्म पद्धति । ४. प्रमाणगृहीत वस्त्वं शग्राही । ५. श्रुतज्ञानका विकल्प । उपरोक्त लक्षणोंका समीकरण । नय व निक्षेप में अन्तर । नयों व निक्षेपका परस्पर अन्तर्भाव २ नय-प्रमाण सम्बन्ध ↑ नय व प्रमाण में कथंचित् अमेद । २ नय व प्रमाणमें कथंचित् मेद । ३ श्रुतवानमें ही नय होती है, अन्य धानोंमें नहीं। * प्रमाण व नयमें कथंचित् प्रधान व अप्रधानपना । प्रमाणका विषय सामान्य विशेष दोनों है। प्रमाण अनेकान्तग्राही है और नय एकान्तमाही । १ - दे० निक्षेप / १ । । -० निक्षेप / २.३ । - दे० नय / II । ७ प्रमाण सकलादेशी है और नय विकलादेशी । २ ३ प्रमाण व नव सप्तभंगी ११ प्रमाण व नयके उदाहरण । १२ मयके एकान्तग्राही होनेमें शंका । * ८ प्रमाण सकलवस्तुमाहक है और नय सवंशग्राहक । ९ प्रमाण सब धर्मोंको युगपत् ग्रहण करता है तथा नय क्रमसे एक एकको। सकल नयोंका युगपत् ग्रहण ही ग्रहण है। -३० प्रमाण सापेक्ष ही नय सम्यक् है । - दे० नय / II / १० | १० प्रमाण स्यात् पदयुक्त होने से सर्वनयात्मक होता है । * -३० भंगी / २। -दे० पद्धति । नय भी कचित् सकलादेशी है। ३० गी/२ ३। नयको कथंचित् हेयोपादेयता तत्त्व नवपोंसे अतीत है। नयपक्ष कथंचित् हेय है । नय केवल शेय है पर उपादेय नहीं। Jain Education International सकलवस्तु अनेकान्त / २१ ५०८ नयपक्षको हेय कहनेका कारण प्रयोजन | परमार्थतः निश्चय व व्यवहार दोनोंका पक्ष विकल्परूप होनेसे हेय है। ६. प्रत्यक्षानुभूतिके समय निश्चय व्यवहारके विकल्प नहीं रहते । ५ ८ ९ १० ४ * ४ ** ५ * ६ 19 १ शब्द अर्थ धानरूप तीन प्रकार के पदार्थ है। २ शब्दादि नयनिर्देश व लक्षण । ३ वास्तवमें नय ज्ञानात्मक हो है शब्दादिको नय कहना उपचार है । ० बागम /५/६ ५ १ २ ३ परन्तु तत्त्वनिर्णयार्थ नय कार्यकारी है । आगमका अर्थ करनेमें नयका स्थान । II १ २ ३ ४ सम्यक् नय ही कार्यकारी है मिथ्या नय नहीं । निरपेक्ष नय भी कथंचित् कार्यकारी है । नयपक्षकी हेयोपादेयताका समन्वय । शब्द, अर्थ व ज्ञाननय निर्देश -दे० आगम / ३/३ । शब्दमें प्रमाण व नयपना । तीनों नयोंमें परस्पर सम्बन्ध । शब्द में अर्थ प्रतिपादनकी योग्यता। ५ * उपचरित नय उपनय काल अकाल नयका समन्वय मानव कियानयका समन्यय शब्दनयका विषय । शब्दनयकी विशेषताएँ शब्दादि नयोंके उदाहरण । नव प्रयोग शब्दमें नहीं भावमें होता है सूचोपत्र -दे० आगम /४/११ - दे० नमः 111 /९/६ - ३० नय / III / ६-८ द्रव्यनय व भावनय निर्देश अन्य अनेकों नयोंका निर्देश भूत मावि आदि प्रथापन नय निर्देश। अस्तित्वादि सप्तभंगी नयोंका निर्देश । ३० स्याद्वाद / ४ | नामादि निक्षेपरूप नयोंका निर्देश । सामान्य विशेष आदि धर्मोंरूम ४७ नौका निर्देश अनन्त नय होने सम्भव हैं । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only दे० उपचार -दे० नय/V/४/ - ६० नियति / २ | - दे० चेतना /३/८ । सम्यक् व मिथ्यानय नय सम्यक् भी होती है और मिथ्या भी। सम्यक् व मिथ्या नयोंके लक्षण । अन्य पक्षका निषेध न करे तो कोई भी नय मिभ्या नहीं होती। अन्य पक्षका निषेध करनेसे ही मिष्या है। www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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