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________________ देव ऋद्धि कर लिया है ऐसे जीना उस गति सम्बन्धी आयु सामान्य के साथ विरोध न होते हुए भी उस उस गति सम्बन्धी विशेष में उत्पत्ति के साथ विरोध पाया है। ऐसी अवस्थामें भवनवासी, उत्तर ज्योतिषी प्रकीर्णक, आभियोग्य और फिबिधिक वैनों मे ...असंयत सम्यग्दृष्टिका उत्पत्ति के साथ विरोध सिद्ध हो जाता है। ७. भवनत्रिक देव-देवी व कल्पवासी देवी में क्षायिक सभ्यवश्व क्यों नहीं होता घ. १/१.१.९/२०६२ किमिति क्षायिकसम्यग्टष्टपस्तत्र न सन्तीति दर्शन मोक्षपणाभावात्क्षपितदर्शनमोहकर्मणामपि चेन्न, देवेषु प्राणिनां भवनवास्यादिष्वधमदेवेषु सर्वदेवीषु चोत्पत्तेरभावाच्च । = प्रश्न- क्षायिक सम्यग्दृष्टि जी एस स्थानों में (भवनत्रिक देव तथा सर्व देवियोंमें) क्यों नहीं उत्पन्न होते है ? उत्तर-नहीं, क्योंकि, एक तो वहाँ पर दर्शनमोहनीयका क्षपण नहीं होता है। दूसरे जिन जीने पूर्व पर्याय दर्शन मोहका क्षय कर दिया है उनकी भवनवासी आदि अधम देवों में और सभी देवियों में उत्पत्ति नहीं होती है। ८. फिर उपशमादि सम्यक्त्व भवनन्त्रिक देव व सर्व देवियों में कैसे सम्भव है घ. १/१. १. १६६/४०६/७ सेपसम्यक्त्वस्य तत्र कर्म सम्भव इति चैत्र, तत्रोत्पन्नजीवानां पश्चात्पर्यायपरिणतेः सत्त्वात् । - • प्रश्न- शेषके हो सम्यग्दर्शनोंका उक्त स्थानों मे भवदेव तथा सर्व देवियोंमें) सद्भाव कैसे सम्भव है। उत्तर-नहीं, क्योंकि, वहाँपर उत्पन्न हुए जोवोंके अनन्तर सम्यग्दर्शनरूप पर्याय हो जाती है, इसलिए शेषके दो सम्यग्दर्शनोंका वहाँ सद्भाव पाया जाता है। आगम के संक्लयिता प्रधान देव ऋद्धि-आचारांग आदि श्वेताम्बराचायें। पतिरमिह नयरे देवपमुसलसंहि । आगमप्रत्थे सिम्हि णवसय असीजाओ मरियो । प इसके अनुसार आप सकल संघ सहित वल्लभीपुर में वी. नि. १८० (ई. ४५३) में खाये थे । ई. ५६३ के विशेषावश्यक भाष्य में आपका नामोल्लेख है। समय- श्वेताम्बर संघ के संस्थापक जिनचन्द्र (ई. ७६) और बि. आ. भा. ( ई. ५६३) के मध्य । (प.सा. ११/प्रेमी जी) । देव ऋषि - दे० ऋषि । देवकीति - १. संघ को गुर्वावली अनुसार आप अनन्तन शिष्य व गुणकीर्ति के सहधर्मा थे । समय-ई. १६०-१०४० (दे. इतिहास ०२. नन्दिके देशी गुर्वावली के अनुसार आग मापनन्दि कोल्लापुरीयके शिष्य तथा गण्ड, विमुक्त, वादि चतुर्मुख आदि अनेक साधुओं व श्रावकों के गुरु थे। आपने कोल्लापुरकी रूपनारायण वसदिके आधीन केल्लगेरेय प्रतापपुरका पुनरुद्धार कराया था । तथा जिननाथपुरमे एक दानशाला स्थापित की थी। इनके शिष्य हुतराज मन्त्रीने इनके पश्चात् इनकी निपाननायी थी। समय-वि ११२०-१२२० (ई. १९३३ - ११४२ २ ४H.L Jam ) -- दे० इतिहास / ७ / ५ । ३. नन्दिसंघके देशीयगणकी गुर्वावलीके अनुसार ( दे० इतिहास ) आप गण्डविमुक्तदेवके शिष्य थे । समय - शक १०८४ मे समाधि (ई ११३५-११६३); ( ष. खं. २/ प्र.४ H. L Jain ) - दे० इतिहास / ७/५ । देवकुरु--- १. विदेह क्षेत्रस्थ एक उत्तम भोगभूमि जिसके दक्षिण में निषेध, उत्तर में सुमे, पूर्वमे सौमनस गजदन्त व पश्चिम विभ गजदन्त है । २. इसका अवस्थान व विस्तार - दे० लोक / ३ /१२ ३. इसमें काल परिवर्तन आदि विशेषताएँ - दे० काल | ४ भा० २-५७ Jain Education International देववर देवकुरु-१. गन्धमादनके उत्तर छूटका स्वामी देव ३० लोक / ५ / ४२ विद्यत्प्रभ गजदन्तस्थ एक कूट - दे० लोक /५/४ ३. सौमनस गजदन्तस्थ एक कूट- दे० लोक५/४ ४. सौमनस गजदन्तस्थ देवकुरु कूट स्वामी देव-दे० लोक /५/४ ४. देवकुरुमे स्थित नाम-३० लोक/५/६ *** देव कूट- १. अपर निदेहस्य चन्द्रगिरि नक्षारका एक फूट ६० लोक/9; २. उपरोक्त कूटका रक्षक एक देव-दे० लोक / ७ । देवचंद्र१. नन्दिसघ देशीयगण के 'अनुसार आप माघनन्दि कोहापुरी के शिष्य, एक कुशल तान्त्रिक थे। समय-वि. १९६०१२२० ( ई० ११३३ - १९६३) । दे० - इतिहास / ७/५ २. पासणाह चरित्रकेचा एक गृहत्यागी गुरु परम्परातकीर्ति, देवकीर्ति, मौनीदेव, माधव चन्द्र, अभयनन्दि, वासवचन्द्र । समयवि. श. १२ का मध्य ( ती० / ४ / १८० ) । ३. राजवलि कथे (कन्नड़ ग्रन्थ) के रचयिता । समय- वि० १८६६ ( ई० १८३६) । ( भ०आ० / ०४/प्रेमी जी) 1 - देव जी - कृति - सम्मेद शिखर विलास, परमात्म-प्रकाशको भाषा टीका । समय-वि १७३४ । (हि. जे सा. इ./ १६५ कामता ) । देवता १ देवी-देवता दे० देव / II । २. नव देवता निर्देश । - दे० देव / I | देवनंदि (--- १. नन्दिसंघ बलात्कारगणकी गुर्वावली के अनुसार आप यशोनन्दिके शिष्य थे और जयनन्दिके गुरु थे । समय-वि. श. -दे० इतिहास /७२ । २११-२०२२६-३८८ ) । २. आ० पूज्यमाद (ई० श. ५) का अपरनाम । ३. रोहिणीविहाण कहा के रचयिता एक अपभ्रंश कमि । समय-वि.श. १५ (ई.श. १५ पूर्व ). ( तो०/४/२४२) । देवपाल - १. भावि कालीन तेईसवे तीर्थंकर हैं। अपरनाम दिव्यपाद दे० तीर्थकर ५२. . / सर्ग / श्लोक पूर्वके तीसरे भ भारत का पुत्र भानुषेण था (२४/१०) फिर दूसरे में चित्रचूल विद्याधरका सेनकान्त नामक पुत्र हुआ (३४ / १३२) । फिर गंगदेव राजाका पुत्र गंगदा हुआ (३४-१४२ ) । वर्तमान भव में वसुदेवका पुत्र था (३४ / ३ ) । सुदृष्टि नामक सेठके घर इनका पालन हुआ (३४/४-३)। नेमिनाथ भगवादके समवसरण में धर्म धवन कर, दीक्षा ने ली ( तथा घोर तप किया); ( ५६ / ११५: ६०/ ७ ), ( अन्त में मोक्ष प्राप्त की ( ६५ / १६ ) । ३. भोजवंशी राजा था। भोजवंश वंशावली के अनुसार ( ० इतिहास) आप राजा नमक पुत्र और जेतुगिदके पिता थे। मालवा ( मागध ) देशके राजा थे। धारी व उज्जैनी आपकी राजधानी भी समय १२१८-१२२८ (दे०सा./१६-२० प्रेमी जी) दे० इतिहास / २८१ देवमाल - अपर विदेहस्थ एक वक्षार । अपरनाम मेघमाल । -दे० लोक /५/३ देवमूढता - ३० ता देवराय - विजयनगरका राजा था। समय-ई. १४१८-१४४६ । देवलोक १. देवलोक निर्देश दे० स्वर्ग ५। २. देवसोमे पृथिमी कायिकादि जीवोकी सम्भावना - दे० काय /२/५ । देववर - मध्यलोकके अन्तमें तृतीय सागर व द्वीप - दे० लोक /५/१ । जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016009
Book TitleJainendra Siddhanta kosha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2002
Total Pages648
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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